हर की पैड़ी से पहली कांवड़ परशुराम ने उठाई
शिवलिंगों की स्थापना के लिए परशुराम ने गंगा से पत्थर निकाले तो पाषाण करुण क्रंदन करने लगे। वे कहने लगे कि उन्हें मां गंगा से अलग न करो। तब परशुराम ने वचन दिया कि पत्थरों को शिवलिंग के रूप में जहां जहां स्थापित किया जाएगा, श्रावण मास में शिवभक्त हर की पैड़ी से जल लेकर वहां वहां जलाभिषेक करेंगे।
मान्यता है कि इस जगत की पहली कांवड़ मातृ-पितृ भक्त श्रवण कुमार ने उठाई। सच कहें तो कांवड़ के वर्तमान स्वरूप का प्रकल्प ही बहंगी कांवड़ बनाकर श्रवण ने दिया था। उन्होंने तराजू की तरह दोनों ओर दो बहंगी लटकाई। दोनों में अपने नेत्रहीन माता-पिता को बिठाकर समस्त तीर्थों की यात्रा कराई। कांवड़ का मूल स्वरूप श्रवण ने ही दिया।
कालांतर में वन से आने के बाद भगवान राम अपने गुरु वशिष्ठ के कहने पर बैजनाथ बाबाधाम गए और श्रावण के सोमवार को अपने आराध्य भगवान शिव का जलाभिषेक किया। रामेश्वरम् में शिवलिंग की स्थापना के बाद वे युद्ध के लिए गए। कथा है कि सीता के साथ वापस लौटते हुए उन्होंने पुनः रामेश्वरम् में जलाभिषेक किया। युद्ध से पहले श्रावण प्रदोष के दिन शिव भक्त रावण ने भी विशेष जलाभिषेक किया था। समुद्र मंथन से निकला विष पीने के बाद भगवान शंकर का जलाभिषेक स्वयं भगवती गंगा ने किया और उनके नीलकंठ से निकलती विष ज्वालाओं को शांत किया।
बात यदि परंपराओं और मान्यताओं की करें तो हर की पैड़ी से पहली कांवड़ त्रेतायुग में भगवान परशुराम ने स्वयं उठाई थी। यद्यपि तब कांवड़ यात्रा का आज जैसा रूप नहीं था। शिवलिंगों की स्थापना के लिए परशुराम ने गंगा से पत्थर निकाले तो पाषाण करुण क्रंदन करने लगे। वे कहने लगे कि उन्हें मां गंगा से अलग न करो। तब परशुराम ने वचन दिया कि पत्थरों को शिवलिंग के रूप में जहां जहां स्थापित किया जाएगा, श्रावण मास में शिवभक्त हर की पैड़ी से जल लेकर वहां वहां जलाभिषेक करेंगे।
दुष्ट राजाओं के दलन के बाद परशुराम ने यज्ञ करने का निर्णय लिया। इस यज्ञ का आयोजन बागपत के पास वर्तमान पुरा महादेव मंदिर परिसर में किया गया। हरिद्वार की हर की पैड़ी से निकाले शिवलिंग से पहला मंदिर पुरामहादेव के रूप में स्थापित हुआ। इस संबंध में आचार्य बृहस्पति और पंडित विष्णु शर्मा ने पुस्तक भी लिखी है। पुरा के बाद परशुराम के शिष्यों ने देश के सैकड़ों नगरों गांवों में शिव मंदिर बनाए। गंगा तट पर दिए गए वचन का पालन कराने के लिए सावन में जगह-जगह से आए श्रद्धालु गंगाजल लेने कांवड़धारियों के रूप में आते हैं। हरिद्वार के बाद अब काशी, प्रयाग आदि तीर्थों से भी जल ले जाया जाने लगा है।
कांवड़ यात्रा को लेकर कुछ अन्य पुरा कथाएं भी पुराणों में उपलब्ध हैं। कांवड़ यात्रा वस्तुतः शिव मंदिरों तक गंगाजल की सबसे बड़ी पैदल यात्राओं से जुड़ी हुई है। एक बार फिर लाखों कांवड़िए गंगा को यात्रा कराने निकल पड़े हैं। हरियाणा और पंजाब के कांवड़ियों से धर्मनगरी भरी हुई है।