नीरोत्तमा शर्मा
सनातन धर्म की मर्यादाओं में प्रतिष्ठित, विष्णु के छठे अशांवतार, महान पराक्रमी, भक्ति एवं शक्ति में पारंगत, ओजस्वी, तेजस्वी, दीन-हीन व दलितों के उद्धारक, मातृ-पितृ भक्त भगवान परशुराम ऋषिकुल में जन्म लेने वाले एकमात्र अवतार हैं। इन्होंने पन्द्रह वर्ष की आयु में ही अपने दादा ऋचीक एवं पिता जमदग्नि से वेद और धनुर्वेद की शिक्षा प्राप्त कर ली थी। संजीवनी विद्या जो भार्गव वंश में वंशानुगत दी जाती थी, इसे भी बालक ‘राम’ ने अपने दादा से विधिवत् ग्रहण किया। परशु चलाने की विद्या इन्होंने भगवान शिव से ग्रहण की और वहीं से इनका नाम परशुराम हुआ।
चारों वेदों के ज्ञाता, पीठ पर धनुष एवं दिव्य बाणों से भरा तुणीर धारण किए अदम्य साहसी परशुराम ने सभ्यता एवं संस्कृति की रक्षा हेतु निरन्तर आततायियों से युद्ध किए। उस समय वसुधा अत्याचारी, दुराचारी, उच्छृंखल और धर्म विरोधी शासकों से पीड़ित थी। प्रजा जन त्राहि-त्राहि कर रहे थे। ऐसे समय में परशुराम ने अकेले ही लाखों राक्षसों का संहार किया और कभी कोई युद्ध नहीं हारे। प्रवृत्ति ऐसी कि सदा परोपकार के लिए जिए और निवृत्ति ऐसी कि परम वैरागी, त्यागी बन कर सर्वस्व दान कर दिया। परशुराम जी जैसा दानी और त्यागी कौन हो सकता है, जिन्होंने इक्कीस बार पृथ्वी को विजित किया, भूपति बन गये, लेकिन कश्यप ऋषि के आदेश पर समस्त पृथ्वी का दान करके महेन्द्र पर्वत पर निवास करने लगे। अपने शस्त्रास्त्र तक द्रोणाचार्य को दान कर दिए।
चिरंजीवी परशुराम के समक्ष समस्त प्राणी नतमस्तक होते हैं और अपनी पुण्य धरा का संबंध भगवान परशुराम के साथ जोड़ने में गौरवान्वित महसूस करते हैं। यही कारण है कि सम्पूर्ण भारत में हमें भगवान परशुराम से संबंधित तीर्थ स्थान उपलब्ध होते हैं। हिमाचल में रेणुका नामक तीर्थस्थल को उनकी माता का पीहर माना जाता है, तो पंजाब में फगवाड़ा के पास खाटी धाम ऋषि जमदग्नि की तपोस्थली। हरियाणा का जामनी ग्राम व उत्तरप्रदेश में बुलन्दशहर के अन्तर्गत भृगुस्थल का संबंध भी उनसे है। वाराणसी के निकट भार्गवपुर, उत्तरकाशी जनपद में गंगनाणी, गुजरात में भृगुकच्छ भड़ौच का भी भगवान परशुराम से गहरा संबंध माना जाता है। असम वासियों का दृढ़ विश्वास है कि ब्रह्मपुत्र के जल का लाल रंग परशुराम के रक्तरंजित परशु के धोने के कारण है, तो सुदूर गोवा नगरी की तो उत्पत्ति ही भगवान के परशे से मानी जाती है। केरल में स्थित गिरी महेन्द्र तो प्रभु का निवास स्थान है ही। इसके अतिरिक्त अनेकानेक तीर्थस्थल भगवान परशुराम की गौरव गाथा कहते हुए यत्र-तत्र लोगों द्वारा पूजित व संरक्षित मिलते हैं।