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धर्म और रक्षा

एकदा
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मध्यकालीन संतों को भजन-कीर्तन की अत्यधिक लगन थी। उस समय देश विदेशी आक्रांताओं के अधीन होता जा रहा था। गुरु गोविंद सिंह जी ने गहराई से विचार किया और परिस्थिति के अनुरूप नीति बनाई। उन्होंने सज्जनों को सत्संग, दुखियों की सेवा तथा आतताइयों से संघर्ष का मार्ग अपनाने की शिक्षा दी। उन्होंने अपने शिष्यों को ‘एक हाथ में माला, एक हाथ में भाला’ का सिद्धांत समझाया। इसी नीति के आधार पर एक संगठित सेना तैयार की, जिसने आक्रमणकारियों का डटकर सामना किया। यह संघर्ष आसान नहीं था। इसमें उनके पुत्र, शिष्य और कई सहयोगी बलिदान हुए। लेकिन इसका परिणाम यह हुआ कि आक्रमणकारियों को अपनी नीति बदलनी पड़ी और पीछे हटना पड़ा। गुरु गोविंद सिंह जी ने जो परंपरा स्थापित की, वह नीतिसम्मत थी और अनेक लोगों के लिए प्रेरणास्रोत बनी। उन्होंने लोगों को उनके कर्तव्यों के प्रति जागरूक किया और धर्म को समयानुकूल रूप में प्रस्तुत किया।

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