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Indian Tourist Destination : भूतों ने एक रात में किया था भगवान शिव के इस प्राचीन मंदिर का निर्माण, लेकिन रह गया अधूरा

Indian Tourist Destination : भूतों ने एक रात में किया था भगवान शिव के इस प्राचीन मंदिर का निर्माण, लेकिन रह गया अधूरा
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चंडीगढ़, 18 फरवरी (ट्रिन्यू)

Indian Tourist Destination : भारत अपने भव्य मंदिर ही नहीं, शानदार और प्राचीन वास्तुशिल्प चमत्कारों के लिए भी प्रसिद्ध है। मुरैना में स्थित ककनमठ मंदिर भी उन्हीं मंदिरों में से एक है जो अपनी भव्यता, सुंदरता और अनेक रहस्यों के लिए पूरी दुनिया में फेमस है। सबसे हैरानी की बात यह है कि इस प्राचीन मंदिर को किसी इंसान ने नहीं बल्कि भूतों ने बनाया है।

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भूतों ने किया था इस मंदिर का निर्माण

जी हां, ऐसा कहा जाता है कि इस प्राचीन मंदिर का निर्माण भूतों ने एक रात में कर दिया था, लेकिन सुबह होने तक मंदिर अधूरा रह गया। इस मंदिर को जो चीज इतनी अनोखी बनाती है, वह यह है कि इसे पत्थरों को एक-दूसरे के ऊपर रखकर बनाया गया था, वो भी सीमेंट, चूने या किसी भी बंधनकारी एजेंट का उपयोग किए बिना। बावजूद इसके यह मंदिर आज तक खड़ा है। गुरुत्वाकर्षण बल को चुनौती देने वाले इस मंदिर में लगे पत्‍थर आसपास के क्षेत्रों में कहीं भी नहीं मिलते।

कहां स्थित है मंदिर

ग्वालियर से लगभग 70 किमी दूर स्थित यह मंदिर घूमने के लिए एक दिलचस्प जगह है। जमीन से लगभग 115 फीट की ऊंचाई पर स्थित यह मंदिर वास्तव में एक रत्न है। इसके परिसर के बीच में एक विशाल शिवलिंग है। मध्य प्रदेश का अजूबा कहे जाना वाला इस मंदिर को देखने के लिए टूरिस्ट दूर-दूर से आते हैं।

ककनमठ मंदिर का इतिहास

वहीं, कुछ लोगों का मानना है कि ककनमठ मंदिर का निर्माण 11वीं शताब्दी में कछवाहा वंश के राजा कीर्ति ने अपनी पत्नी ककनावती के लिए किया था। चूंकि वह भगवान शिव की बहुत बड़ी भक्त थी। उनके राज्य में आसपास कोई शिव मंदिर नहीं था।

कभी भी गिर सकता है मंदिर

ककनमठ मंदिर खंडहर अवस्‍था में है। इसे देखने पर ऐसा लगता है कि वो कभी भी गिर सकता है। हालांकि मंदिर आज भी सुरक्षित खड़ा है। इसके आसपास के सभी मंदिर जीर्ण-शीर्ण अवस्था में हैं, जो इसे और भी रहस्मयी बनाता है।

बड़े-बड़े तूफान भी मंदिर की नींव तक नहीं हिला पाए। सैकड़ों साल बाद भी मंदिर का 120 फीट ऊंचा ऊपरी हिस्सा और गर्भगृह अभी भी सुरक्षित है। मंदिर की टूटी और जर्जर हो चुकी मूर्तियों के अवशेष को ग्‍वालियर के एक संग्रहालय में सुरक्षित रखा गया है।

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