Pauranik Kathayen : एक ही शुरुआत, फिर भी रास्ते अलग-अलग... उत्तरकाशी से चलकर प्रयागराज में ही क्यों मिलती हैं गंगा-यमुना
चंडीगढ़, 22 जून (ट्रिन्यू)
Pauranik Kathayen : गंगा और यमुना दोनों हिमालय से निकलने वाली नदियां हैं, जिनके बहाव मार्ग ग्लेशियरों, घाटियों व जलप्रणालियों द्वारा तय होते हैं। दोनों नदियां उत्तरकाशी में पास-पास से निकलती जरूर हैं। हालांकि उनकी दिशा और मार्ग भिन्न हैं।
दरअसल, यमुना और गंगा का प्रयागराज में संगम होना केवल संयोग नहीं बल्कि भूगोल, सांस्कृतिक, धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व का परिणाम है। चलिए जानते हैं इसके बारे में विस्तार से...
उत्तरकाशी से ही निकलती हैं दोनों नदियां
गंगा और यमुना दोनों नदियां ही हिमालय की बर्फीली पहाड़ियों से ही निकलती है, लेकिन इनका संगम प्रयागराज में होता है। ऐसा इसलिए क्योंकि यमुना नदी गंगा से लगभग 1376 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद प्रयागराज में समाती है जबकि गंगा नदी गंगोत्री से निकलने के बाद ऋषिकेश, हरिद्वार होते हुए यूपी के बिजनौर में बहती है। इसके बाद गंगा नदी कानपुर से होते हुए प्रयागराज में पहुंचती है। यमुना नदी फैजाबाद, यूपी-हरियाणा की सीमा से बहते हुए दिल्ली-आगरा होते हुए प्रयागराज में गंगा से मिलती है।
प्रयागराज में ही क्यों होता है मिलन?
अब अगर आप यह सोच रहे हैं कि दोनों नदिया इतनी लंबी दूरी तय करने के बाद प्रयागराज में आकर क्यों मिलती है तो बता दें कि भले ही दोनों नदियां उत्तरकाशी में हिमालय से निकलती हो, लेकिन गंगोत्री और यमुनोत्री के बीच लगभग 227 किलोमीटर की दूरी है। दोनों नदियों के रास्ते में ऊंचाई में भी अंतर है, जिसके कारण उनके रास्ते अलग-अलग हो जाते हैं।
क्यों खास है प्रयागराज?
प्राचीन ग्रंथों में प्रयाग को "तीर्थराज" कहा गया है यानी सभी तीर्थों में सबसे श्रेष्ठ। यहां केवल गंगा और यमुना ही नहीं बल्कि एक तीसरी अदृश्य नदी सरस्वती का भी मिलन होता है इसलिए इसे 'त्रिवेणी संगम' कहा जाता है। धार्मिक नजरिए से इस मिलन को बहुत ही पवित्र माना जाता है। महाकुंभ, कुंभ, अर्धकुंभ जैसे महान स्नान पर्व यहीं आयोजित होते हैं।