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शरीर और आत्मा की शुद्धि का पर्व

चैत्र नवरात्र
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नवरात्र हिंदू धर्म का एक प्रमुख पर्व है, जो शक्ति की पूजा के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व विशेष रूप से आध्यात्मिक साधना और आत्मशुद्धि के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। चैत्र नवरात्र में देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। इस अवसर पर भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होने का विश्वास है।

चेतनादित्य आलोक

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नवरात्र हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसका आयोजन बड़ी ही भक्ति-भाव के साथ एक उत्सव की तरह किया जाता है। यह शक्ति की पूजा के रूप में दुनियाभर में विख्यात है। यह समय विशेष रूप से आध्यात्मिक साधना के लिए सर्वोत्तम माना जाता है। नवरात्र का पर्व वर्ष में चार बार मनाया जाता है, जिनमें चैत्र नवरात्र एवं शारदीय नवरात्र को सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना गया है। धार्मिक ग्रंथों में नवरात्र को मां दुर्गा का विशेष आशीर्वाद पाने का अवसर बताया गया है। ऐसी मान्यता है कि जिनका सौभाग्य जागृत होता है, उन्हें ही माता रानी के व्रत, उपवास और पूजा-आराधना करने का सुख प्राप्त होता है।

चैत्र नवरात्र का महत्व

धार्मिक दृष्टि से देखा जाए तो सनातन धर्म में चैत्र नवरात्र पर्व का विशेष महत्व है, क्योंकि इसके प्रथम दिन माता आदिशक्ति का प्राकट्य हुआ था। बता दें कि माता आदिशक्ति ने ही ब्रह्मा जी को सृष्टि रचने का कार्य सौंपा था। चैत्र नवरात्र के तीसरे दिन भगवान श्रीहरि विष्णु ने ‘मत्स्य अवतार’ धारण कर पृथ्वी को पुनः प्रतिष्ठापित किया था। इतना ही नहीं, त्रेता युग में भगवान श्रीहरि विष्णु चैत्र नवरात्र के दौरान ही भगवान श्रीराम के रूप में अवतरित हुए थे। गौरतलब है कि इस बार चैत्र नवरात्र की शुरुआत 30 मार्च, रविवार को हो रही है, जबकि इसका समापन आगामी 6 अप्रैल रविवार को हो रहा है।

व्रत से शरीर और आत्मा की शुद्धि

चैत्र नवरात्र की शुरुआत चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से होती है और समापन नवमी के दिन किया जाता है। यह नौ दिन मुख्य रूप से देवी के 9 रूपों की पूजा को समर्पित होता है। मान्यता है कि इस अवधि में सच्चे मन से पूर्ण भक्ति-भाव के साथ माता रानी की उपासना करने वाले भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और जीवन में सुख-समृद्धि का आगमन होता है। साथ ही, घर, परिवार एवं करिअर में भी शुभ परिणामों की प्राप्ति होती हैं। इतना ही नहीं, माता दुर्गा की पूजा-आराधना, प्रार्थना आदि करने से भक्तों को न केवल मानसिक शांति की प्राप्ति होती है, बल्कि इस व्रत के शुभ प्रभाव के कारण शरीर और आत्मा की शुिद्ध भी होती है। इसलिए कोशिश हो तो चैत्र नवरात्र के शुभ अवसर पर माता रानी का आशीर्वाद अवश्य प्राप्त करना चाहिए। इसके लिए घर-परिवार के अन्य सदस्यों के साथ-साथ दूसरे लोगों को भी प्रेरित करना चाहिए।

रविवार का संयोग

इसे एक सुखद संयोग ही माना जा सकता है कि इस बार नवरात्र का महत्वपूर्ण पर्व रविवार को आरंभ होकर रविवार को ही समाप्त भी हो रहा है। बता दें कि सनातन धर्म में रविवार का संबंध भगवान सूर्य नारायण से है, जिन्हें शक्ति, ऊर्जा और आत्मबल का प्रतीक माना जाता है। इसलिए नवरात्र में रविवार का यह संयोग अत्यधिक शुभ माना जा रहा है। दरअसल, यह इस बात का संकेत है कि सूर्य भगवान की कृपा से इस अवधि में माता रानी की पूजा-आराधना, व्रत और साधना करने वाले भक्तों को शक्ति, ऊर्जा, आत्मबल, उन्नति और सफलता का विशेष आशीर्वाद मिलेगा।

कलश स्थापना मुहूर्त

कलश स्थापना नवरात्र की पूजा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। बता दें कि नवरात्र में न केवल पूजा, बल्कि कलश स्थापना भी विशेष शुभ मुहूर्त में ही करने का विधान है। ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से माता दुर्गा प्रसन्न होती हैं और भक्तों को उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है। ज्योतिषीय गणना के अनुसार, इस बार 30 मार्च को कलश स्थापना के लिए विशेष शुभ मुहूर्त प्रातः 6 बजकर 13 मिनट से लेकर 10 बजकर 22 मिनट तक है। इस अवधि में स्नान-ध्यान कर स्वच्छ वस्त्र पहनने के बाद शुभ कलश की स्थापना करनी चाहिए। हालांकि अभिजीत मुहूर्त 12 बजकर 01 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 50 मिनट के मध्य भी कलश स्थापना करने का एक और शुभ संयोग बन रहा है।

कलश स्थापना से जुड़ा विधान

सनातन धर्म में किसी भी पूजा, यज्ञ या धार्मिक एवं आध्यात्मिक आयोजन में कलश स्थापना का बड़ा महत्व माना गया है। भारतवर्ष में कलश स्थापना की परंपरा चिर वैदिक काल से ही चली आ रही है। विशेष रूप से नवरात्र पर्व के मामले में ऐसी मान्यता है कि कलश स्थापना के बाद ही इसकी शास्त्रीय शुरुआत होती है। दरअसल, सनातन धर्म में शुभ कलश के भीतर देवी-देवताओं का निवास माना गया है। कलश स्थापना सदैव शास्त्र-सम्मत विधि से और शुभ समय में ही करने का विधान है। शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार ऐसा करने से साधक को शुभ फल प्राप्त होता है। इसलिए इसका सदैव ध्यान रखना चाहिए। वहीं, सनातनी परंपराओं के अनुसार अमावस्या तिथि एवं रात के समय में कलश की स्थापना कदापि नहीं करनी चाहिए, क्योंकि ऐसा करना अत्यंत अशुभ होता है।

शुभ्रता व समृद्धि का संकेत

गौरतलब है कि सनातन धर्म में इस बात का अत्यंत विशेष महत्व होता है कि नवरात्र के अवसर पर मां दुर्गा किस वाहन पर आरूढ़ होकर भक्तों से मिलने उन्हें आशीर्वाद देने आ रही हैं, क्योंकि माता के वाहन से ही इस बात का अनुमान लगाया जाता है कि भविष्य में मनुष्य, भारत एवं विश्व के लिए वक्त कैसा रहेगा। चैत्र नवरात्र पर्व 2025 की एक विशेष बात यह भी है कि मां दुर्गा इस बार हाथी पर सवार होकर आ रही हैं, जिसे विशेष रूप से शुभ संकेत माना जा रहा है। दरअसल, भारतीय संस्कृति में हाथी को शांति, स्मृति एवं समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। तात्पर्य यह कि जब मां दुर्गा हाथी पर सवार होकर आती हैं, तो भक्तों के जीवन तथा देश और दुनिया में शांति की स्थापना होगी एवं समृद्धि का आगमन होगा।

चैत्र नवरात्र के मंत्र

इस अवसर पर मां दुर्गा को प्रसन्न करने एवं उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए निम्नलिखित मंत्रों का जाप करना चाहिए-

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे।

ॐ दुं दुर्गायै नमः।

ॐ महालक्ष्म्यै नमः।

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