मुख्य समाचारदेशविदेशहरियाणाचंडीगढ़पंजाबहिमाचलबिज़नेसखेलगुरुग्रामकरनालडोंट मिसएक्सप्लेनेरट्रेंडिंगलाइफस्टाइल

स्वतंत्रता के अग्रदूत

एकदा
Advertisement

वर्ष 1817 में पेशवा और अंग्रेजों के बीच भयंकर युद्ध हुआ। मराठा सेना ने पूरी शक्ति से युद्ध किया, परंतु भाग्य उनके प्रतिकूल था। पराजय के बाद पेशवा ने पुणे छोड़ दिया और वीर सैनिक राघोजी इस युद्ध में गंभीर रूप से घायल हो गए। अंग्रेज सैनिकों द्वारा किए गए अत्याचार से राघोजी ने तड़प-तड़पकर प्राण त्याग दिए। यह सुनकर उनके पुत्र लहूजी ने पिता की मृत्यु का प्रतिशोध लेने का निश्चय किया। उस समय उनकी आयु 24 वर्ष थी। समाज में विवाह का दबाव था, परंतु लहूजी ने देशसेवा को ही अपना उद्देश्य बना लिया। उन्होंने सह्याद्रि की पहाड़ियों में बसे गांवों के युवकों को संगठित कर एक सशक्त सेना बनाई, अस्त्र-शस्त्र एकत्र किए और अंग्रेज छावनियों पर हमले शुरू कर दिए। उनकी सेना में निर्धन और हाशिये पर गये जातियों के युवा शामिल थे। वर्ष 1857 की क्रांति में, कानपुर, ग्वालियर और झांसी के युद्धों में उनके सैनिकों ने अद्वितीय शौर्य का प्रदर्शन किया। लहूजी साल्वे जीवनभर अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्षरत रहे और भारत माता के सच्चे सपूत कहलाए।

प्रस्तुति : पूनम पांडे

Advertisement

Advertisement
Show comments