हजरत ईसा के सामने लोगों ने एक धोबी को पेश किया और शिकायत की कि वह बड़ा ही दुष्ट है, तमाम आदमियों को तंग कर रखा है। हजरत की जुबान से निकला कि शाम तक उसे दंड मिल जायेगा। धोबी कपड़े धोने चला गया। उसी समय कोई भूखा फकीर वहां जा पहुंचा। धोबी ने उसे एक रोटी खाने को दी। फकीर ने दुआ दी, ‘तेरा भला हो।’ भूखा जानकर धोबी ने दूसरी रोटी दी, तब फकीर ने कहा, ‘तेरी अचिंत्य आफतें दूर हों।’ उसी प्रकार तीसरी रोटी खाकर फकीर ने दुआ दी, ‘तेरा दिल बुराइयों से पाक हो।’ शाम को धोबी जिंदा घर वापस आया। लोग हजरत ईसा से जाकर बोले, ‘धोबी तो अब तक जिंदा है।’ उस समय हजरत ने कहा, ‘जिस वक्त उसके लिए हमारी तरफ से बददुआ हुई, उसी समय एक काले नाग को उसे डंसने का हुक्म हुआ। उसकी गठरी खोलकर देखा जाये, वह काला नाग उसी में पड़ा है। लेकिन उस फकीर की दुआ ने नाग का मुंह बंद कर दिया। अब वह धोबी पहले जैसा तो रहा नहीं। उसका दिल साफ हो चुका है। आगे से अब वह तुम्हें तकलीफ नहीं देगा।’ प्रस्तुति : देवेन्द्रराज सुथार