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प्राचीन मान्यताओं से गहरे होते विश्वास

लेटे हनुमान जी मंदिर
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प्रयागराज स्थित श्री बड़े हनुमान जी मंदिर, जिसे लेटे हनुमान जी मंदिर भी कहा जाता है, एक अद्वितीय धार्मिक स्थल है, जहां हनुमान जी की लेटी हुई मूर्ति की पूजा की जाती है।

श्री बड़े हनुमान जी मंदिर, जिसे लेटे हनुमान जी मंदिर भी कहा जाता है, प्रयागराज किले की पूर्वी दीवार से सटा हुआ और त्रिवेणी संगम के पास स्थित है। यह प्रसिद्ध हिंदू मंदिर उत्तर प्रदेश में स्थित है। मंदिर में भगवान हनुमान की आदमकद प्रतिमा है, जिनका सिर उत्तर की ओर और पैर दक्षिण की ओर हैं। यह हनुमान मंदिर दुनिया का एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहां भगवान हनुमान की लेटी हुई मूर्ति की पूजा की जाती है। मंदिर साल भर बड़ी संख्या में तीर्थयात्रियों को आकर्षित करता है। प्रत्येक मंगलवार और शनिवार को भक्तों की बड़ी संख्या नियमित रूप से यहां एकत्रित होती है। माघ मेला, अर्ध कुंभ मेला और कुंभ मेले के दौरान लाखों तीर्थयात्री गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम में पवित्र डुबकी लगाते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर में हनुमान जी के दर्शन के बाद महाकुंभ में स्नान करने का पुण्य पूरा माना जाता है। हनुमान जी के बाएं हाथ में राम और लक्ष्मण, दाहिने हाथ में गदा, दाहिने पैर के नीचे अहिरावण और बाएं पैर के नीचे पातालपुरी की कामदा देवी को दर्शाया गया है।

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गंगा और हनुमान जी के दर्शन

ऐसा कहा जाता है कि गंगा का जल भगवान हनुमान को छूता है और उसके बाद गंगा का जल कम हो जाता है। जब गंगा और यमुना में पानी बढ़ता है, तो दूर-दूर से लोग यह नजारा देखने के लिए यहां आते हैं। हनुमान जी की मूर्ति मंदिर के गर्भगृह में स्थापित है, जो मंदिर से 8.10 फीट नीचे है। मान्यता के अनुसार, हनुमान जी का गंगा में स्नान भारत भूमि के लिए सौभाग्य का सूचक माना जाता है। मंदिर में जल का प्रवेश प्रयाग और पूरे विश्व के लिए शुभ माना जाता है।

मंदिर की स्थापना

मंदिर की स्थापना के बारे में मान्यता है कि एक बार एक व्यापारी अपनी नाव में हनुमान जी की भव्य मूर्ति ले जा रहा था। जब वह अपनी नाव लेकर प्रयाग के निकट पहुंचा, तो उसकी नाव धीरे-धीरे भारी होने लगी और संगम के पास पहुंचकर गंगा के पानी में डूब गई। कुछ समय बाद, जब गंगा के पानी की धारा ने अपना रास्ता बदला, तो वह मूर्ति प्रकट हुई। उसी स्थान पर मंदिर की स्थापना की गई। हनुमान जी को प्रयाग का कोतवाल भी कहा जाता है।

पुनर्जन्म और सिंदूर का महत्व

कहा जाता है कि इस मूर्ति के पीछे हनुमान जी के पुनर्जन्म की कथा जुड़ी हुई है। जानकारी के अनुसार, जब लंका पर विजय प्राप्त करने के बाद बजरंग बली अपार कष्ट सह रहे थे और मरणासन्न अवस्था में पहुंच गए थे, तब माता जानकी ने उन्हें इसी स्थान पर अपना सिंदूर देकर नव जीवन और सदैव स्वस्थ व जीवित रहने का आशीर्वाद दिया था। मां जानकी द्वारा सिंदूर दिए जाने के बाद से ही इस मंदिर में आने वाले भक्त बजरंग बली को सिंदूर दान करते हैं। इसे बहुत शुभ माना जाता है। इसके साथ ही मां जानकी ने यह भी कहा था कि जो भी भक्त इस त्रिवेणी तट पर संगम स्नान के लिए आएगा, उसे संगम स्नान का असली फल तभी मिलेगा जब वह हनुमान जी के दर्शन करेगा।

मूर्ति हटाने का प्रयास

इस मंदिर के बारे में यह भी कहा जाता है कि 1400 ईस्वी में जब भारत में औरंगजेब का शासन था, तब उसने इस मूर्ति को यहां से हटाने का प्रयास किया था। इसके लिए उसने 100 सैनिकों को लगाया था, लेकिन कई दिनों की कड़ी मेहनत के बाद भी वे मूर्ति को हिला नहीं पाए। जो भी भक्त इस मंदिर में सच्चे मन से प्रार्थना करता है, उसकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है। श्रद्धालु अपनी मन्नत पूरी होने पर हर मंगलवार और शनिवार को गाजे-बाजे के साथ जुलूस के रूप में यहां झंडा चढ़ाने आते हैं।

खोज

यह मूर्ति महान संत बाघंबरी बाबा ने खोजी थी जब वे कई शताब्दियों पहले कुंभ मेले में भाग लेने आए थे। संत को मिले एक स्वप्न के अनुसार जब खुदाई की गई तो मूर्ति का पता चला। तब से बाघंबरी बाबा संगम के तट पर रहते हैं। मंदिर का प्रबंधन निरंजनी अखाड़े से संबद्ध बाघंबरी गद्दी द्वारा किया जाता है। बाघंबरी गद्दी मठ अभी भी भारद्वाजपुरम में एक विशाल भूभाग पर मौजूद है।

पूजा पद्धति

पुजारी प्रतिदिन कई धार्मिक अनुष्ठान करते हैं - मूर्ति पर सवा किलो सिंदूर, घी और चमेली का तेल लगाया जाता है और सुबह 5 बजे से पहले गाय के दूध और गंगा जल से स्नान कराया जाता है। भक्त देवता को फूल, तुलसी, लाल कपड़ा, मिठाई आदि चढ़ाते हैं। यह प्रतिदिन सुबह 5 बजे ‘मंगल आरती’ के साथ खुलता है। चित्र लेखक

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