सिर्फ एक दिन खुलने वाला नागमंदिर
उज्जैन स्थित श्री महाकालेश्वर मंदिर के शिखर पर विराजित नागचंद्रेश्वर मंदिर वर्ष में केवल नागपंचमी के दिन खुलता है। पौराणिक मान्यताओं, नागभक्ति, तक्षक नाग की तपस्या और शिव से अमरता प्राप्त करने की कथा इसे अद्वितीय बनाती है। यह श्रद्धा, रहस्य और परंपरा का अनुपम संगम है।
नाग अर्थात् सर्प को भगवान शिव का कंठहार माना गया है और सनातन धर्म में नाग पूजा की परंपरा पौराणिक है। श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को नागपंचमी के रूप में मान्यता प्राप्त है और इस दिन नाग पूजा का विशेष महत्व माना गया है।
उज्जयिनी अर्थात उज्जैन, भगवान शिव की नगरी है और यहां मृत्युंजय भगवान महाकाल स्वयंभू ज्योतिर्लिंग स्वरूप में अधिष्ठित हैं। उज्जयिनी नाग भूमि के रूप में भी जानी जाती है। यहाँ नव नाग के स्थानों का उल्लेख प्राचीन ग्रंथों में मिलता है —नागझिरी, नाग तलैया (जिसे लोग नाग बाबा की तलाई भी कहते हैं), विक्रम स्थल (संभवतः रुद्र सागर स्थित विक्रम टीला), महाकाल मंदिर स्थित कोटितीर्थ, भूखी माता, शक्ति स्थल (सिद्धवट क्षेत्र) व संगम तीर्थ आदि स्थान नागों के वासस्थल माने जाते हैं। अतः यहां नाग पूजन का महत्व और अधिक बढ़ जाता है।
यहां विश्वप्रसिद्ध श्री महाकालेश्वर मंदिर के शीर्ष पर श्री नागचंद्रेश्वर का अनूठा मंदिर है, जो वर्ष में केवल नागपंचमी के दिन ही खुलता है और दर्शनार्थियों को 24 घंटे लगातार भगवान नागचंद्रेश्वर के दर्शन होते हैं। इस नागचंद्रेश्वर मंदिर में दीवार में 11वीं शताब्दी की परमार कालीन शिव प्रतिमा स्थापित है। छत्र रूप में सर्प का फन फैला हुआ है और इस सर्प के आसन पर भगवान शिव व मां पार्वती अपने पुत्र भगवान श्रीगणेश के साथ विराजित हैं। समीप ही उनका वाहन नंदी व सिंह भी विराजित हैं। भगवान शिव के गले व भुजाओं में भी सर्प लिपटे हुए हैं। ऐसी मान्यता है कि श्री महाकालेश्वर मंदिर के जीर्णोद्धार के समय यह प्रतिमा नेपाल से मंगाई गई थी।
नागपंचमी पर यहां दर्शन के लिए देशभर से हजारों श्रद्धालु पहुंचते हैं। भव्य महाकाल मंदिर के शीर्ष पर स्थित इस मंदिर में पहुंचने के लिए बना प्राचीन मार्ग अत्यंत संकरा है। अतः विगत कुछ वर्षों से यहां प्रशासन द्वारा मंदिर के बाहरी हिस्से में लोहे का अस्थायी फोल्डिंग चढ़ाव व पुल का निर्माण कर दर्शनार्थियों को दर्शन हेतु सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है।
प्रतिवर्ष मंदिर के पट नागपंचमी की पूर्व रात्रि 12 बजे श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए खोले जाते हैं। 24 घंटे लगातार दर्शन के उपरांत नागपंचमी की रात्रि 12 बजे मंदिर के पट पुनः साल भर के लिए बंद कर दिए जाते हैं। नागपंचमी पर मंदिर में त्रिकाल पूजा होती है। नागपंचमी की पूर्व रात्रि 12 बजे पट खुलने के पश्चात पंचायती महानिर्वाणी अखाड़े के महंत व प्रशासन के अधिकारी प्रथम पूजा करते हैं। नागपंचमी पर दोपहर को 12 बजे शासन की ओर से शासकीय पूजा की जाती है। इसी दिन रात्रि 8 बजे संध्या आरती के उपरांत मंदिर प्रबंध समिति की ओर से महाकाल मंदिर के पुजारी व पुरोहित श्री नागचंद्रेश्वर भगवान की पूजा करते हैं।
यह मंदिर वर्ष में केवल एक ही दिन के लिए क्यों खुलता है? इसके पीछे दो कारण माने जाते हैं। पहला तो यह कि मृत्युलोक के स्वामी बाबा महाकाल इस मंदिर की तल मंजिल पर अधिष्ठित हैं। मान्यतानुसार, मंदिर के शीर्ष पर स्थित नागचंद्रेश्वर मंदिर के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं का प्रतिदिन शीर्ष पर पहुंचना उचित नहीं माना जाता। यह बाबा महाकाल के प्रति आस्था व श्रद्धा की भावना के भी विपरीत माना जाता है।
दूसरा कारण एक पौराणिक मान्यता है। इस मान्यता के अनुसार सर्पराज तक्षक ने भगवान शिव की यहां कठोर तपस्या कर उन्हें प्रसन्न किया और अमरता का वरदान प्राप्त कर लिया था। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव से अमरता प्राप्त करने के बाद सर्पराज तक्षक ने भगवान शिव से उनकी शरण में ही निवास करने की इच्छा प्रकट की और तब से ही वे यहां विराजित हैं। समय-समय पर यहां श्रद्धालुओं को इनके दर्शन होते रहे हैं। सर्पराज तक्षक के बाबा महाकाल की शरण में निवास करने के पीछे एकांतवास की मंशा भी थी। अतः वर्ष में केवल एक दिन मंदिर में दर्शन की व्यवस्था कर सर्पराज तक्षक के एकांतवास में विघ्न न होने की इसी मंशा का ध्यान रखा गया है।
उज्जयिनी के पौराणिक महत्व के 84 महादेवों में से एक पटनी बाजार स्थित नागचंद्रेश्वर महादेव मंदिर और शक्तिपीठ मां हरसिद्धि के प्रांगण में स्थित कर्कटेश्वर महादेव मंदिर भी उज्जैन में नाग पूजा के महत्व को दर्शाते हैं।