संतान सुख और आत्मिक शुद्धि का व्रत
सावन के महीने का हिंदू धर्म में बहुत ही धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है। सावन को भगवान शिव और विष्णु की भक्ति का महीना माना जाता है। वास्तव में यह व्रत भारतीय जीवनशैली की उस परंपरा को पुष्ट करता है, जहां संयम, नियम और ईश्वर भक्ति को जीवन सुधार का माध्यम माना गया है।
हिंदू धर्म में पुत्रदा एकादशी का अत्यंत धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है। यह एकादशी साल में दो बार आती है। एक बार पौष मास में जो जनवरी के आसपास पड़ती है और दूसरी बार सावन के महीने में जो जुलाई और अगस्त के बीच पड़ती है। इस बार सावन मास की पुत्रदा एकादशी 5 अगस्त को है। यह एकादशी का व्रत उन दंपतियों के लिए विशेष तौर पर फलदायी माना जाता है, जो संतानहीन हैं। मान्यता है कि जो दंपति सच्चे मन और श्रद्धा से इस व्रत का पालन करता है, उसे संतान की प्राप्ति होती है।
व्रत का धार्मिक महत्व
इस दिन भगवान विष्णु के नारायण रूप की पूजा होती है। भक्त उपवास करते हैं। व्रत कथा सुनते हैं और रात्रि जागरण तथा भजन कीर्तन करते हैं। शास्त्रों में उल्लेख है कि इस एकादशी को श्रद्धा से व्रत करने पर संतान की प्राप्ति होती है, विशेषकर उन दंपतियों को जिन्हें संतान नहीं हो रही होती। विष्णु पुराण और स्कंद पुराण में वर्णित है कि इस दिन व्रत रखने से पूर्व जन्मों के पापों का क्षय हो जाता है और व्यक्ति मोक्ष की ओर अग्रसर होता है।
सांस्कृतिक मान्यता
व्रत के पीछे की सांस्कृतिक मान्यता परिवार की समृद्ध के प्रतीक के तौर पर है। संतान का होना भारतीय संस्कृति में वंश और परंपरा के प्रवाह का प्रतीक माना जाता है। सावन के महीने का हिंदू धर्म में बहुत ही धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है। सावन को भगवान शिव और विष्णु की भक्ति का महीना माना जाता है। वास्तव में यह व्रत भारतीय जीवनशैली की उस परंपरा को पुष्ट करता है, जहां संयम, नियम और ईश्वर भक्ति को जीवन सुधार का माध्यम माना गया है।
कैसे करें व्रत
पुत्रदा एकादशी व्रत के एक दिन पहले से ही अपनी दिनचर्या को सात्विक कर लें। व्रत के एक दिन पहले ही सात्विक भोजन ग्रहण करें। इस दिन खाने में ज्यादा नमक, मिर्च, तेल, खटाई और तामसी चीजों जैसे लहसुन, प्याज आदि का सेवन न करें। एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त मंे उठकर स्नान करें। स्नान के बाद भगवान विष्णु की पूजा करें और तुलसी पत्र अर्पण करने के साथ साथ व्रत कथा सुनें। रात्रि में जागरण और भजन करें। अगले दिन यानी द्वादशी के दिन संभव हो तो कुछ गरीब लोगों को भोजन कराएं, उसके बाद खुद भोजन करके व्रत का पारण करें।
आत्मिक शुद्धि का पर्व
पुत्रदा एकादशी को आत्मिक शुद्धि और शंाति का पर्व कहा जाता है। यह व्रत हम भौतिक इच्छाओं से ऊपर उठकर शुद्ध अंतर्मन की ओर उन्मुख करती है। इस व्रत मंे संयम व्रत और सेवा को ध्यान में रखा जाता है। पुत्रदा एकादशी व्रत मंे खाने, बोलने, सोचने, देखने और सुनने तक में संयम रखा जाता है, जिससे मन शांत होता है और आत्मा का शुद्धीकरण होता है। इस व्रत में सात्विक भोजन अनिवार्यता है। इस व्रत मंे मानसिक और आध्यात्मिक शांति का बहुत महत्व है। इसलिए इसे आत्मिक शुद्धि और शांति का पर्व कहते हैं। इ.रि.सें.