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आस्था की दिशा

एकदा
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स्वामी रामकृष्ण परमहंस अपने एक शिष्य की आस्था की परीक्षा लेना चाहते थे। एक दिन उन्होंने शिष्य से पूछा, ‘अच्छा बताओ, तुम्हारा विश्वास साकार पर है या निराकार पर?’ शिष्य ने थोड़ी देर सोचने के बाद उत्तर दिया, ‘महाराज, मुझे निराकार अधिक प्रिय है।’ यह सुनकर स्वामी रामकृष्ण परमहंस प्रसन्न हो गए। उन्होंने मुस्कराते हुए कहा, ‘बहुत अच्छा। किसी एक पर विश्वास दृढ़ हो, तो साधना सफल होती है। यदि तुम्हारा झुकाव निराकार की ओर है, तो उसी पर श्रद्धा रखो। परन्तु यह कभी मत कहना कि केवल निराकार ही सत्य है और साकार असत्य। यह समझो कि साकार भी सत्य है और निराकार भी। दोनों ही ईश्वर के स्वरूप हैं। तुम्हें जिस रूप में सहज अनुभूति हो, उसी का आश्रय लो।’ गुरु के इन वचनों से शिष्य का मन शांत हो गया और वह निश्चिंत होकर अपनी साधना में और भी लगन से जुट गया।

प्रस्तुति : नीता देवी

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