अलका ‘सोनी’
‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ का उद्घोषक पर्व दिवाली हमारे देश के प्रमुख त्योहारों में से एक है। समाज का हर वर्ग, जाति एवं समुदाय इस पर्व से एक जुड़ाव का अनुभव करता है। यह पांच दिनों तक चलने वाला त्योहार है। जो समाज के हर वर्ग को छूता है। धनतेरस, नरक चतुर्दशी, दीपावली, अन्नकूट या गोवर्धन पूजा और भाई दूज जैसे पर्व समूह हमें एक दूसरे से जोड़े रखते हैं। दिवाली आने के साथ ही त्योहारों की एक झड़ी सी लग जाती है। ‘धनतेरस’ से शुरू हुई दिवाली ‘गोवर्धन पूजा’ तक विस्तारित है। हमारे हर त्योहार को मनाने के पीछे एक कथा निहित होती है जो हमें जीवन से जुड़ी अनमोल सीख प्रदान करती है। गोवर्धन पूजा से हमें यह सीख मिलती है कि इस संसार में किसी का अहंकार नहीं टिक पाता है। हर अहंकार और दंभ का शमन ईश्वर स्वयं करते हैं। देश व समाज की एकता, समृद्धि और आपसी मेल-मिलाप में हमारे त्योहारों का विशेष योगदान होता है। चाहे कितनी भी बार समाज को बांटने की कोशिश की जाए। समय-समय पर आने वाले ये त्योहार हमारी आपसी वैमनस्यता और भेदभाव को भुला देते हैं। त्योहारों की चमक व उनसे मिलने वाली खुशियों में मनुष्य की रंग, जाति और धर्म संबंधी संकीर्णता दूर हो जाती है। त्योहार एक-दूसरे के बीच की बनी खाई को पाटने का काम करते हैं। त्योहार सच्चाई, निष्कपटता एवं आत्मविश्वास का वातावरण देकर, लोगों में श्रेष्ठ मानवीय भावनाओं को भरते हैं।
… जब इंद्रदेव को हो गया था घमंड
गोवर्धन पूजा की कथा के पीछे कहानी है कि द्वापर युग में एक बार इंद्रदेव को अहंकार हो गया था कि वे ही सबसे बड़े देवता हैं। वे जहां चाहे हरियाली ला सकते हैं। जहां चाहे मूसलाधार बारिश से प्रलय ला सकते हैं। लेकिन वह भूल गए थे कि द्वापर युग, नारायण के अवतार श्री कृष्ण का युग था। श्री कृष्ण ने अपनी जीवन में अनेक लीला करते हुए कितनों के दंभ को मिटाया था। उन्होंने इंद्र को भी सबक सिखाने के लिए सभी ब्रज वासियों को गौ माता की पूजा करने को कहा जो कि साक्षात लक्ष्मी स्वरूपा होती है। गाय का दूध यहां तक कि गौमूत्र और गोबर भी पर्यावरण के लिए लाभदायक होता है। श्री कृष्ण ने इंद्र की जगह गौ माता की पूजा करने के निर्देश दिए। सभी ब्रजवासियों ने ऐसा ही किया। यह सब देखकर इंद्रदेव कुपित हो गए और मूसलाधार बारिश करना प्रारंभ कर दिए। संपूर्ण ब्रज जल-प्रलय में डूबने लगा। तब श्री कृष्ण ने गोवर्धन पहाड़ की छत्रछाया में सभी ब्रजवासियों और वनस्पतियों की रक्षा की। जब वर्षा शांत हुई तो सभी ने गोवर्धन पर्वत और गौ माता की पूजा की जिनके कारण उनके अन्न के भंडार भरे रहे। उन्होंने छप्पन भोग बनाकर, अन्नपूर्णा मां को भोग लगाया।
पर्यावरण संरक्षण भी एक संदेश
गोवर्धन पूजा के पीछे पर्यावरण संरक्षण की पवित्र भावना भी निहित है। हमें गाय की सेवा करनी चाहिए। उसके गोबर से बढ़कर कोई उर्वरक नहीं है। यह ऑर्गेनिक खेती में मददगार साबित हो सकता है। रासायनिक खादों से होने वाली स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से हम सभी परिचित हैं। अगर हम सब गौ-पालन के प्रति जागरूक होते हैं तो ना केवल हमें शुद्ध दूध की प्राप्ति होगी वरन हमारी फसलें भी लहलहाएंगी। गोवर्धन पूजा की सबसे पवित्र एवं मंगलकारी भावना यही है। ध्यान रखना चाहिए कि गोवर्धन पूजा बंद कमरे में नहीं करनी चाहिए क्योंकि गोवर्धन पूजा खुले स्थान पर ही की जाती है। इस दिन गायों की पूजा करते समय अपने इष्ट देव और भगवान श्री कृष्ण की पूजा करना शुभ माना जाता है। साफ-सफाई भी गोवर्धन पूजा का संदेश है। इसलिए कहा जाता है कि अगर आप गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करने जाएं तो शुद्ध होकर जाएं। कपड़े भी साफ, धुले हुए होने चाहिए। गोवर्धन पूजा परिवार के सभी लोगों को अलग-अलग नहीं करनी चाहिए बल्कि एक ही जगह पर परिवार के सभी लोगों को यह पूजा करनी चाहिए। अर्थात संपूर्ण परिवार की एकता पर बल दिया गया है। गोवर्धन पूजा वाले दिन भूलकर भी किसी पेड़ या पौधे को नहीं काटना चाहिए।