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नश्वरता का बोध

एकदा
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एक दिन कोई आदमी कबीर साहिब के घर गया, तो पता चला कि किसी मृतक के अंतिम संस्कार के लिए श्मशान गए हैं। आगंतुक ने कबीर के हुलिये के बारे में पूछा। कबीर की पत्नी ने बताया कि कबीर की पगड़ी में कलगी लगी हुई है। वह व्यक्ति श्मशान भूमि में गया, तो उसने देखा कि सबके सिर पर कलगियां टंगी हैं। वह चकराया कि कबीर को कैसे पहचाने और पूछे तो किससे पूछे, क्योंकि सब शोक में मौन थे। अंततः वह मृतक के दाह संस्कार के बाद लौट आया। नगर में पहुंच कर उसने देखा कि सब लोगों के सिर से कलगियां लुप्त हो गई हैं, केवल एक व्यक्ति के सिर पर कलगी बची है। वह निकट गया, तो पाया कि वही कबीर साहिब हैं। उसने कबीर को प्रणाम किया। कबीर ने पूछा, ‘कहो, क्या कार्य है?’ दर्शनार्थी बोला, ‘महात्मन! मैं बड़ी दूर से आपके उपदेश सुनने आया हूं, सो कई बातें पूछूंगा। पहले यह बताइए कि श्मशान में तो सबके सिरों पर कलगियां थीं, फिर आपके सिवा धीरे-धीरे सबकी क्यों गायब हो गईं? यह कैसे हुआ?’ कबीर बोले, ‘वह कलगी रामनाम की थी। मृतक को ले जाते समय सबके हृदय में संसार की अनित्यता और रामनाम की सत्यता थी। वापसी में लोग इस बात को भूल गए। मेरे मन में जगत की नश्वरता और सच्चाई सदा बनी रहती है—श्मशान में भी रही और अब भी है। इसीलिए मेरी कलगी नहीं गिरी।’

प्रस्तुति : राजकिशन नैन

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