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धरती के गर्भ में बसा एक रहस्यमय शिवधाम

मुक्तेश्वर महादेव
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उत्तराखंड के गंगोलीहाट स्थित मुक्तेश्वर महादेव गुफा एक रहस्यमय, रोमांचकारी और आध्यात्मिक स्थल है, जहां शिव स्वयं धरती के गर्भ में विराजमान हैं। कठिन पहुंच, प्राकृतिक सौंदर्य और गुफा का दिव्य वातावरण इसे एक ऐसी साधना भूमि बनाते हैं, जहां पहुंचकर मन शिवमय हो उठता है।

मनोज वार्ष्णेय

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शिव परम सत्य हैं, और शिव में ही समाहित है सम्पूर्ण सृष्टि। शिव कहां नहीं हैं—जल, थल, आकाश, हर स्थान पर उनकी सत्ता है। शिव को पाने के लिए पर्वतों पर जाना, एक ऐसी तपस्या है जिसे हर कोई करना चाहता है, परंतु वहां तक पहुंच पाना हर किसी के बस की बात नहीं होती। शिव के कुछ ऐसे दिव्य स्थल भी हैं, जहां जाना अत्यंत कठिन तप के समान होता है। उत्तराखंड के गंगोलीहाट में दो ऐसे ही रहस्यमय स्थान हैं—पाताल भुवनेश्वर और मुक्तेश्वर महादेव।

पाताल भुवनेश्वर अब सर्वविदित है, किंतु यहां जिस मुक्तेश्वर महादेव की हम बात कर रहे हैं, वह एक ऐसा स्थान है, जहां तक पहुंचने के लिए उतनी ही साधना और शक्ति चाहिए जितनी कैलास पर्वत तक शिव को पाने में लगती है।

मुक्तेश्वर महादेव का यह मंदिर उत्तराखंड के गंगोलीहाट में स्थित है, हाटकालिका मंदिर के उत्तर में, एक गुफा के भीतर। यह गुफा देवदार और बांज के घने जंगलों के बीच स्थित है। मंदिर तक पहुंचने के लिए सड़क से लगभग एक किलोमीटर नीचे उतरना होता है। चूंकि यह क्षेत्र संरक्षित वन क्षेत्र में आता है, अतः इस गुफा तक जाने के लिए एक संकरे और ऊबड़-खाबड़ रास्ते से होकर गुजरना पड़ता है, जो दो से तीन फुट चौड़ा है। मार्ग अत्यंत रोमांचक है और वन्यजीवों की उपस्थिति का खतरा भी बना रहता है।

हाटकालिका मंदिर की देखरेख रावल परिवार करता है, अतः इस गुफा तक जाने से पहले उनकी अनुमति लेना उचित होता है। पूरा रास्ता झींगुरों की आवाज़, रंग-बिरंगी तितलियों, जंगली पुष्पों और फलों से भरा मिलता है। देवदार के पेड़ों पर कूदते बंदर इस यात्रा को और रोमांचक बना देते हैं।

इस गुफा का उल्लेख स्कंद पुराण में भी मिलता है। गुफा लगभग 20–25 फुट ऊंची और 20 मीटर चौड़ी है। यहां की चट्टानों से रिसता जल स्वतः ही भगवान शिव का अभिषेक करता है। गुफा में दो प्राचीन जलस्रोत (नौला) हैं—एक प्रवेश द्वार पर और दूसरा अंदर। प्रवेश द्वार वाले नौला से जल लेने के लिए भक्तों को लेटना पड़ता है। भक्त इन स्रोतों से जल लेकर शिव का अभिषेक करते हैं।

गुफा के भीतर शिवधुनी है, जहां जनेऊ संस्कार, पार्थिव पूजा आदि धार्मिक अनुष्ठान होते हैं। सावन मास, शिवरात्रि और अन्य पर्वों पर यहां भक्तों की भीड़ आती है, किंतु यह भीड़ अभी इतनी नहीं होती कि दर्शन में बाधा उत्पन्न हो। गुफा में एक बार में पचास से अधिक लोग नहीं समा सकते। यहां आने के लिए शरीर का उतना ही स्वस्थ होना आवश्यक है, जितना किसी ऊंचे पर्वत पर चढ़ने के लिए होता है।

वर्षा ऋतु में यह मार्ग कठिन हो जाता है। एक तो यह मार्ग कई स्थानों पर कच्चा और रपटीला है, दूसरा — देवदार के पेड़ों की गिरी पत्तियां इस मार्ग को और भी फिसलनभरा बना देती हैं।

गुफा के भीतर शिव परिवार की मूर्तियां हैं। साथ ही, प्राकृतिक रूप से उभरे पत्थरों में शिव और गणेश जी के भी दर्शन होते हैं। गुफा के अंतिम भाग तक पहुंचने के लिए भक्तों को रपटीले पत्थरों से गुजरना पड़ता है, जहां सैकड़ों चमगादड़ों का निवास है।

यहां बिजली की व्यवस्था होती है, किंतु वह केवल विशेष धार्मिक अवसरों पर ही उपलब्ध रहती है। नौला से जल लाकर भक्त न केवल शिव को अर्पित करते हैं, बल्कि उसे अपने घर भी ले जाते हैं। यह जल मां गंगा के जल की ही तरह पवित्र और निर्मल माना जाता है।

यहां पहुंचने के दो मुख्य सड़क मार्ग—काठगोदाम होकर, जो लगभग 200 किलोमीटर है। दूसरा, टनकपुर होकर, जो लगभग 166 किलोमीटर है और अपेक्षाकृत छोटा व सुगम है।

निकटतम रेलवे स्टेशन काठगोदाम है, जो दिल्ली सहित देश के विभिन्न शहरों से जुड़ा है। काठगोदाम या टनकपुर से गंगोलीहाट के लिए टैक्सी या बस उपलब्ध हैं। मुक्तेश्वर गुफा का प्रवेश मार्ग हाटकालिका मंदिर परिसर से होकर जाता है।

यहां पूरे वर्ष जाया जा सकता है, परंतु अक्तूबर से जून तक का समय सर्वाधिक उपयुक्त है। मौसम ठंडा रहता है, इसलिए गर्म कपड़े अवश्य साथ रखें। हल्का-फुल्का खाद्य पदार्थ और पानी भी साथ ले जाना उचित होगा।

देखने के लिए आसपास—पाताल भुवनेश्वर गुफा, जो अत्यंत प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। हाटकालिका मंदिर, शक्तिपीठ के रूप में प्रसिद्ध।

लगभग 36 किलोमीटर दूर स्थित चौकोड़ी, जहां से पंचाचूली और नंदा देवी शिखरों का मनोहारी दृश्य दिखाई देता है।यहां स्थित कस्तूरी मृग विहार ट्रैकिंग के लिए आदर्श है।

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