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श्रद्धा, संस्कृति और संकीर्तन का वैश्विक उत्सव

जन्माष्टमी 15 अगस्त
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जन्माष्टमी केवल मथुरा-वृंदावन तक सीमित नहीं, बल्कि यह पर्व भारत के कोने-कोने और विदेशों में भी उत्साहपूर्वक मनाया जाता है। कृष्ण जन्म के पावन अवसर पर देशभर में विविध परंपराएं, सांस्कृतिक आयोजन और भक्ति भाव की अनूठी छवियां देखने को मिलती हैं।

जन्माष्टमी का भक्ति से भाव-विभोर कर देने वाला उत्सव सिर्फ मथुरा-वृंदावन की गलियों तक ही सीमित नहीं, बल्कि देश के कोने-कोने में जन्माष्टमी के रंग बिखरे हुए हैं। देश के अलग-अलग जगहों में जन्माष्टमी पर धूमधाम से सांस्कृतिक उत्सव मनाये जाते हैं।

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द्वारकाधीश मंदिर, द्वारका

भगवान श्रीकृष्ण की यदि जन्मभूमि मथुरा और वृंदावन है। अगर उन्होंने अपनी रास लीलाएं और बचपन की अठखेलियां ब्रज में की हैं तो उनकी कर्मभूमि द्वारका है। द्वारका उन्हें द्वारकाधीश यानी द्वारका के राजा के तौर पर जानता है। उनकी इस कर्मभूमि द्वारका में जन्माष्टमी उत्सव बहुत ही भव्यता के साथ मनाया जाता है। इस दिन द्वारका के प्रसिद्ध द्वारकाधीश मंदिर को फूलों और दीयों से सजाया जाता है। इस दिन यहां के जो सबसे खास आकर्षण हैं, उनमें मंगला आरती और झूलन उत्सव प्रमुख हैं। जन्माष्टमी के दिन गुजरात में समुद्र के किनारे स्थित द्वारका नगरी में देश-विदेश के लाखों श्रद्धालु और पर्यटक यहां इस मंदिर के जन्माष्टमी उत्सव में शामिल होते हैं। जन्माष्टमी के समय द्वारका में आने वाले पर्यटकों की संख्या में 50 फीसदी तक बढ़ोतरी हो जाती है।

उडुपी श्रीकृष्ण मठ

दक्षिण भारत में कृष्ण भक्ति का एक महत्वपूर्ण केंद्र उडुपी है। जन्माष्टमी के दिन उडुपी स्थित, उडुपी श्रीकृष्ण मठ में विशेष पूजा, भजन और सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं। द्वारका की तरह यहां भी जन्माष्टमी के मौके पर देश-विदेश से श्रद्धालु इस उत्सव कार्यक्रम को देखने और इसमें हिस्सेदारी करने के लिए आते हैं। मंदिर में कृष्ण लीला, नाटक, रथयात्रा और ध्वजारोहण का आयोजन किया जाता है। देर रात तक पूरे उडुपी शहर में रतजगे का माहौल होता है। हर तरफ लोग कृष्ण भक्ति में डूबे दिखते हैं। रात 12 बजे भगवान कृष्ण के जन्म के बाद यह उत्सव अपने चरम पर पहुंचता है और फिर दिनभर भजन-कीर्तन मंे रमे रहने वाले भक्तजन प्रसाद खाकर अपना उपवास व्रत तोड़ते हैं।

पुरी का संकीर्तन भोग

ओड़िशा स्थित पुरी का जगन्नाथ मंदिर कृष्ण भक्ति से सराबोर एक वैश्विक केंद्र है। यहां की रथयात्रा पूरी दुनिया में मशहूर है और इस रथयात्रा में भाग लेने के लिए दुनिया के दर्जनों देशों से भक्त आते हैं। लेकिन रथयात्रा के लिए मशहूर पुरी में कृष्ण जन्माष्टमी पर्व भी एक भव्य कार्यक्रम होता है, जिसे संकीर्तन भोग और ध्यान कार्यक्रम कहते हैं। जगन्नाथ मंदिर से जुड़ा यह उत्सव कृष्ण के अवतार के रूप में बेहद भक्ति और श्रद्धा से ओतप्रोत होता है। इस कृष्ण अवतार कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए देश-विदेश के लाखों कृष्ण भक्त जन्माष्टमी को पुरी जगन्नाथ मंदिर पहुंचते हैं। जन्माष्टमी की रात यहां विशेष संकीर्तन भोग का आयोजन होता है और ध्यान कार्यक्रम भी आयोजित होता है, जिसमें भाग लेने के लिए देश-दुनिया के कोने-कोने से कृष्ण भक्त पहुंचते हैं।

इम्फाल की रास लीला

जैसा कि हम सब जानते हैं उत्तर पूर्व भी कृष्ण भक्ति में डूबा रहने वाला भू-भाग है। यहां विशेषकर मणिपुर में वैष्णो समुदाय कृष्ण जन्माष्टमी को पारंपरिक रासलीला और विख्यात मणिपुरी नृत्य के विशिष्ट संयोजन के साथ मनाते हैं। कृष्ण जन्माष्टमी पर इम्फाल मंे आयोजित होने वाली रासलीला पूरी दुनिया में विख्यात है। इस रासलीला में भगवान कृष्ण के जीवन के विभिन्न पहुलओं का अत्यंत भक्तिपूर्ण ढंग से मंचन होता है और यह मंचन विशेष मणिपुरी नृत्य पर आधारित होता है। इस दिन पूरे इम्फाल में एक बेहद वैष्णव भक्ति का माहौल होता है। जगह-जगह रास लीलाओं का आयोजन होता है। लेकिन इम्फाल में आयोजित सबसे विशिष्ट कार्यक्रम में देश-विदेश के लोग पहुंचते हैं और इस दिन यहां मणिपुरी क्लासिक नृत्य के साथ भगवान कृष्ण की जीवनलीला का मंचन होता है।

नाथद्वारा का छप्पन भोग

राजस्थान स्थित श्रीनाथ जी मंदिर में जन्माष्टमी का शायद सबसे विशिष्ट और भव्य कार्यक्रम होता है। इस दिन राज भोग, छप्पन भोग और झांकी सजावट ही यहां का सबसे बड़ा आकर्षण होते हैं। श्रीनाथ जी के मंदिर में देर रात तक कृष्ण भक्ति से ओतप्रोत माहौल होता है। कृष्ण जन्म के बाद राज भोग और छप्पन भोग से भगवान के लिए भोग निकालने के बाद ही भक्त लोग अपना व्रत तोड़ते हैं। इस कार्यक्रम में भी शरीक होने के लिए देश के कोने-कोने से लोग आते हैं।

मुंबई का दही हांडी उत्सव

मुंबई में कृष्ण जन्माष्टमी का उत्सव देश के दूसरे हिस्सों से बिल्कुल अलग और उल्लासमय ढंग से मनाया जाता है। इस दिन यहां महाराष्ट्र के हर शहर में और उसमें भी विशेष तौर पर मुंबई में हर गली में एक ऊंचे स्थान पर दो पेड़ों या दो इमारतों के बीच बंधी रस्सी में बीचोंबीच जहां चारों तरफ खुला मैदान होता है, बहुत ऊंचे एक हांडी बांधी जाती है, जिसमें दही, मिठाइयां और रुपये भरे होते हैं। इन हांडियों को कृष्ण के बाल सखा रूप माने जाने वाले गोविंदा मानव पेड़ का आकार बनाकर हवा में हांडी तक पहुंचते हैं और फिर इसे तोड़ते हैं और वहां मौजूद लोग हर्ष उल्लास में डूब जाते हैं। मुंबई में जन्माष्टमी के दिन गोविंदाओं की लाखांे टीमें दही हांडी उत्सव में घूम-घूमकर हिस्सा लेती हैं और जब एक टीम हांडी तक नहीं पहुंच पाती, तो दूसरी टीम को उसके लिए मौका दिया जाता है। हांडी फोड़ने वाले मित्रमंडल को वह सोसायटी या मोहल्ला एक खास इनाम देकर पुरस्कृत करता है, जो सोसायटी या मोहल्ला मिलकर दही हांडी उत्सव के आयोजन हेतु ऊंचे स्थान पर दही हांडी बांधता है।

विदेशों में जन्माष्टमी उत्सव

भारत के बाहर नेपाल, बांग्लादेश, फिज़ी, मॉरीशस, त्रिनिदाद, सूरीनाम आदि में भी भव्य जन्माष्टमी उत्सव मनाये जाते हैं। नेपाल के पत्थर गांव और काडमांडू स्थित कृष्ण मंदिरों मंे इस दिन भक्तों की भीड़ उमड़ती है और नृत्य, भजन संध्या तथा झूलों की परंपरा से उत्सव मनाया जाता है। बांग्लादेश में ढाका स्थित जैसोर में जन्माष्टमी को खास पर्व के रूप मंे मनाया जाता है। इस दिन यहां शोभा यात्रा, भगवत गीता पाठ और सांस्कृतिक नाटकों का मंचन होता है। फिज़ी, मॉरीशस और सूरीनाम में प्रवासी भारतीय समुदाय के लोग कीर्तन मंडलियों के जरिये कृष्णलीला का मंचन और भजन गाते हैं। इसके अलावा लंदन के इस्कॉन मंदिर, न्यूयार्क ह्यूस्टन और लॉस एंजिल्स आदि के इस्कॉन मंदिरों में भी जन्माष्टमी में भव्य सांस्कृतिक उत्सव मनाये जाते हैं। इसके साथ ही यूरोप में मास्को, यूक्रेन, हंगरी और जर्मनी के इस्कॉन मंदिरों में भी कृष्ण जन्माष्टमी बहुत भव्य ढंग से आयोजित की जाती है। इसलिए कृष्ण जन्माष्टमी का उत्सव सिर्फ मथुरा और वृंदावन में ही नहीं पूरी दुनिया में पूरी भव्यता के साथ मनाया जाता है। इ.रि.सें.

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