नर्मदा को तीर्थों में अग्रज कहा था आदि शंकराचार्य ने
मध्यप्रदेश की जीवन रेखा’ कही जाने वाली नर्मदा भारत की एकमात्र ऐसी नदी हैं, जिनका निर्मल प्रवाह पूर्व से पश्चिम की ओर है। इनकी कुल लम्बाई 1312 किमी है और यह गुजरात के भरूच शहर से गुजरती हुई खम्भात की खाड़ी में जाकर गिरती हैं। शास्त्रों में नर्मदा जी के सभी स्थलों को श्राद्ध के लिए उपयुक्त एवं इनके तट पर किए गए श्राद्ध का फल अक्षय बताया गया है। वायु पुराण के अनुसार नर्मदा जी पितरों की पुत्री हैं, जो पत्थर को भी देवत्व प्रदान करती हैं और पत्थर के भीतर आत्मा प्रतिष्ठित करने वाली हैं।
चेतनादित्य आलोक
सनातन धर्म में देवी-देवताओं की ही नहीं, बल्कि पशु-पक्षी, पेड़-पौधे, सूरज, चंद्रमा और नदियों की भी पूर्ण भक्ति-भाव से पूजा-अर्चना, उपासना आदि करने की परंपरा है। दरअसल, प्रकृति के ये सारे उपादान हिन्दू संस्कृति के अभिन्न अंग हैं। इनमें भी नदियां तो विशेष रूप से हमारी संस्कृति के लिए प्राण स्वरूपा हैं, क्योंकि इन नदियों से ही हमारी संस्कृति को आधार और संबल प्राप्त होता है। यही कारण है कि हमारे पूर्वजों ने नदियों को मां कहकर विभूषित किया है। सनातन धर्म में मातृ रूपी इन नदियों को प्राचीनकाल से ही पवित्रता का द्योतक, कल्याणकारिणी एवं पूज्यनीयां माना गया है। इनमें प्रमुख एवं महत्वपूर्ण स्थान नर्मदा नदी को प्राप्त है। अनेक ऋषि-मुनियों, मनीषियों आदि ने नर्मदा जी के तट पर तपस्या कर अपने जीवन को कृतार्थ किया है। नर्मदा जी मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और गुजरात में प्रवाहित होती हैं। मध्यप्रदेश का अमरकंटक इनका उद्गम स्थल है।
पूजन विधि
नर्मदा अवतरण दिवस पर भक्तों को सूर्योदय से पूर्व नित्य कर्मों से निवृत्त हो नर्मदा जी में स्नान करने के बाद पुष्प, धूप, अक्षत, कुमकुम आदि से मां नर्मदा के तट पर पूजन-अर्चन, वंदन और मां नर्मदा के निमित्त दीपदान करना चाहिए। इस अवसर पर मां नर्मदा को दीपदान करना बहुत शुभ माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि जो भक्त इस दिन मां नर्मदा का पूजन-अर्चन, वंदन आदि करते हैं, उनके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और उन्हें रोगों से मुक्ति मिलती है।
अवतरण उत्सव
नर्मदा अवतरण दिवस पर नर्मदा जी के सभी तटों को सजाया जाता है। घाटों पर हवन-पूजन करने के बाद भंडारा का आयोजन किया जाता है। लगातार चौबीस घंटे तक कई प्रकार के धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। संध्या समय मां नर्मदा की महाआरती की जाती है। इस दिन अमरकंटक से लेकर खंभात की खाड़ी तक के रेवा-प्रवाह पथ में पड़ने वाले सभी गांवों एवं नगरों में हर्ष और उल्लास के साथ ‘नर्मदा अवतरण उत्सव’ मनाया जाता है।
कथा
सतयुग के आदिकल्प से इस धरा पर जड़, जीव, चैतन्य सभी को पल्लवित, पोषित और आनंदित करने के लिए नर्मदा जी का प्रादुर्भाव माघ महीने में हुआ था। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार एक बार भगवान शिव मैथल पर्वत पर लोक कल्याणार्थ तपस्यारत थे, जहां उनके पसीने की बूंदों से एक कुंड का निर्माण हुआ। फिर उस कुंड में एक बालिका प्रकट हुई, जो बाद में ‘शांकरी’, ‘शिवतनया’ एवं ‘नर्मदा’ के नाम से जानी गई। अलौकिक सौंदर्य से परिपूर्ण उस दिव्य बालिका ने ऐसी चमत्कारी लीलाएं प्रस्तुत कीं कि भगवान शिव एवं माता पार्वती चकित रह गए। प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उस बालिका से कहा, ‘तुमने अपनी चमत्कारी लीलाओं से जन-जन को हर्षित किया है। इसलिए हम तुम्हारा नाम ‘नर्मदा’ रखते हैं। बता दें कि ‘नर्म’ का अर्थ ‘सुख’ और ‘दा’ से तात्पर्य ‘देने वाली या वाला’ होता है। उसके बाद भगवान शिव के आदेशानुसार वह बालिका नदी के रूप में देश के एक बड़े भूभाग में ‘रव’ यानी आवाज करती हुई प्रवाहित होने लगी। रव करने के कारण नर्मदा जी को ‘रेवा नदी’ के नाम से भी जाना जाता है। वहीं, मैथल पर्वत पर उत्पन्न होने के कारण नर्मदा जी ‘मैथल सुता’ भी कहलाती हैं।
पृथ्वी पर आगमन
एक अन्य कथा के अनुसार स्कंद पुराण में वर्णित है कि राजा हिरण्यतेजा ने कई वर्षों की घोर तपस्या से भगवान शिव को प्रसन्न करने के बाद नर्मदा जी को पृथ्वी तल पर प्रकट करने के लिए वर मांगा। तत्पश्चात शिव जी के आदेश से नर्मदा जी मगरमच्छ पर विराजमान होकर विंध्याचल पर्वत पर उतरीं और पश्चिम दिशा की ओर बहती हुई चली गई। उसी समय भगवान शिव ने तीन पर्वतों मेठ, हिमावन और कैलास की सृष्टि की।
निर्मल प्रवाह
नर्मदा जी भारत के विंध्याचल और सतपुड़ा पर्वत श्रेणियों पर मध्यप्रदेश के अनूकपुर जिले के अमरकंटक स्थित एक कुंड से निकलकर इन दोनों पर्वतों के बीच पश्चिम दिशा में बहती हैं। यह कुंड मंदिरों से घिरा हुआ है। नर्मदा जी भारतीय उपमहाद्वीप में पांचवीं सबसे लम्बी नदी है। ‘मध्यप्रदेश की जीवन रेखा’ कही जाने वाली नर्मदा भारत की एकमात्र ऐसी नदी है, जिनका निर्मल प्रवाह पूर्व से पश्चिम की ओर है। इनकी कुल लम्बाई 1312 किमी है और यह गुजरात के भरूच शहर से गुजरती हुई खम्भात की खाड़ी में जाकर गिरती है।
धर्म ग्रंथों में वर्णन
विष्णु पुराण के अनुसार नाग राजाओं द्वारा इन्हें यह वरदान प्राप्त है कि जो व्यक्ति इनके जल का स्मरण भी करेगा उसके शरीर में कभी सर्प का विष नहीं फैलेगा। शास्त्रों में नर्मदा जी के सभी स्थलों को श्राद्ध के लिए उपयुक्त एवं इनके तट पर किए गए श्राद्ध का फल अक्षय बताया गया है। वायु पुराण के अनुसार नर्मदा जी पितरों की पुत्री हैं, जो पत्थर को भी देवत्व प्रदान करती हैं और पत्थर के भीतर आत्मा प्रतिष्ठित करने वाली हैं। स्कंद पुराण के अनुसार नर्मदा जी प्रलय काल में भी स्थायी बनी रहती हैं। वहीं, मत्स्य पुराण में वर्णन है कि इनके दर्शन मात्र से पुण्य फल की प्राप्ति होती है। स्कंद पुराण के रेवाखंड में ऋषि मार्कंडेय जी ने लिखा है कि भगवान श्रीहरि विष्णु के सभी अवतारों ने नर्मदा जी के तट पर आकर स्तुति की है। वहीं, पुराणों के अनुसार संसार में एकमात्र मां नर्मदा (नदी) ही है, जिनकी प्रदक्षिणा की जाती है। मां नर्मदा की परिक्रमा मनुष्य ही नहीं, बल्कि सिद्ध, नाग, यक्ष, गंधर्व एवं किन्नर भी करते हैं। आदिगुरु शंकराचार्य जी ने ‘नर्मदाष्टक’ में मां नर्मदा को ‘सर्वतीर्थ नायकम्’ अर्थात् सभी तीर्थों में अग्रज’ कहकर संबोधित किया है। नर्मदा जी का उल्लेख विभिन्न वेदों सहित रामायण, महाभारत आदि सभी महत्वपूर्ण धार्मिक ग्रंथों में भी मिलता है।