महानता की आभा
एकदा
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चीन की एक प्रसिद्ध बोधकथा है। वहां एक ज़ेन गुरु थे जो अपने शिष्यों को अध्यात्म के साथ-साथ तलवारबाज़ी का भी प्रशिक्षण देते थे। एक दिन उनके एक शिष्य ने पूछा, ‘गुरुजी, सबसे महान तलवारबाज़ कौन होता है?’ गुरु मुस्कुराए और बोले, ‘इस पहाड़ी के पार एक विशाल चट्टान है। जाओ और उसका अपमान करो। फिर जब वह कोई प्रतिक्रिया न दे, तो उस पर अपनी तलवार से प्रहार करना।’ शिष्य ने चौंककर कहा, ‘गुरुजी, इससे तो मेरी तलवार ही टूट जाएगी, चट्टान को कोई क्षति नहीं पहुंचेगी।’ गुरु शांत भाव से बोले, ‘ठीक इसी में महानता छिपी है। जो व्यक्ति चट्टान की भांति अडिग, शांत और अजेय हो, वही सच्चा तलवारबाज़ है। उसे अपनी शक्ति जताने के लिए तलवार निकालनी नहीं पड़ती — उसका व्यक्तित्व ही सामने वाले को स्पष्ट कर देता है कि उस पर विजय संभव नहीं।’
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