एक युवक कुम्हार का काम करता था। वह अपने व्यापार के अच्छी तरह चलने का कारण अपना अच्छा भाग्य मानता था। एक बार भगवान महावीर उनके गांव से गुजरे । भगवान महावीर ने उससे कहा, ‘भलेमानस, हर कार्य पुरुषार्थ से होता है। पहले पुरुषार्थ द्वारा व्यक्ति मेहनत करता है तब उसका भाग्य चमकता है।’ कुम्हार महावीर की इस बात से सहमत नहीं था। उसका मानना था कि भाग्य प्रबल होने पर ही व्यक्ति व्यापार, शिक्षा, रोजगार आदि में उन्नति कर पाता है। महावीर बोले, ‘अच्छा बताओ, ये मिट्टी के बरतन कौन बनाता है?’ युवक बोला, ‘मैं बनाता हूं।’ ‘तुम मिट्टी के बरतन ही क्यों बनाते हो?’ ‘क्योंकि यही मेरी नियति है।’ भगवान महावीर फिर बोले, ‘यदि कोई तुम्हारे इन बरतनों को फोड़ दे तो?’ कुम्हार बोला, ‘मैं यह मान लूंगा कि इनके भाग्य में फूटना ही लिखा होगा।’ महावीर मुस्कुरा कर बोले, ‘यदि कोई तुमसे अकारण ही मार-पीट करने लगे तो क्या करोगे?’ कुम्हार गुस्से से बोला, ‘कोई मुझे अकारण क्यों मारेगा? यदि वह ऐसा करेगा तो मैं भी उसे मारूंगा।’ जवाब सुनकर भगवान महावीर बोले, ‘अब तुम भाग्य के बीच में क्यों आ रहे हो। हो सकता है कि तुम्हारे भाग्य में अकारण पिटना होगा।’ यह सुनते ही कुम्हार की आंखें खुल गईं और उसे समझ आ गया कि वास्तव में पुरुषार्थ ही भाग्य को निर्धारित करता है। उसने भगवान महावीर से क्षमा मांगी।
प्रस्तुति : रेनू सैनी