नकारात्मक प्रवृत्तियों से संरक्षण देने वाली साधना का व्रत
कालाष्टमी, भारतीय धार्मिक परंपरा में एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो भगवान शिव के उग्र रूप भैरव को समर्पित है। इसे न्याय, सत्य और शक्ति के प्रतीक के रूप में पूजा जाता है। इस दिन विशेष व्रत, पूजा और तांत्रिक अनुष्ठान होते हैं, जो भक्तों को मानसिक शांति, सुरक्षा और आत्मविश्वास प्रदान करते हैं।
भारतीय धार्मिक परंपरा में चंद्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को कालाष्टमी या काल भैरव अष्टमी भी कहा जाता है। यह दिन वास्तव में भगवान महादेव के उग्र और न्याय रक्षक रूप भैरव को समर्पित है। इसलिए कई जगह पर कालाष्टमी को भैरव अष्टमी भी कहते हैं और भैरव को काल अर्थात समय, मृत्यु, अन्याय और बाधाओं का नाश करने वाले देवता के रूप में पूजा जाता है। कालाष्टमी का व्रत और इस दिन की जाने वाली पूजा सिर्फ आध्यात्मिक साधना नहीं है बल्कि यह भारतीय जनजीवन में बहुत गहराई तक इसकी सांस्कृतिक जड़ों के रूप में मौजूद है।
धार्मिक महत्व
शिव पुराण और तंत्र ग्रंथों में वर्णित कथा के अनुसार एक बार ब्रह्मा और विष्णु के बीच श्रेष्ठता को लेकर बहस छिड़ गई। ब्रह्मा ने स्वयं को सर्वोच्च बताते हुए दावा किया कि उन्होंने शिवलिंग के अंत को देख लिया है। इस असत्य और अहंकार के दंड स्वरूप शिव के क्रोध से भैरव का प्राकट्य हुआ, जिन्होंने ब्रह्मा का पांचवां सिर काट दिया। यह घटना न्याय और सत्य की प्रतीक का विजय मानी जाती है। इस पौराणिक प्रसंग के कारण भैरव को अधर्म का दंडदाता, अन्याय का संहारक और सत्य का रक्षक माना गया है। कालाष्टमी इसी न्यायकारी तत्व की स्मृति का पर्व है। यह भक्तों को झूठ, अहंकार और अनुचित व्यवहार से दूर रहने का संदेश देती है।
कालाष्टमी के दिन की पूजा
कालाष्टमी के दिन भक्त व्रत रखते हैं और भैरव मंदिरों में दर्शन करने के लिए जाते हैं। रात में भैरव के नाम का कीर्तन आयोजित करते हैं। साधारण शिव पूजा के विपरीत भैरव उपासना में कुछ विशिष्ट तत्व होते हैं। मसलन भैरव उपासना में काला तिल, सरसों का तेल, उड़द, नीबू और काले वस्त्र अर्पित किए जाते हैं। भैरव को सिंहासन, डमरू, त्रिशूल और कुत्ते का साथ अत्यंत प्रिय माना जाता है। इसीलिए कई भक्तगण कालाष्टमी के दिन काले कुत्तों को विशेष रूप से भोजन कराते हैं। क्योंकि काले कुत्ते को भैरव का वाहन माना जाता है। रात्रि में भैरव चालीसा, रुद्राष्टक, काल भैरव स्त्रोत का पाठ किया जाता है। भैरव को समय का स्वामी भी कहा गया है। इसलिए कालाष्टमी का संदर्भ अनुशासन, जागरूकता और आत्मनिरीक्षण आध्यात्मिक साधना भी माना जाता है।
तांत्रिक साधना
तांत्रिक साधना में कालाष्टमी का विशेष महत्व है। इसे ऊर्जा, परिवर्तन या शक्ति रूपांतरण का दिन भी माना जाता है। तंत्र ग्रंथों में वर्णित है कि भैरव की साधना भय और अज्ञान पर विजय दिलाती है। इसी कारण कालाष्टमी के दिन भक्तगण भय, नकारात्मकता, रुकावटों और अशुभ ग्रहों के प्रभाव को शांत करने के लिए विशेष अनुष्ठान करते हैं। योगशास्त्र में यह दिन मूलाधार चक्र को सुदृढ़ करने वाला माना जाता है, जिसमें सुरक्षा और आत्मविश्वास की भावना बढ़ती है। इसी प्रकार धार्मिक आस्था के साथ ऊर्जा और मनोविज्ञान की दृष्टि से भी कालाष्टमी को एक विशेष दिन के रूप में देखा जाता है।
सांस्कृतिक और लोकविश्वास
भगवान शिव के रुद्र रूप भैरव से जुड़े सांस्कृतिक और लोकविश्वासों का सवाल है तो देश के कई हिस्सों में भैरव को गांव, कस्बे या नगर के रक्षक के रूप में भी देखा जाता है। राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु में भैरव के मंदिर स्थानीय संस्कृति से बहुत गहराई से जुड़े हुए हैं। अतः कालाष्टमी के दिन इन मंदिरों पर विशेष आयोजन सम्पन्न होते हैं। ढोल-नगाड़ों, रण-सींगों और शंख ध्वनि के साथ भैरव की शोभा यात्राएं निकाली जाती हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में भैरव नृत्य, ओझाई, दशमी कथा और लोकगीतों का आयोजन होता है। चूंकि भैरव को शहरों के मुख्यद्वारों, किलों और चौकियों के रक्षक देवता के रूप में भी मान्यता प्राप्त है। इसलिए लोग मानते हैं कि भैरव पूजा से दुर्घटना और दुश्मनी जैसी बाधाएं दूर होती हैं। इससे घर और परिवार में सुरक्षा और स्थिरता बढ़ती है। व्यापार में आ रही रुकावटें दूर होती हैं। इस तरह भैरव उपासना का सामाजिक संदेश भी है। समुदाय की सामूहिक सुरक्षा और अन्याय की भावना को सुदृढ़ करना।
मानसिक शांति
कालाष्टमी का एक महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि भय मानव की सबसे सामान्य भावनाओं में से एक है चाहे वह भविष्य से जुड़ा डर हो, किसी तरह की असुरक्षा हो या मन की उलझन हो, भैरव को भयरहित और भयरूपी अज्ञान का संहारक माना जाता है। इस दिन लोग अपने कठिन अनुभव, दुख, उलझन या मानसिक बोझ को सहजता से स्वीकार करते हैं। रात की साधना का ध्यान, मन को शांत करता है। रात्रि जागरण व्यक्ति को उसके भीतर छिपे डर और असुरक्षा आदि को देखने का अवसर देता है। यही कारण है कि भैरव उपासना को मनोवैज्ञानिक दृढ़ता से जोड़ा जाता है।
सांस्कृतिक महत्व वाले स्थल
देश के कुछ शहरों में कालाष्टमी का महत्व बहुत गहरा है। इनमें पहले स्थान पर है वाराणसी यानी काशी, जहां अष्ट भैरव के दर्शन के लिए देशभर से लोग कालाष्टमी पर विशेष यात्राएं करते हैं और अष्ट भैरव मंदिर में तेल चढ़ाना, काले कुत्तों को भोजन कराना, यहां की भैरव भक्ति परंपरा का पुराना हिस्सा है। इसी तरह उज्जैन में भैरवगढ़ और महाकाल क्षेत्र में भैरव पूजा अत्यंत प्रचलित है। यहां के लोकआस्था में भैरव को उज्जैन नगरी का मुख्य रक्षक माना जाता है तथा नैनीताल के नैना देवी क्षेत्र में भी भैरव पर्वत पर भक्तों के लिए रात्रि पूजन की विशेष व्यवस्था होती है। वास्तव में ये सभी विशिष्ट क्षेत्र कालाष्टमी को एक सांस्कृतिक पर्व बना देते हैं। यहां काल भैरव उपासना पारंपरिक उत्सव प्रक्रिया में सम्पन्न होती है।
सामाजिक और मानसिक पहलू
इस तरह देखें तो कालाष्टमी केवल एक धार्मिक पर्व नहीं है बल्कि यह सांस्कृतिक और मनोवैज्ञानिक स्तरों पर भी महत्वपूर्ण पर्व है। आज के बेहद तेज, तनावपूर्ण अनिश्चित समय में बड़े पैमाने पर लोग भैरव उपासना को आत्मविश्वास, साहस और नकारात्मक ऊर्जा सुरक्षा के रूप में अपनाते हैं। इसलिए कालाष्टमी के माध्यम से लोग अनुशासन, सत्य और न्याय जैसे मूल्यों को पुनःस्थापित करते हैं। यह दिन बाधाओं से निपटने का सांकेतिक रूप से एक महत्वपूर्ण दिन है और अंत में अगर देखें तो भगवान शंकर के भैरव रूप की शिक्षाएं, व्यक्ति को स्थिरता, स्पष्टता और निर्णय क्षमता देती हैं। इ.रि.सें.
