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पंचतत्वों से प्रेरित पंचनंदी शिवधाम

ज्योतेश्वर महादेव
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उत्तराखंड के ज्योतिर्मठ स्थित ज्योतेश्वर महादेव मंदिर न केवल आदि शंकराचार्य की तपोभूमि है, बल्कि यह पंचनंदी विराजमान होने के कारण देश का एकमात्र अनोखा शिवधाम भी है। पंचतत्वों की प्रतीकात्मकता, आस्था, परंपरा और रहस्य से जुड़ा यह शिवालय आध्यात्मिक साधना का विशेष केंद्र माना जाता है।

अक्सर यह देखा जाता है कि शिव मंदिरों में शिवलिंग के ठीक सामने भगवान शिव के गण नंदी की मूर्ति स्थापित की जाती है। देश के 12 ज्योतिर्लिंगों में दो ज्योतिर्लिंग ओंकारेश्वर महादेव और काशी विश्वनाथ अपवाद हैं। यहां नंदी शिवलिंग के ठीक सामने न होकर बगल में स्थापित किए गए हैं। देश में एक ऐसा शिवालय, जहां एक-दो नहीं बल्कि पांच नंदी विराजमान हैं। देश का एेसा एकमात्र शिवालय उत्तराखंड के ज्योतिर्मठ विकासखंड का ज्योतेश्वर महादेव है।

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ज्योतेश्वर महादेव मंदिर की स्थापना पांचवीं सदी में भागवद‍्पाद आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा की गई थी। ज्योतिर्मठ वह स्थान है, जहां दिग्विजय यात्रा के बाद आदि गुरु शंकराचार्य का आगमन हुआ। यहीं पर उन्होंने कल्पवृक्ष के नीचे बैठकर ज्ञान (ज्योति) प्राप्त किया, जिसके चलते इस स्थान का नाम ज्योतिर्मठ हुआ और जो शिवलिंग उन्होंने स्थापित किया। वह ज्योतेश्वर महादेव के नाम से विख्यात है। मंदिर की विशेषता यह भी है कि इसके गर्भ गृह में शिवलिंग के साथ नंदी भी विराजमान है।

ज्योतिर्मठ स्थित ज्योतेश्वर महादेव मंदिर में पांच नदियों की आकृति अलग-अलग है। तीन नंदी एक ही आकर के हैं। जिनमें माला, गले में घंटी की आकृति उकेरी गई है। लेकिन दो सामान्य हैं। काले पत्थरों को तराश कर नंदी की आकृति में उकेरा गया है। मंदिर कल्पवृक्ष (शहतूत प्रजाति) के नीचे स्थित है। मंदिर के अंदर गर्भगृह में लिंग है। वृक्ष के नीचे ही परिक्रमा पथ है।

पूजा व्यवस्था और परंपरा

वर्तमान ज्योतेश्वर महादेव मंदिर श्री बदरीनाथ-श्री केदारनाथ मंदिर समिति के अधीन है। समिति के द्वारा ही यहां पर पूजा की व्यवस्था की जाती है। शिवरात्रि के दिन यहां भव्य मेला लगता है। पूर्व में लोग स्थानीय उपज रामदाना, ओगल-फाफर आदि चढ़ाते थे। आधुनिकता के दौर में यह परंपरा समाप्ति की कगार पर है।

अटूट भक्ति का प्रतीक नंदी

शिव मंदिर के सामने नंदी की मूर्ति स्थापित करने के पीछे मुख्य वजह यह है कि नंदी भगवान शिव के परम भक्त होने के साथ ही उनके वाहन भी हैं। मान्यता है कि भगवान शिव ने नंदी को वरदान दिया कि जहां वो विराजमान होंगे वहां नंदी भी रहेंगे। इसलिए शिवालयों में नंदी को शिवलिंग के सामने स्थापित किया जाता है। श्रद्धालु पहले नंदी के दर्शन करते हैं, उसके बाद शिव के। नंदी भगवान शिव के प्रति अटूट भक्ति का प्रतीक हैं। नंदी को शिव मंदिर का द्वारपाल भी माना जाता है। इसलिए मंदिर के रक्षक के तौर पर। श्रद्धालु लोग जब शिव के दर्शन को जाते हैं तो नंदी के कान में कुछ गुनगुनाते हैं। ऐसा माना जाता है कि वो अपनी मनोकामना को नंदी द्वारा भगवान शिव तक पहुंचाते हैं।

मगर्भ गृह के समीप नंदी

भगवत्पाद आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित ज्योतेश्वर महादेव मंदिर की एक विशेषता यह भी है कि यहां न केवल पांच नंदी शिवलिंग के सम्मुख विराजमान हैं। बल्कि मंदिर के गर्भ गृह में भी एक नंदी है। यह शिवलिंग के समीप ही स्थापित है। शायद यह देश का इकलौता ऐसा शिवालय है, जहां शिवलिंग के समीप ही नदी विराजमान है। बुजुर्ग बताते हैं कि उन्होंने मंदिर के अंदर नंदी को ऐसे ही देखा।

परंपरा के विपरीत स्थान

देश के सभी शिवालय और ज्योतिर्लिंगों में शिवलिंग के सामने नंदी विराजमान हैं। लेकिन मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में स्थित ओंकारेश्वर मंदिर में नंदी शिवलिंग के सामने विराजमान न होकर दाईं तरफ हैं। इसके अलावा काशी विश्वनाथ मंदिर वाराणसी में भी नंदी शिवलिंग से अलग स्थापित हैं।

दो नंदी वाला शिव मंदिर

भारत में एक ऐसा शिव मंदिर है जहां एक से अधिक नंदी विराजमान हैं। यह मंदिर गुजरात के नर्मदा नदी के तट पर स्थित है और इसे ‘जुड़वा नंदी मंदिर’ के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर में, भगवान शिव दो रूपों में एक ही छत के नीचे विराजमान हैं और उनके सामने दो नंदी भी आमने-सामने स्थापित हैं।

धर्माचार्यों का कथन

ज्योतिर्मठ के प्रभारी का कहना है कि ज्योतेश्वर महादेव परिसर में स्थित शिवालय में पांच शिव गण नंदी हैं। यह आदि गुरु शंकराचार्य जी की तपस्थली है। यहां कल्पवृक्ष के नीचे उन्होंने ज्ञान प्राप्त किया। इस कारण इस नगर का नाम ज्योतिर्मठ पड़ा। उन्होंने अपने आराध्य भगवान शिव की पूजा-अर्चना के लिए यहां जिस लिंग की स्थापना की, इसका नाम ज्योतेश्वर महादेव रखा। पांच शिव गण के बारे में वह कहते हैं कि शंकराचार्य पंचायतन पूजा के प्रवर्तक हैं। हमारा शरीर पांच भौतिक तत्वों से बना है। इसलिए पांच का अध्यात्म में विशेष महत्व है।

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