रूस में एक प्रसिद्ध हवाबाज था ओश्चेव, जिसकी कलाबाजियां देखकर लोग दांतों तले उंगलियां दबा लेते थे। दुर्भाग्य से एक दिन दुर्घटना हुई और वह बुरी तरह घायल हो गया। उसकी जान बचाने के लिए दोनों पैर काटने पड़े, तो एक मित्र रोते हुए बोला कि अब हम तुम्हें कलाबाजी करते नहीं देख पाएंगे। हंसते हुए ओश्चेव ने कहा, ‘मैं तो उड़ान के लिए ही ज़िंदा हूं, जल्दी ही कलाबाजी दिखलाऊंगा।’ इस संकल्प का परिणाम यह हुआ कि ओश्चेव ने नकली पैर लगवाए और चलने का अभ्यास किया। उसने डॉक्टर्स की भी नहीं सुनी और एक दिन वह भी आया, जब ओश्चेव ने आकाश में कलाबाजी करके सबको हैरत में डाल दिया। उसने तो युद्ध में भी दुश्मनों से लोहा लिया और सिद्ध कर दिया कि संकल्प-शक्ति से हर कार्य सिद्ध हो सकता है।
प्रस्तुति : योगेन्द्र नाथ शर्मा ‘अरुण’