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एकदा

नियति का सत्य एक बार एक मुनिवर अपने अनुयायियों को प्रवचन दे रहे थे तभी एक शिष्य ने मुनिवर से प्रश्न किया कि गुरुवार सत्य क्या है? मैं बहुत समय से इस सोच में उलझा हुआ हूं और निश्चय ही...
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नियति का सत्य

एक बार एक मुनिवर अपने अनुयायियों को प्रवचन दे रहे थे तभी एक शिष्य ने मुनिवर से प्रश्न किया कि गुरुवार सत्य क्या है? मैं बहुत समय से इस सोच में उलझा हुआ हूं और निश्चय ही नहीं कर पा रहा हूं कि सत्य क्या है? मुनिवर ने उन्हें समझाते हुए कहा कि हे शिष्य! जैसे एक ही डाली पर खिले दो पुष्पों में से एक को स्थान मिलता है भगवान की पूजा वाली थाली में तो दूसरे को स्थान मिलता है अर्थी वाली थाली में। ऐसे ही एक मेघ से गिरी दो बूंदों में से एक तो ‘सीप’ में गिरकर मोती बन जाती है और दूसरी अंगार पर गिरकर ‘भस्म’ हो जाती है। यह सब निर्भर करता है कि किसको कैसी ‘परिस्थिति’ मिली है। अनुकूल स्थितियां ही सही मंजिल तक पहुंच पाती हैं यही ‘अटूट सत्य’ है। अतः सर्वदा अच्छे व सदाचारी व्यक्ति की संगत रखनी चाहिए। प्रस्तुति : संदीप भारद्वाज

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