मदन गुप्ता सपाटू
ज्योतिष के अनुसार आश्विन मास की पूर्णिमा की रात चंद्रमा सोलह कला संपूर्ण होता है और इसकी रश्मियों से आरोग्य की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि इस रात चंद्रमा की किरणें अमृत समान होती हैं। इसे शरद पूर्णिमा कहा जाता है। इस दिन से हेमंत ऋतु आरंभ हो जाती है और मौसम में ठंडक बढ़ने लगती है। धार्मिक और स्वास्थ्य संबंधी मान्यताओं से जुड़ी यह पूर्णिमा 19 अक्तूबर को है। इस दिन सर्वार्थ सिद्धि और रवि योग भी बन रहा है, जो धन-समृद्धि बढ़ाने वाला माना जाता है। इस दिन कोजागर व कौमुदी व्रत भी है। मान्यता है कि इस रात चांद की रोशनी में कुछ देर घूमना चाहिये। चंद्रकिरणों का शरीर पर पड़ना शुभ माना जाता है। इसी आश्विन पूर्णिमा से कार्तिक स्नान आरंभ होंगे। स्कंद पुराण के अनुसार कार्तिक मास के समान और कोई मास नहीं होता, अतः इस मास में कार्तिक माहात्म्य का विधिपूर्वक पाठ करना चाहिए या सुनना चाहिए।
विशेष रात, खास खीर
शरद पूर्णिमा की रात खुले आसमान के नीचे चंद्रमा की रोशनी में खीर रखने और इसे अगली सुबह खाने की परंपरा है। मान्यता है कि यह खीर औषधि समान होती है। खासतौर पर जिन दंपतियों को संतान न होने की समस्या हो, उन्हें शरद पूर्णिमा पर यह प्रयोग करना चाहिये। मेवों सहित गाय के दूध में खीर बना कर खुले स्थान पर रात्रि में ऐसे सुरक्षित रखें कि कोई पशु-पक्षी इसे खा न सके और पूरी रात, चंद्रमा की किरणें इस पर पड़ती रहें। इस खीर के बर्तन को किसी तार पर बांध कर जमीन से ऊंचा लटका सकते हैं। सुबह इसका भोग गणेश जी को लगाएं, फिर एक भाग ब्राह्मण, एक भिखारी, एक कुत्ते, एक गाय, एक कौवे को देकर पति-पत्नी स्वयं खीर खाएं और परिवार के सदस्यों में भी बांटें। यदि पारिवारिक क्लेश रहता है, तो यह खीर उन सभी सदस्यों को दें, जिनसे आपके मतभेद हैं। यह उपाय सदियों से ग्रामीण अंचलों में किया जाता रहा है। ज्योतिष के अनुसार दूध, चीनी और चावल चंद्र ग्रह से जुड़े हैं। अतः इनमें चंद्रमा का प्रभाव सर्वाधिक रहता है। यदि जन्म कुंडली में चंद्रमा क्षीण हो, महादशा-अंतर्दशा या प्रत्यंतर्दशा चल रही हो या चंद्रमा छठे, आठवें व बारहवें भाव में हो तो चंद्रमा की पूजा करते हुए स्फटिक माला से ‘ॐ सों सोमाय’ मंत्र का जाप करना चाहिये, ऐसा करने से चंद्रजन्य दोष से शांति मिलती है।
शरद पूर्णिमा को रास पूर्णिमा भी कहा जाता है। मान्यता है कि इसी पूर्णिमा पर भगवान श्री कृष्ण ने मुरली बजाकर यमुना तट पर रास रचाया था। शरद पूर्णिमा पर मां लक्ष्मी की पूजा बहुत ही फलदायी मानी गयी है। धर्मशास्त्रों में उल्लेख है कि रासोत्सव का यह दिन वास्तव में भगवान श्रीकृष्ण ने जगत की भलाई के लिए निर्धारित किया है। इस दिन शिव-पार्वती और कार्तिकेय की भी पूजा की जाती है। कार्तिक का व्रत शरद पूर्णिमा से ही प्रारम्भ होता है। शरद पूर्णिमा की शाम घर के मुख्य द्वार पर घी के दीपक जलाने चाहिए। इस रात से कार्तिक पूर्णिमा की रात तक दीपदान करने की महिमा मानी गयी है। मान्यता है कि इससे दुख दूर होते हैं और सुख-समृद्धि आती है।