आध्यात्मिक शांति के साथ दिव्यता का अहसास
उत्तराखंड स्थित आदि कैलास एक अद्भुत तीर्थस्थल है, जहां भगवान शिव के साथ मां पार्वती और उनके सौम्य रूप गौरी के दर्शन होते हैं। यहां श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक शांति, प्रकृति की सुंदरता और दिव्यता का अनूठा अनुभव मिलता है।
मनोज प्रकाश
आदि कैलास उत्तराखंड का एक ऐसा तीर्थस्थल है, जहां पर जाकर न सिर्फ मन को असीम शांति मिलती है बल्कि भगवान शिव के साथ मां पार्वती-गौरा के एक साथ दर्शन किए जा सकते हैं। दोनों देवियों का कालखंड अलग जरूर है, पर हैं एक ही शक्ति का प्रतिरूप। गौरी और पार्वती हिंदू धर्म में एक ही देवी के दो नाम हैं, जो भगवान शिव की पत्नी हैं। धर्म-कर्म की दृष्टि से दोनों नामों का उपयोग एक ही देवी के लिए किया जाता है,परंतु कुछ परंपराओं में गौरी को मां पार्वती का वह रूप माना गया है जो सौम्यता और शुभ्रता के लिए है। गौरी नाम के अनुसार शुभ्र और पार्वती को शक्ति-साहस के लिए जाना गया है।
माता पार्वती की सवारी शेर है, जो शक्ति-प्रभुत्व का प्रतिनिधित्व करता है। इसके विपरीत गौरा की सवारी बैल मानी गई है। आदि कैलास में जब हम ओम पर्वत-कैलास के दर्शन कर लेते हैं, तो वहां स्थित पार्वती सरोवर और गौरी कुंड जाकर पूर्णता को प्राप्त होते हैं,ऐसा माना गया है। ऐसे तो गौरा-पार्वती की शिव के साथ पूजा-अर्चना के लिए देश में कई स्थान हैं, मगर ऐसा स्थान जहां पर दोनों नामों से अलग-अलग पूजा-अर्चना का सौभाग्य मिले वह सिर्फ आदि कैलास में ही मिल पाता है। आदि कैलास उत्तराखंड का वह कैलास खंड है, जो कैलास मानसरोवर जाने वाले रास्ते में पड़ता है तथा यहां आकर शिव के साथ पवित्र ओम के दर्शन भी हो जाते हैं। यहां हम शिव ओम को साक्षात महसूस ही नहीं, मन भरकर आत्मा के अंतस तक प्राप्त कर लेते हैं।
सनातनी परंपरा में हर हिंदू की इच्छा होती है कि वह अपने जीवनकाल में एक बार कैलास मानसरोवर जाकर भगवान शिव की पूजा-अर्चना करे, परंतु कई बार स्वास्थ्यगत समस्याएं अथवा ईश्वर इच्छा के कारण यहां तक पहुंच पाना संभव नहीं हो पाता। ऐसी परिस्थितियों में आदि-कैलास सनातन परंपरा को मानने वालों की इच्छा पूरी करता है और यहीं पर आप मां पार्वती को पार्वती सरोवर में तथा इनके दूसरे रूप गौरी रूप को गौरी कुंड में दर्शन कर अपनी मनोकामना पूर्ण कर सकते हैं।
गौरी कुंड भी इसी पार्वती सरोवर से थोड़ा-सा आगे स्थित है। यह भी माता पार्वती को ही समर्पित है,बस नाम का अंतर है। माना जाता है कि माता पार्वती ने इसमें स्नान किया था। यहां पर पर्वतराज हिमालय की शृंखलाएं और नजदीक नजर आती हैं। कहते हैं कि पार्वती सरोवर-गौरी कुंड के जल का आचमन ही हमें संसार के तमाम दुखों से मुक्ति दिलाता है। गौरी कुंड दुनिया की सबसे ऊंची झील है। आदि कैलास की इन पवित्र झीलों की महत्व इसलिए भी है क्योंकि यहीं पर माता पार्वती ने अपने पुत्र गणेश को प्राप्त किया था।
आदि कैलास का दूसरे अन्य शिवतीर्थों में सबसे अलग स्थान रखा गया है। यहां आने के लिए शिव अत्याधिक परीक्षा नहीं लेते। थोड़ी-सी ट्रैकिंग के बाद आप शिव के साथ माता पार्वती, माता गौरी, पर्वतराज हिमालय और कैलास पर्वत के एक साथ जब दर्शन करते हैं, तो ऐसा लगता है जैसे शिव साक्षात अपने परिवार के साथ आशीर्वाद दे रहे हैं। वैसे इस कैलास पर्वत का नाम आदि कैलास पड़ने के पीछे भी यही मान्यता है कि यहां पर शिव ने इस शिखर पर ध्यान-योग किया था।
आदि कैलास की यात्रा ग्रीष्म ऋतु में ही संभव है और इसके लिए पिथौरागढ़ प्रशासन से इनरलाइन परमिट बनवाना पड़ता है। चूंकि यह पर्वत के शिखर के पास है इसलिए यहां पर ऑक्सीजन की कमी हो सकती है। बेहतर है कि स्वास्थ्य की पूर्ण जांच के बाद ही यहां जाया जाए। हां, इस यात्रा की एक विशेष बात यह है कि यहां आने से पहले दुनियाभर में प्रसिद्ध जागृत धाम जागेश्वर तथा कसार देवी के दर्शन रास्ते में ही हो जाते हैं। बहुत से भक्त हिंदू धर्म के सारे तीर्थ अपने में समाए पाताल भुवनेश्वर के दर्शन भी लौटते समय करते हैं और अपने को धन्य पाते हैं। मां पार्वती-गौरी की एक साथ पूजा के लिए आपको आदि कैलास पहुंचना है तो पहले किसी भी माध्यम से काठगोदाम या टनकपुर पहुंचे और फिर वहां से शिव के इस पवित्र धाम की यात्रा आरंभ होती है। इ.रि.सें.