हृदय का संगीत
एकदा
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मीरा बाई कृष्ण भक्ति में लीन रहती थीं। एक बार वे मंदिर में बैठकर भजन गा रही थीं और सितार बजा रही थीं। अचानक सितार का तार टूट गया और स्वर बिगड़ गया। पास खड़े कुछ लोग हंसने लगे—‘अब तुम्हारा भजन कैसे होगा? बिना बाजे के सुर अधूरे ही रहेंगे।’ मीरा ने शांत भाव से टूटा हुआ सितार एक ओर रख दिया और दोनों हाथ जोड़कर गाने लगीं। उनकी आंखों से आंसू बह रहे थे, पर स्वर पहले से भी मधुर और हृदयस्पर्शी था। भजन पूरा होने के बाद उन्होंने भक्तों से कहा—‘संगीत वाद्य से नहीं, हृदय से निकलता है। यदि हृदय कृष्ण से जुड़ा हो तो टूटे तार भी साधन बन जाते हैं। साधन छिन जाने से भक्ति रुकती नहीं, बल्कि और गहरी हो जाती है।’ लोग स्तब्ध रह गए। वे समझ गए कि मीरा का समर्पण बाहरी साधनों पर नहीं, बल्कि भीतर की श्रद्धा पर टिका है।
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