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कर्मों का खेल

एकदा
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जब रावण ने जटायु के दोनों पंख काट डाले तो गिद्धराज जटायु काल से कहते हैं, ‘ए मौत! आगे बढ़ने की कोशिश मत करना। मैं मौत को स्वीकार तो करूंगा, पर प्रभु श्रीराम को सीताहरण की गाथा सुनाने के बाद।’ महाभारत के भीष्म पितामह जो महान तपस्वी, नैष्ठिक ब्रह्मचारी हैं, बाणों की शय्या पर लेट कर मौत का इंतजार कर रहे थे। भगवान कृष्ण मिलने जाते हैं तो भीष्म पितामह के द्रौपदी के सम्मान की रक्षा में असफल रहने के कारण मन ही मन भीष्म पितामह पर प्रश्नवाचक दृष्टि डालते हैं और भीष्म पितामह भगवान कृष्ण को देखकर रोते हैं। रामायण का एक अन्य दृश्य है कि गिद्धराज जटायु भगवान की गोद रूपी शय्या पर लेटे हैं, भगवान रो रहे हैं और जटायु हंस रहे हैं। वहीं महाभारत में भीष्म पितामह रो रहे हैं और भगवान कृष्ण हंस रहे हैं। अंत समय में जटायु को भगवान श्रीराम की गोद की शय्या मिली तो भीष्म पितामह को बाणों की शय्या। जटायु अपने कर्म के बल पर अंत समय में भगवान की गोद रूपी शय्या में हंसते हुए प्राण त्याग रहा है दूसरी ओर बाणों की शय्या पर भीष्म पितामह रोते हुए प्राण त्याग रहे हैं। भीष्म पितामह, द्रौपदी के सम्मान की रक्षा में करने में समर्थ होते हुए भी असमर्थ बने रहे वहीं कीर्तिवान जटायु माता सीता के सम्मान की रक्षा हेतु असमर्थ होते हुए रावण से संघर्ष करते रहे और प्रभु राम की गोद में हंसते हुए प्राण त्यागे। यही है कर्मों का खेल।

प्रस्तुति : राजेंद्र कुमार शर्मा

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