मोनिका शर्मा
हमारी लोक-संस्कृति के कई रंग सही मायनों में ‘साथ’ का सेलिब्रेशन कहे जा सकते हैं। इन पर्वों के भाव परिवार और जीवनसाथी की कुशलता चाहने से जुड़े हैं। हरतालिका तीज का त्योहार भी ऐसे आपसी जुड़ाव का ही उत्सव है। प्रकृति और प्रेम के रंगों वाला पर्व हरतालिका तीज, अखण्ड सौभाग्य और परिवार की खुशहाली के लिए किया जाने वाला व्रत है। शिव-पार्वती की जोड़ी का पूजन-वंदन कर महिलाएं परिवार की खुशी और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं।
आदर्श दाम्पत्य का पूजन
हरतालिका तीज का पर्व महिलाओं के मन में मौजूद पारिवारिक-सामाजिक आत्मीयता को महसूस करने का भी दिन है। जो सुखी रिश्तों की कामना से जुड़ी है। भाद्रपद महीने की शुक्ल तृतीया को हरतालिका तीज का पर्व मनाते हुए हर स्त्री अपनों की कुशलकामना का आशीष मांगती है। इस दिन व्रत करने वाली महिलाएं भगवान शिव और मां पार्वती के आदर्श दाम्पत्य को पूजती हैं। उनसे सुखद और स्नेहिल वैवाहिक जीवन का वर मांगा जाता है। यूं भी शिव-गौरी को जन्म-जन्मांतर का साथी माना गया है। स्नेह और समर्पण से भरा उनका नाता इतना जीवंत लगता है कि यह आम युगल के लिए भी प्रेरणादायी है। परिवार की कुशलता के लिए किये जाने वाले इस व्रत में शिव-पार्वती के साथ गणेश की भी पूजा होती है। प्रकृति और प्रेम के भाव से जुड़े इस पर्व पर महिलाएं मिट्टी से शिव परिवार बनाकर उसकी पूजा करती हैं। इस कामना के साथ कि उनका दाम्पत्य जीवन भी शिव-गौरी की तरह आपसी स्नेह से सराबोर रहे।
प्रकृति उपासना का उत्सव
जिस रुत में धरा हरियाली की चुनर ओढ़े होती है, उसी मौसम में आता है हरतालिका तीज का उत्सव। प्रकृति की हरी-भरी गोद में मनाया जाने वाला शिव-गौरी के पूजन का यह पर्व स्नेह भरे साथ को ही नहीं, प्रकृति को भी समर्पित है। पारिवारिक मोर्चे पर सुखद संसार और अटूट वैवाहिक बंधन के लिए किया जाने वाला यह व्रत प्रकृति के पूजन और सृजन से भी गहराई से जुड़ा है। बरसात की रुत में धरती की गोद में ही नहीं, अपनों के मन में भी स्नेह के अंकुर फूटते हैं। तीज का यह पर्व कई मायनों में रिश्तों की इन कोंपलों को सहेजने के अहसासों से ही जुड़ा है। रीत-रिवाज़ और लोकजीवन से जुड़ी ऐसी परम्पराएं बताती हैं कि स्त्रियों के मन में पारिवारिक बन्धनों से जुड़े भावनात्मक अहसास बहुत गहराई से बसे होते हैं। इतने गहरे कि स्त्री-मन और प्रकृति दोनों एकरूप लगते हैं। एक ओर हरियल धरा पर उल्लास के अनूठे रंग खिलते हैं, बरसती बूंदें धरती को सींचती हैं तो दूसरी ओर बहू-बेटियां अपनों की सलामती के लिए शिव-गौरी से अखंड सुहाग और सौभाग्य का आशीर्वाद मांगती हैं। ऐसे में देखा जाए तो शिव-पार्वती के दाम्पत्य की पूजा का पर्व, हरतालिका तीज प्रकृति के पूजन का भी उत्सव है।
उल्लास का पर्व
हरतालिका तीज के त्योहार का आधार दाम्पत्य जीवन की खुशहाली है, जो हर स्त्री अपनी मन्नतों में मांगती है। सजी-संवरी धरा वाली इस रुत में महिलायें मेहंदी, चूड़ी, चूनर जैसे सभी सुहाग चिन्ह पहन, शिव परिवार की आराधना कर अखंड सौभाग्य का वर मांगती हैं। रिश्तों के लगाव और चाव का यह पर्व स्त्रीमन को नए रंग में रंग देता है। ये रंग आस्था, उमंग, सौंदर्य और प्रेम का इन्द्रधनुष रचते हैं। सखियों संग मनाया जाने वाला अनोखा उत्सव हरतालिका तीज, स्नेह और सौभाग्य के इन्द्रधनुषी रंग लिए बहू-बेटियों के जीवन में खुशियां लाता है। रोज़मर्रा की भागदौड़ में जुटी महिलायें कुछ पल अपनी सखियों के साथ बिता पाती हैं। महिलाएं एकत्रित हो लोकगीत गाती हैं। रात भर जागरण करती हैं। सज-धजकर सखियों के साथ ऊर्जा और उल्लास के साथ इस कठिन व्रत के अनुष्ठान को पूरा करती हैं। मन-जीवन में उमंग भरने वाला लोकजीवन में रचा-बसा यह पर्व एक सुंदर पारंपरिक उत्सव बन जाता है। हर्षित प्रकृति संग स्त्री-मन को आनंदित करने वाला यह पर्व मन-जीवन को ऊर्जा देने वाला सुंदर उत्सव है।
अपनेपन के भाव को पोषण
महिलाओं में मन में बसी हर आस्था और आराधना अटूट वैवाहिक जीवन की चाह से जुड़ी होती है। शिव परिवार के वंदन से जुड़े इस पर्व पर कई विवाहित स्त्रियां तो निर्जला व्रत रखकर पति की लंबी आयु और सुखद दाम्पत्य जीवन के लिए प्रार्थना करती हैं। माना जाता है कि मां गौरी और भगवान शिव की पूजा सौभाग्यदायिनी होती है। शिव-पार्वती का दाम्पत्य एक पावन और अटूट बंधन का प्रतीक है। इसीलिए जीवनसाथी के आयुष्य और परिवार की मंगल की कामना से जुड़ा यह पर्व महिलायें पूरे मन से मनाती हैं, जो किसी तप से कम नहीं। मान्यता है कि पार्वती के कठिन जप-तप के बाद इस दिन कई सौ सालों बाद शिव से पार्वती का पुनर्मिलन हुआ था। ऐसे में वैवाहिक जीवन की खुशियों से जुड़ी पावन सोच को समर्पित यह त्योहार स्त्रीमन की उस भावना का प्रतीक है, जिसमें अपनों की कुशलता से बढ़कर कुछ नहीं।