संवेदना का संकल्प
एक बहेलिया पक्षियों को जाल में फंसाकर उन्हें बेचकर अपने परिवार का जीवन-यापन करता था। एक बार श्रावक मुनि विचरण करते हुए उस क्षेत्र में आ पहुंचे। बहेलिया उनके दर्शनों के लिए पहुंचा। उसने उनके प्रवचन से प्रभावित होकर दीक्षा देने का अनुरोध किया। श्रावक मुनि ने कहा, ‘तुम्हें अहिंसा पालन का संकल्प लेना होगा।’ बहेलिया बोला, महाराज, मेरी आजीविका का साधन ही पक्षी हैं। मैं अहिंसा का व्रत कैसे ले सकता हूं?’ श्रावक मुनि ने कहा, ‘कम से कम किसी एक पक्षी के प्रति अहिंसा बरतने का संकल्प ले लो।’ उसने कहा, ‘ मैं कौए को न पकड़ूंगा, न उसकी हत्या करूंगा।’ मुनि ने उसे आंशिक अहिंसा व्रत दिला दिया। घर पहुंचते ही उसके मस्तिष्क में आया कि जो प्राण कौवे में हैं वही प्राण चिड़िया और मुर्गे में भी हैं। यदि मैं कौवे की हत्या को हिंसा और पाप मान चुका हूं तो अन्य पक्षियों की हत्या में हिंसा कैसे नहीं होगी? विचारों की इसी उधेड़बुन में वह रात भर सो नहीं पाया। सवेरे उठकर वह श्रावक मुनि के पास पहुंचा तथा उनके सामने पक्षियों को पकड़ने का जाल फेंकते हुए बोला, ‘मुनिवर, मैं अब भविष्य में किसी भी प्राणी की हत्या नहीं करूंगा। मैं पूर्ण अहिंसा का व्रत लेता हूं। पक्षियों की जगह शाक-भाजी बेचकर उससे परिवार का पालन-पोषण करूंगा।’ श्रावक मुनि के सत्संग ने उसका जीवन बदल डाला।
प्रस्तुति : डॉ. जयभगवान शर्मा