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धीरज से ज्ञान

एकदा
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जब चार्ल्स डार्विन कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में पढ़ रहे थे, उनके प्रोफेसर जॉन हेन्सलो ने एक दिन उनसे पूछा, ‘डार्विन, तुम हर समय कीड़े-मकोड़ों और पत्थरों को क्यों इकट्ठा करते रहते हो? क्या तुम डॉक्टर नहीं बनना चाहते?’ डार्विन ने विनम्रता से उत्तर दिया, ‘सर, मैं प्रकृति की हर छोटी चीज में छिपे रहस्यों को समझना चाहता हूं। जब मैं एक कीड़े को देखता हूं, तो सोचता हूं कि यह इतना विशिष्ट रूप कैसे प्राप्त कर सका?’ प्रोफेसर ने कहा, ‘लेकिन तुम्हारे पिता चाहते हैं कि तुम एक सम्मानजनक पेशा अपनाओ।’ डार्विन मुस्कुराए, ‘मेरी जिज्ञासा मुझे चैन नहीं लेने देती। मैं जानना चाहता हूं कि प्रकृति कैसे काम करती है।’ उनकी यही जिज्ञासा और सीखने की ललक उन्हें एचएमएस बीगल जहाज पर पांच साल की यात्रा पर ले गई। इस यात्रा के दौरान उन्होंने गैलापागोस द्वीप समूह में विभिन्न प्रजातियों का अध्ययन किया। यह अध्ययन ही बाद में विकास के सिद्धांत का आधार बना। एक दिन किसी ने पूछा, ‘इतने वर्षों तक एक ही विषय पर काम करने का धैर्य कैसे रखा?’ डार्विन ने कहा, ‘सच्चा ज्ञान धीरज का फल है। प्रकृति के रहस्यों को समझने में समय लगता है, लेकिन हर नई खोज एक नई दुनिया का द्वार खोलती है।’ उनका यह दृष्टिकोण आज भी वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं के लिए प्रेरणास्रोत है।

प्रस्तुति : देवेन्द्रराज सुथार

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