एक बार ईसा मसीह अपने शिष्यों के साथ लंबी यात्रा पर निकले थे। राह में उनके शिष्यों को भूख लगी। उन सभी ने प्रभु यीशु से अपनी भूख के बारे बताया। ईसा मसीह ने उन्हें खाना खाने की आज्ञा दी। लेकिन शिष्यों ने देखा कि खाना तो बहुत कम है। यह देखकर प्रभु यीशु ने शिष्यों से कहा कि तुम्हारे पास जो कुछ भी है, वह सब तुम मिल-बांटकर खाओ। प्रभु यीशु की बात सभी शिष्यों ने मान ली। लेकिन अचानक तभी वहां एक और भूखा व्यक्ति आ गया। उसने भी अपने लिए खाना मांगा। प्रभु के शिष्यों ने उसे भी अपने साथ बैठा लिया और सभी मिल-बांटकर खाना खाने लगे। लेकिन खाना खाने के बाद सभी हैरान थे। खाना कम होने के बावजूद उन सभी का पेट भर गया। उन्होंने प्रभु यीशु मसीह से पूछा कि हमें इतने कम खाने में संतुष्टी कैसे मिल गई। इसके जवाब में प्रभु ईसा मसीह ने कहा कि जो लोग खुद से पहले दूसरों के बारे में सोचते हैं, वे अभावों में भी संतुष्टि प्राप्त कर लेते हैं। तुम सभी ने खुद से ज्यादा दूसरों की भूख के बारे में सोचा, इसी वजह से थोड़ा-सा खाना भी तुम लोगों के लिए पर्याप्त हो गया।
प्रस्तुति : राजेश कुमार चौहान