पूर्व राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद देश के नामी वकीलों में गिने जाते थे। लेकिन जब गांधी जी ने असहयोग आंदोलन शुरू किया तो राजेन्द्र बाबू ने वकालत छोड़ दी और अपना पूरा समय मातृभूमि की सेवा में लगाने लगे। हालांकि अपने एक पुराने मित्र रायबहादुर हरिहर प्रसाद सिंह को दिए वचन के कारण उनके मुकदमों की पैरवी के लिए उन्हें इंग्लैंड जाना पड़ा। सीनियर बैरिस्टर अपजौन इंग्लैंड में हरि जी का केस लड़ रहे थे, जिनके साथ राजेन्द्र बाबू को काम करना था। राजेन्द्र बाबू सुबह से शाम तक अपना काम बिना कुछ बोले, पूरी निष्ठा और लगन के साथ करते। वह उनकी सादगी और विनम्रता से बेहद प्रभावित हुए। एक दिन किसी ने अपजौन को राजेंद्र बाबू के बारे में बताया कि वह एक सफल वकील रहे हैं पर अपने देश को आजाद कराने के लिए उन्होंने वकालत छोड़ दी और अब गांधीजी के निकटतम सहयोगी हैं। अपजौन को आश्चर्य हुआ। वह सोचने लगे कि ये इतने दिनों से मेरे साथ काम कर रहे हैं पर अपने मुंह से आज तक अपने बारे में कुछ नहीं बताया। अपजौन राजेन्द्र बाबू से बोले, ‘लोग सफलता, पद और पैसे के पीछे भागते हैं और आप हैं कि इतनी चलती हुई वकालत को ठोकर मार दी।’ राजेन्द्र बाबू ने जवाब दिया, ‘एक सच्चे हिंदुस्तानी को अपने देश को आजाद कराने के लिए बड़े से बड़ा त्याग करने के लिए तैयार रहना चाहिए। वकालत छोड़ना तो एक छोटी-सी बात है।’ अपजौन अवाक् रह गए।
प्रस्तुति : मनीषा देवी