बोधगया स्थित महाबोधि मंदिर परिसर में एक पीपल का वृक्ष है। इसी वृक्ष के नीचे ईसा पूर्व 531 में भगवान बुद्ध को बोध अर्थात् आत्मज्ञान प्राप्त हुआ था। बुद्ध जब भी इस वृक्ष के निकट से गुजरते तो श्रद्धापूर्वक कृतज्ञ भाव से इस वृक्ष को नमन करते थे। एक बार की बात है, बुद्ध इस वृक्ष के निकट से गुजर रहे थे। बुद्ध ने हमेशा की भांति श्रद्धापूर्वक इस वृक्ष को नमन किया। साथ चल रहे एक शिष्य ने उनसे पूछा, ‘तथागत! यह वृक्ष तो जड़ वस्तु है, आप इसको क्यों प्रणाम करते हैं, इसके प्रति इतनी श्रद्धा क्यों? बुद्ध ने शिष्य को समझाया, ‘भंते! मैंने इस वृक्ष के नीचे आत्मज्ञान प्राप्त किया था। जिस वस्तु से भी हम लाभ और प्रेरणा प्राप्त करते हैं उसके प्रति हमें कृतज्ञ होना चाहिए। हवा-पानी, पेड़-पौधे, नदी-सागर, सूर्य-चांद इन सभी के हमारे ऊपर अनेक उपकार हैं, इसके लिए हमें उन का आभारी होना चाहिए और कृतज्ञता ज्ञापित करनी चाहिए।’ यह कहते हुए भगवान बुद्ध ने एक बार फिर श्रद्धा भक्ति प्रेमपूर्वक बोधि वृक्ष को प्रणाम किया।
प्रस्तुति : मधुसूदन शर्मा