भावदेव ने संन्यास ले लिया। लेकिन मन संन्यास में नहीं लग रहा था। बार-बार मां, पत्नी और पुत्र का स्मरण हो आता। उनको देखने के लिए वह वापस लौटे और गांव के बाहर ठहर गये। पहले लोगों से मां के बारे में पूछा तो पता चला कि उनका स्वर्गवास हो गया। फिर पत्नी के विषय में पूछा। उनके वापस आने की बात सुनकर पत्नी भी वहां आ गई। उसने समझ लिया कि संन्यासी का मन अस्थिर है। इन्हें प्रतिबोध देना चाहिए। उसकी गोद में छोटा बच्चा भी था। संयोग की बात कि वह वमन करने लगा। भावदेव से रहा नहीं गया। वे बोले, ‘कैसी तुम्हारी बुद्धि है, उसे रोकती क्यों नहीं?’ इस पर पत्नी बोली, ‘किस-किसको रोकूं महाराज! आप भी तो वही कर रहे हैं। जिसे त्याग दिया, फिर उसी में लिप्त होना चाहते हैं।’ भावदेव सचेत हो गए और पुन: संयम के पथ पर चल पड़े।
प्रस्तुति : निर्मला देवी