व्रत, साधना और आध्यात्मिक जागरण का उत्सव
यह पर्व भगवान विष्णु के योगनिद्रा में जाने का प्रतीक है और चातुर्मास की शुरुआत करता है। चार महीने के इस धार्मिक समय में व्रत, संयम और साधना का विशेष महत्व होता है। इस दिन पूजा, व्रत और दान-पुण्य से व्यक्ति पापों से मुक्ति पाता है और आत्मशुद्धि की ओर अग्रसर होता है।
आर.सी. शर्मा
देवशयनी एकादशी, जिसे आषाढ़ी और पद्मा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म का एक अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है। यह दिन भगवान विष्णु के योगनिद्रा में जाने का प्रतीक है। इसी दिन से भारतीय संस्कृति में चातुर्मास यानी चार महीने का धार्मिक संवत्सर आरंभ होता है, जिसे पारंपरिक रूप से धार्मिक संस्कारों तथा वैवाहिक आयोजनों आदि के विराम का समय माना जाता है।
इस वर्ष देवशयनी एकादशी, यानी आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी, आगामी 6 जुलाई को पड़ रही है। इसकी शुरुआत 5 जुलाई को प्रातः लगभग 5 बजकर 58 मिनट पर हो जाएगी तथा समाप्ति 6 जुलाई को रात लगभग 9 बजकर 14 मिनट पर होगी। जो लोग इस दिन व्रत करते हैं, उनके व्रत खोलने का शुभ मुहूर्त 7 जुलाई को सुबह लगभग 5 बजकर 51 मिनट से 6 बजे तक रहेगा। इस प्रकार इस वर्ष देवशयनी एकादशी पूर्णतः 6 जुलाई को मनाई जाएगी।
देवशयनी एकादशी को शास्त्रों में वह दिन माना गया है, जब भगवान विष्णु क्षीरसागर में शेषनाग की शय्या पर शयन करने चले जाते हैं। इस योगनिद्रा का उद्देश्य चार माह की साधना, तप और श्रद्धा की अवधि को आरंभ करना होता है। भगवान विष्णु की यह निद्रा कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को समाप्त होती है, जिसे प्रबोधिनी एकादशी कहा जाता है।
देवशयनी एकादशी से आरंभ होने वाला चातुर्मास का समय धार्मिक रीति-रिवाजों के अनुसार अत्यंत पुण्यकारी माना गया है। इस दौरान धार्मिक आस्था रखने वाले लोगों को मांसाहार तथा तामसिक भोजन से परहेज करना चाहिए। विवाह संस्कार, गृह प्रवेश, वाहन या आभूषणों की खरीद जैसे कार्य इस काल में वर्जित माने जाते हैं। वास्तव में ये चार महीने आध्यात्मिक चेतना के मास होते हैं, जिनमें मन, वाणी और कर्म की शुद्धि पर विशेष बल दिया जाता है।
देवशयनी एकादशी को लेकर पुराणों में अनेक कथाओं का उल्लेख मिलता है। पद्म पुराण, श्रीमद्भागवत पुराण और भविष्योत्तर पुराण जैसे धार्मिक ग्रंथों में देवशयनी एकादशी का विशेष महत्व बताया गया है। इस दिन व्रत रखने वाला व्यक्ति तमाम पापों से मुक्त होकर बैकुंठधाम प्राप्त करता है।
देवशयनी एकादशी की पृष्ठभूमि में राजा मंधाता की प्रसिद्ध कथा है। कहा जाता है कि तीन वर्षों के अकाल से पीड़ित राजा ने भगवान विष्णु की तपस्या की और यह व्रत किया। राजा की इस साधना से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने कृपा की, जिससे राज्य में वर्षा हुई और पुनः समृद्धि लौटी।
यदि आप धार्मिक आस्था रखते हैं, तो आपको इस दिन विशेष व्रत-उपवास करना चाहिए। इस व्रत में अनाज और अनाज-उत्पादों का सेवन नहीं करना चाहिए। तामसिक भोजन से भी दूर रहना चाहिए। यदि पूर्ण व्रत करना संभव न हो, तो दूध, फल, नमकीन, या साबुत अनाज से भी परहेज कर केवल हल्की हरी सब्जियों का सेवन करना चाहिए। व्रत करने वालों को एकादशी की तिथि से लेकर द्वादशी की सुबह तक उपवास रखना चाहिए।
देवशयनी एकादशी के दिन प्रातः ब्रह्ममुहूर्त में उठकर, नित्यकर्म करके स्नान आदि करें। घर में भगवान विष्णु और लक्ष्मी की मूर्तियों के समक्ष दीप, धूप, पुष्प और नैवेद्य अर्पित करें। इस दिन विष्णु सहस्रनाम और वासुदेव मंत्र का जाप करना चाहिए। शाम के समय अथवा रात्रि में व्रत कथा का पाठ करें।
पूरे दिन भजन, संकीर्तन और भगवत चर्चा में समय बिताना चाहिए। व्रत के दिन गरीबों और ज़रूरतमंदों को अपनी सामर्थ्य के अनुसार धन, वस्त्र और फलों का दान करना चाहिए। ऐसा करने से पापों से मुक्ति मिलती है और व्यक्ति पुण्य का अधिकारी बनता है।
चातुर्मास की अवधि में संयमित और आध्यात्मिक जीवन जीना चाहिए। इन चार महीनों में झूठ नहीं बोलना चाहिए, चोरी नहीं करनी चाहिए, किसी का दिल नहीं दुखाना चाहिए। मन और तन को इस समयावधि में शुद्ध रखना चाहिए।
देवशयनी एकादशी की शुरुआत एकादशी तिथि से होती है और यह द्वादशी की सुबह तक रहती है। अतः इस अवधि में व्रत करना चाहिए। पूजा-अर्चना करते हुए भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी की प्रतिमा पर दीप, धूप, पुष्प, फल और नैवेद्य अर्पित करना चाहिए।
व्रत खोलते समय सावधानीपूर्वक व्रत का पारण करना चाहिए, क्योंकि यदि समय से पहले या बाद में व्रत खोला जाए तो व्रत का धार्मिक फल प्राप्त नहीं होता। यदि पूर्ण व्रत रखने की क्षमता न हो, तो आरंभ से ही व्रत न रखना बेहतर है। आधे दिन बाद व्रत तोड़ना उचित नहीं माना गया है। व्रत के दिन आंशिक फलाहार तो किया जा सकता है, परंतु भरपेट फल खाना भी वर्जित है। इस दिन अधिकतम समय भगवत भजन और ध्यान में लगाना चाहिए।
देवशयनी एकादशी हिंदू धार्मिक परंपरा का एक अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है, जो व्यक्ति को आत्मशुद्धि, आत्मसंयम और सामाजिक दायित्व की ओर प्रेरित करता है। इस व्रत से न केवल पापों से मुक्ति मिलती है, बल्कि साधना हेतु चार माह का विशेष अवसर भी प्राप्त होता है। अतः देवशयनी एकादशी को पवित्र भाव और धार्मिक मनोयोग से मनाना चाहिए।