जीवन परिवर्तन और सामाजिक चेतना के प्रेरक प्रसंग
आदिकवि महर्षि वाल्मीकि का जीवन रूपांतरण, आत्मशोधन और समाज के प्रति चेतना की प्रेरणादायक मिसाल है। रत्नाकर से वाल्मीकि बनने की उनकी यात्रा यह दर्शाती है कि मानव संकल्प, साधना और सकारात्मक बदलाव से खुद को किसी भी ऊंचाई तक ले जा सकता है। वाल्मीकि जयंती केवल धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि सामाजिक समरसता और आत्मबल की प्रेरणा भी है।
आदिकवि महर्षि वाल्मीकि का जीवन रूपांतरण की एक ऐसी मिसाल है, जो हर किसी को पौरुष के बल पर स्वयं को किसी भी हद तक ऊपर उठाने की प्रेरणा देता है। पहले उनका नाम रत्नाकर था। किंतु एक दिव्य प्रेरणा के चलते उन्होंने ईश्वर की तपस्या का कठिन मार्ग अपनाया और अपने समूचे जीवन को पूरी तरह से बदल दिया। उनका यह बदलाव दुनिया के हर इंसान के लिए सहज प्रेरणा है कि मनुष्य अपने कर्मों और दृढ़ मान्यताओं से स्वयं में किसी हद तक सुधार कर सकता है। रामायण के रचयिता, संस्कृत साहित्य के आदिकवि वाल्मीकि वह महारथी हैं, जिन्होंने हिंदू धर्म और संस्कृति को कर्तव्य, नैतिकता, अनुशासन और आदर्श की शिक्षाएं दी हैं। उनका जन्मदिन या प्रकट दिवस धार्मिक के साथ-साथ बहुत अधिक सामाजिक महत्व भी रखता है। महर्षि वाल्मीकि जयंती इस बात को याद दिलाती है कि कोई व्यक्ति अगर दृढ़ निश्चय कर ले तो वह अपने व्यक्तित्व को किसी भी हद तक बदल सकता है।
हर साल महर्षि वाल्मीकि जयंती देश के अधिकांश हिस्सों में धूमधाम से मनाई जाती है। इस वर्ष यह 7 अक्तूबर को है। महर्षि वाल्मीकि जयंती हम सभी को यह प्रेरणा देती है कि हम अपने आपको किसी भी स्तर तक बदलने की क्षमता रखते हैं। यह जयंती समाज में भाईचारे, सह-अस्तित्व और सामाजिक न्याय की भावना को भी प्रोत्साहित करती है।
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार जब भगवान राम ने सीता जी को वनवास भेजा था, तब वे महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में ही रही थीं। कहा जाता है कि लव और कुश का पालन-पोषण तथा शिक्षा-दीक्षा महर्षि वाल्मीकि ने ही की थी। इसी कारण से वाल्मीकि आश्रमों का धार्मिक और सामाजिक महत्व है।
देश के कई स्थानों पर इस दिन महर्षि वाल्मीकि की शोभायात्रा में उनकी मूर्ति, जीवन से जुड़ी झांकियां और कवि-पत्रक प्रदर्शित किए जाते हैं। इस दौरान गरीबों और जरूरतमंदों को भोजन, वस्त्र आदि वितरित किए जाते हैं। इस दिन कवि सम्मेलन, नाटक, संगीत, नृत्य और बाल कलाकारों द्वारा रामायण आधारित प्रस्तुतियों का आयोजन होता है। विद्यालयों, आश्रमों और सामाजिक संगठनों में महर्षि वाल्मीकि से संबंधित शैक्षिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। धार्मिक आख्यानों के माध्यम से उनकी जीवनगाथा और रचना ‘रामायण’ को प्रस्तुत किया जाता है। अनुयायी इस दिन जप, तप और साधना से उन्हें स्मरण करते हैं तथा व्रत रखकर उनके पदचिह्नों पर चलने का संकल्प लेते हैं।
देश के अनेक हिस्सों में इस दिन मेले और रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं। अमृतसर के रामतीर्थ स्थल पर विशेष रूप से वाल्मीकि जयंती मनाई जाती है। मान्यता है कि यहीं पर उन्होंने तप किया और सीता जी को आश्रय दिया था। यहां उनकी आठ फीट ऊंची स्वर्ण पट्टिका युक्त मूर्ति स्थित है, जिसके दर्शन हेतु हजारों श्रद्धालु देश-विदेश से आते हैं। इसी प्रकार चेन्नई के तिरुवन्मियूर स्थित 1300 वर्ष पुराने वाल्मीकि मंदिर में भी इस दिन विशेष श्रद्धा के साथ पूजा-अर्चना होती है। कहा जाता है कि रामायण की रचना के पश्चात महर्षि वाल्मीकि ने यहीं विश्राम किया था। इ.रि.सें.