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महाकुंभ में आस्था व संयमित व्यवहार से मर्यादा की रक्षा

महातीर्थ में अनुशासन
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कुंभ क्षेत्र में अपने व्यवहार, विचार और आचरण को पवित्र व सात्विक रखना चाहिए। त्रिवेणी संगम में स्नान से पूर्व मन और शरीर को शुद्ध करें। इसके लिए ध्यान और प्रार्थना करें। आचरण में शालीनता रखें। विनम्र और शांतिपूर्ण व्यवहार अपनाएं।

डॉ‍. मधुसूदन शर्मा

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पद्मपुराण में कहा गया है कि जैसे ग्रहों में सूर्य और नक्षत्रों में चंद्रमा सबसे ऊंचा स्थान रखते हैं, वैसे ही समस्त तीर्थों में प्रयागराज सर्वश्रेष्ठ है। यह वही पुण्यभूमि है जहां गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती का संगम होता है। प्रयागराज न केवल एक तीर्थक्षेत्र है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, धर्म और आध्यात्मिकता का केंद्र बिंदु है। इस पुण्य स्थल पर हर बारह वर्षों में आयोजित होने वाला महापर्व कुंभ विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन है। मान्यता है कि यह आत्मशुद्धि और मोक्ष प्राप्ति की एक अद्वितीय यात्रा भी है।

नि:संदेह, हर तीर्थ यात्री के मन में श्रद्धा और भक्ति का भाव होना चाहिए। श्रद्धाविहीन यात्रा का न तो धार्मिक लाभ मिलता है, न ही आत्मिक। तीर्थस्थल आत्मा को शुद्ध करने और परमात्मा के निकट जाने का माध्यम हैं। अधिकांश सांसारिक लोग तीर्थों में अपनी कामनाओं की पूर्ति के लिए जाते हैं।

प्रयाग महाकुम्भ एक ऐसा दुर्लभ आध्यात्मिक अवसर है, जहां स्नान, साधु-संतों का सान्निध्य और धार्मिक अनुष्ठान आत्मा को शुद्ध करने का मार्ग प्रशस्त करता है। इस महातीर्थ में कुछ आवश्यक नियमों और अनुशासन का पालन करना चाहिए। जिससे तीर्थ यात्रा आध्यात्मिक रूप से फलदायी हो।

पैदल यात्रा करते समय मन में भगवान के स्वरूप का ध्यान करना चाहिए और वाणी द्वारा उनके पवित्र नाम का जप करते रहना चाहिए। ऐसे समय में अपने इष्ट देव के नाम का कीर्तन करते रहें। साथ ही, धार्मिक पुस्तकों का अध्ययन यात्रा के हर पल को सार्थक बना सकता है।

कुंभ क्षेत्र में अपने व्यवहार, विचार और आचरण को पवित्र व सात्विक रखना चाहिए। त्रिवेणी संगम में स्नान से पूर्व मन और शरीर को शुद्ध करें। इसके लिए ध्यान और प्रार्थना करें। आचरण में शालीनता रखें। विनम्र और शांतिपूर्ण व्यवहार अपनाएं। धार्मिक स्थानों और भगवान के श्रीविग्रह के सामने श्रद्धालुओं का आचरण विशेष मर्यादा और आदर से भरा होना चाहिए। यह केवल धर्म का पालन ही नहीं, बल्कि आस्था और शिष्टाचार का भी प्रतीक है।

कुंभ में मौन धारण कर अपने मन को इष्ट देव के ध्यान में केंद्रित करना चाहिए। मौन साधना के लिए अनुकूल वातावरण तैयार करता है और आंतरिक शांति प्रदान करता है। मौन से मन की चंचलता कम होती है और ध्यान एवं भक्ति में गहराई आती है। यह भगवान के साक्षात्कार और आत्मा की शुद्धि के लिए एक साधन बन जाता है। जब हम अनावश्यक बातचीत से बचते हैं, तो हमारी ऊर्जा व्यर्थ नहीं होती। हम अपनी आध्यात्मिक यात्रा को अधिक प्रभावशाली बना पाते हैं। तीर्थ यात्रा के दौरान यदि किसी साथी या आश्रित को भारी विपत्ति का सामना करना पड़े, तो ऐसे समय में उसे अकेला नहीं छोड़ना चाहिए।

तीर्थ यात्रा में मन, वाणी और शरीर से ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। जाति, धर्म, या सामाजिक स्थिति के भेदभाव के बिना सभी के प्रति समान का व्यवहार करना चाहिए। सहयात्रियों और स्थानीय लोगों के साथ प्रेम और सम्मान का भाव रखना चाहिए।

महाकुम्भ का यह अवसर आत्मा की शुद्धि और जीवन के उच्चतम उद्देश्यों की प्राप्ति का अवसर है। यहां की पवित्र गंगा, संगम का स्नान, संत-महात्माओं के सत्संग और धार्मिक अनुष्ठान, सबका उद्देश्य श्रद्धालुओं को आत्मिक जागरण और ईश्वर से निकटता प्रदान करना है। कुंभ का यह महान पर्व तभी पूर्ण रूप से सार्थक होता है, जब श्रद्धालु इसकी दिव्यता और पवित्रता को बनाए रखने के लिए सजग रहें!

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