मुख्य समाचारदेशविदेशहरियाणाचंडीगढ़पंजाबहिमाचलबिज़नेसखेलगुरुग्रामकरनालडोंट मिसएक्सप्लेनेरट्रेंडिंगलाइफस्टाइल

क्रोध का प्रायश्चित

एकदा
Advertisement

एक बार बुद्धदेव अपने शिष्यों सहित सभा में विराजमान थे। शिष्यगण उन्हें काफी देर से मौन देखकर चिंतित थे कि कहीं वे अस्वस्थ तो नहीं हैं। एक शिष्य ने अधीर होकर पूछा, ‘आप आज इस प्रकार मौन क्यों हैं? क्या हमसे कोई अपराध हुआ है?’ फिर भी वे मौन ही रहे। तभी बाहर खड़ा एक व्यक्ति जोर से बोला आज मुझे सभा में बैठने की अनुमति क्यों नहीं दी गई? वह क्रोध से उद्विग्न था। एक उदार शिष्य ने उसका पक्ष लेते हुए बुद्धदेव से कहा, ‘भगवन! उसे सभा में आने की अनुमति प्रदान करें। बुद्धदेव अपना मौन तोड़ते हुए बोले, ‘नहीं! वह अस्पृश्य है, उसे आज्ञा नहीं दी जा सकती। शिष्यगण आश्चर्य में डूब गए। तब कई शिष्य बोल उठे कि वह अस्पृश्य क्यों? हमारे धर्म में जातपात का कोई भेद नहीं, फिर वह अस्पृश्य कैसे है? बुद्धदेव बोले वह आज क्रोधित होकर आया है। क्रोध से जीवन की पवित्रता भंग होती है। क्रोधी व्यक्ति मानसिक हिंसा करता है इसलिए किसी भी कारण से क्रोध करने वाला अस्पृश्य होता है। उसे कुछ समय तक पृथक एकांत में खड़ा रहकर प्रायश्चित करना चाहिए ताकि उसकी अस्पृश्यता दूर हो जाये। शिष्यगण समझ गए कि अस्पृश्यता क्या है और अस्पृश्य कौन है। उस व्यक्ति को भी पश्चाताप हुआ।

प्रस्तुति : अंजु अग्निहोत्री

Advertisement

Advertisement