शक्ति आराधना और असुरी प्रवृत्तियों पर विजय का पर्व
नवरात्रि में महाअष्टमी के दिन को आध्यात्मिक ऊर्जा का शिखर माना जाता है। इसी दिन मां भगवती दुर्गा ने महिषासुर नामक राक्षस का वध किया था और देवताओं को महिषासुर के अत्याचारों से मुक्ति दिलाई थी। इसलिए इस दिन को शक्ति की विजय और अधर्म पर धर्म की स्थापना का प्रतीक माना जाता है। इस वजह से नवरात्रि के नौ दिनों में दुर्गा महाअष्टमी के दिन का विशेष महत्व होता है।
हिंदू धर्म की गहन आस्था और भक्ति से जुड़ें पर्वों में नवरात्रि का अपना अलग ही स्थान है। नौ दिनों तक चलने वाला यह पर्व शक्ति की साधना, आत्मशुद्धि और नवचेतना का पर्व माना जाता है। नवरात्रि के इन नौ दिनों में से प्रत्येक दिन के साथ मां दुर्गा के एक विशेष स्वरूप का संबंध होता है। मगर इन नौ दिनों मंे अगर कोई एक दिन सबसे विशेष और सर्वाधिक महत्वपूर्ण होता है तो वह दिन है, महाअष्टमी का दिन। नवरात्रि में महाअष्टमी के दिन को आध्यात्मिक ऊर्जा का शिखर माना जाता है। इसी दिन मां भगवती दुर्गा ने महिषासुर नामक राक्षस का वध किया था और देवताओं को महिषासुर के अत्याचारों से मुक्ति दिलाई थी। इसलिए इस दिन को शक्ति की विजय और अधर्म पर धर्म की स्थापना का प्रतीक माना जाता है। इस वजह से नवरात्रि के नौ दिनों में दुर्गा महाअष्टमी के दिन का विशेष महत्व होता है।
नवरात्रि में अलग-अलग दिनों के अलग-अलग पूजा विधान के मुताबिक इस आठवें दिन मां दुर्गा के महागौरी स्वरूप की पूजा होती है। मां दुर्गा का महागौरी स्वरूप सबसे निर्मल, पवित्र और शांति का प्रतीक माना जाता है। शास्त्रों के मुताबिक इस दिन उनका स्वरूप चंद्रमा की तरह उज्ज्वल और सौम्य होता है। भक्त इस दिन मां से अपने जीवन में अज्ञान और दुख को दूर कर ज्ञान, शांति और समृद्धि की याचना करते हैं। इसलिए नवरात्रि में दुर्गा पूजा का विशेष महत्व है। इस दिन को महाअष्टमी और दुर्गा पूजा के महापर्व के नाम से भी जाना जाता है। पश्चिम बंगाल, असम, ओडि़शा और पूर्वी भारत जहां दुर्गा पूजा की धूम होती है, उन सब जगहों पर महाअष्टमी नवरात्रि का चरम दिन होता है। इस दिन देवी प्रतिमाओं की भव्य पूजा, अर्चना और विशेष अनुष्ठान जैसे अंजलि या पुष्पांजलि का आयोजन होता है।
महाअष्टमी के दिन कन्या पूजन होता है। इस दिन नौ कन्याओं को मां दुर्गा के नौ रूप मानकर उनकी पूजा की जाती है और उन्हें भोज कराया जाता है। साथ ही उन्हें वस्त्र, भोजन और दक्षिणा दी जाती है। यह परंपरा इस विचार को पुष्ट करती है कि नारी ही शक्ति का मूर्त रूप होती है। बंगाल में इस दिन महापूजा के समय कुछ विशेष जगहों पर प्रतीकात्मक रूप से अष्टमी बलि की भी परंपरा निभाई जाती है। भावार्थ यह है कि इस दिन भक्त अपने भीतर की नकारात्मकता और आसुरी प्रवृत्तियों का बलिदान करते हैं और यही उनकी सबसे सच्ची पूजा होती है। इस दिन सुबह से ही भक्तगण विशेष अष्टमी अंजलि अर्पित करते हैं। शाम को की जाने वाली संध्या आरती अत्यंत भव्य और भक्तिपूर्ण वातावरण रचती है, जिससे श्रद्धालु अपने को देवी की दिव्य उपस्थिति के निकट अनुभव करते हैं।
महाअष्टमी का असली मकसद बाहरी अनुष्ठानों तक सीमित नहीं है, इसका गहरा और आध्यात्मिक संदेश खुद पर विजय पाने का है। इसलिए भक्तों को इस दिन अपने भीतर मौजूद क्रोध, लोभ, मोह, ईर्ष्या और अहंकार जैसे असुरों को हराकर सच्ची जीत दर्ज करनी चाहिए। दरअसल नवरात्रि की यही सबसे बड़ी साधना है। महाअष्टमी का पर्व हमें सिखाता है कि जीवन में शक्ति और शांति दोनों का महत्व है, इसलिए दोनो का संतुलन होना जरूरी है। इस दिन होने वाली कन्या पूजा की परंपरा उजागर करती है कि समाज की असली शक्ति स्त्री ही है। उसका सम्मान करना ही दिव्यता की आराधना है। इसलिए महाअष्टमी के दिन का उपवास, ध्यान और जप, तप करने से मन की शुद्धि होती है और साधक को सिद्धि प्राप्त होती है। शास्त्रों में इसे ही आंतरिक शांति का जागरण दिवस माना जाता है। इ.रि.सें.