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बुराई-प्रशंसा से मुक्ति

एकदा
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एक अरब देश में एक उच्च कोटि के फकीर रहते थे। लोगों की धारणा थी कि वे बहरे हैं, इसलिए उन्हें ‘बहरा हातिम’ कहा जाता था। एक दिन कुछ लोग उनके दर्शन को आए। वे फकीर के पास बैठे थे कि अचानक एक मधुमक्खी मकड़ी के जाल में फंस गई और छुटकारा पाने के लिए छटपटाने लगी। तभी हातिम ने कहा, ‘ऐ लालची मधुमक्खी! अब क्यों तड़फ रही हो? तुम शक्कर, शहद, पराग या कंद के लोभ में मकड़ी के जाल में फंस गई हो। अब फंसी हो तो लोभ का परिणाम भुगतना होगा।’ यह सुनकर सामने बैठे लोग हैरान रह गए कि बहरे हातिम कैसे बोलने लगे और मधुमक्खी की भिनभिनाहट कैसे सुन ली। एक व्यक्ति ने पूछा तो संत हातिम ने कहा, ‘मैं अपने कान में किसी की बुराई और अपनी बड़ाई के शब्द नहीं आने देता। लोग मुझे बहरा समझकर बेकार की बातें नहीं करते। मैं बुरे शब्द सुनने से बच जाता हूं। यदि कोई बहरा समझकर मेरे दोषों का वर्णन करता है, तो मैं उन्हें चुपचाप दूर करने का प्रयास करता हूं। इस तरह बहरा होने का दिखावा करते हुए मुझे कई लाभ मिल जाते हैं।

प्रस्तुति : डॉ. मधुसूदन शर्मा

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