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परमात्मा स्वरूप ही आनंद

एकदा
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एक बार माता देवहूति ने भगवान कपिल से प्रश्न किया, ‘जगत में सच्चा सुख, आनन्द कहां है, उसे पाने का साधन क्या है?’ कपिल भगवान बोले, ‘माता, किसी जड़ वस्तु में आनन्द नहीं रह सकता, आनन्द तो आत्मा का स्वरूप है। अज्ञानवश जीव जड़ वस्तु में आनन्द खोजता है। सांसारिक विषय सुख तो देते हैं किन्तु आनन्द नहीं। जो तुम्हें सुख देगा वह दु:ख भी देगा किन्तु भगवान हमेशा आनन्द ही देते हैं। आनन्द परमात्मा का स्वरूप है। सांसारिक सुख तो शरीर की खुजली जैसे होते हैं। जब तक आप खुजलाते रहेंगे तब तक अच्छा लगता रहेगा किन्तु खुजाने से नाखून के विष के कारण खुजली का रोग बढ़ता चला जाता है। सर्वोत्तम मिठाई का स्वाद भी जिह्वा तक ही रहता है। जगत के पदार्थों में आनन्द नहीं है, उसका आभास मात्र है।

प्रस्तुति : मुग्धा पांडे

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