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Pauranik Kathayen : जब पारिजात की खूबसूरती पर मोहित हो गई थी सत्यभामा, श्रीकृष्ण जिद पूरी करने के लिए स्वर्ग से उखाड़ लाए थे वृक्ष

Pauranik Kathayen : जब पारिजात की खूबसूरती पर मोहित हो गई थी सत्यभामा, श्रीकृष्ण जिद पूरी करने के लिए स्वर्ग से उखाड़ लाए थे वृक्ष
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चंडीगढ़, 15 जनवरी (ट्रिन्यू)

Pauranik Kathayen : देवतुल्य पारिजात पेड़ न सिर्फ बेहद खूबसूरत है बल्कि कई औषधीय गुणों से भरपूर हैं। वहीं, दैवीय शक्तियों से भरपूर पारिजात पेड़ व फूलों का पौराणिक और धार्मिक महत्व भी है। कहा जाता है कि इस पेड़ को भगवान श्रीकृष्ण अपनी पत्नी सत्यभामा की जिद पूरी करने के लिए स्वर्ग से धरती पर लाए थे।

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समुद्र मंथन से हुई पारिजात वृक्ष की उत्पत्ति

पौराणिक कथाओं के अनुसार, पारिजात वृक्ष या हरश्रृंगार की उत्पत्ति समुद्र मंथन के दौरान हुई थी इसलिए देवराज इंद्र ने इस पेड़ को स्वर्ग में लगाया। देवी लक्ष्मी को इस पेड़ के फूल अतिप्रिय है क्योंकि उनकी उत्पत्ति भी समुद्र मंथन से हुई थी। कहा जाता है कि नरक भूमिदेवी और भगवान वराह के पुत्र भौम समय के साथ दुष्ट बन गया।

उसके नाम में “असुर” नाम जुड़ गया। अपनी शक्ति से उसने 16,100 महिलाओं और इंद्र के स्वर्ग पर भी विजय प्राप्त की। तब इंद्रदेव ने श्रीकृष्ण से मदद मांगी। श्रीकृष्ण शक्तिशाली हथियारों के साथ गरुड़ पर बैठकर भौम के राज्य में चल दिए। सत्यभामा भी इस युद्ध को देखना चाहती थी और इसलिए उन्होंने कृष्ण के साथ जाने का फैसला किया।

इंद्र ने मांगी श्रीकृष्ण से मदद

प्राग्ज्योतिष के किलेबंद शहर में पहुंचने पर श्रीकृष्ण ने नरकासुर को द्वंद्वयुद्ध के लिए चुनौती दी। युद्ध इतना भयंकर कि इंद्र चिंतित हो गए और उन्हें डर लगने लगा कि कहीं श्रीकृष्ण हार न जाए। फिर नरका का एक तीर गलती से कृष्ण की जगह सत्यभामा को लग गया। सत्याभामा ने आहत होकर उसी हथियार से नरका पर हमला कर दिया। आखिरकार नरकासुर अपराजित रहा। दरअसल, नरका को अपनी मां के हाथों मरना तय था और सत्यभामा भूमिदेवी का पुनर्जन्म थीं।

पारिजात के लिए जिद पर उड़ गई सत्यभामा

नरकासुर पर अच्छाई की जीत का जश्न बहुत धूमधाम से मनाया गया। सत्यभामा ने देखा कि इंद्र ने उनके पति के इस कदम के बदले में कोई आभार प्रकट नहीं किया। वह इंद्र के धन के प्रति लगाव को प्रदर्शित करना चाहती थी, इसलिए उसने अपने पति से नंदका में उगने वाले पारिजात वृक्ष को उपहार के रूप में मांगने को कहा।

इंद्र पारिजात वृक्ष को छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे और सत्यभामा भी जिद पर अड़ गई थी। तब श्रीकृष्ण ने पारिजात वृक्ष को उखाड़ दिया और सत्यभामा के साथ गरुड़ पर सवार होकर उसे धरती पर ले आए। पारिजात को वापिस पाने के लिए इंद्र ने अपने हाथी पर उनका पीछा किया और उनके बीच हुई लड़ाई में कृष्ण ने इंद्र को हरा दिया।

तब कृष्ण और सत्यभामा ने बताया कि उनका इरादा इंद्र को अपमानित करने का नहीं बल्कि उन्हें सबक सिखाने का था। इंद्र को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने पारिजात श्रीकृष्ण को भेंट कर दिया।

डिस्केलमनर: यह लेख/खबर धार्मिक व सामाजिक मान्यता पर आधारित है। Dainiktribuneonline.com इस तरह की बात की पुष्टि नहीं करता है।

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