पूर्वजों की स्मृति से स्वयं को जोड़ने का दिन
सर्व पितृ अमावस्या पितृ पक्ष का अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण दिन है, जब उन सभी पूर्वजों का श्राद्ध किया जाता है जिनकी तिथि ज्ञात नहीं होती। इस दिन तर्पण, पिंडदान और दान के माध्यम से पितरों को श्रद्धांजलि दी जाती है, जिससे उनकी आत्मा को शांति और आशीर्वाद प्राप्त होता है।
सर्व पितृ अमावस्या पितृ पक्ष का सबसे बड़ा और अंतिम दिन होता है। इस दिन हम जिस भी पूर्वज के मृत्यु का दिन न जानते हों और किसी भी वजह से अगर हम अपने किसी पूर्वज का श्राद्ध न कर सकें हों, ऐसे सभी पूर्वजों का इस दिन स्मरण और श्राद्ध किया जाता है। यह सर्व पितृ अमावस्या है यानी सभी पितरों के साझे स्मरण और श्राद्ध का दिन।
तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध
हिंदू धर्म में सर्व पितृ अमावस्या को पूर्वजों को स्मरण करने और उनके प्रति श्रद्धा व्यक्त करने का सबसे श्रेष्ठ दिन माना जाता है। इस दिन सभी पितरों को तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध अर्पित किया जाता है। मान्यता है कि इससे पूर्वज प्रसन्न होकर हमें सुख, समृद्धि और लंबी आयु का आशीर्वाद देते हैं।
शांति के लिए समष्टि पूजा
इस दिन को समष्टि पूजन का दिन भी कहते हैं, क्योंकि जिन पितरों का श्राद्ध पूरे पक्ष में किसी तिथि विशेष के अनुसार सम्पन्न न हो सका हो, उनका श्राद्ध भी इस दिन किया जाता है। मान्यता है कि इस दिन किये गये तर्पण से पितरों की आत्माओं को शांति मिलती है और वे अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं, उन पर अपनी कृपा बनाये रखते हैं।
महालया अमावस्या
सर्व पितृ अमावस्या जिसे महालय अमावस्या भी कहा जाता है, विशेषकर बंगाल और ओडिशा में बहुत बड़े अनुष्ठान का दिन होता है। इस दिन लोग प्रातःकाल पवित्र नदियों, सरोवरों या कुओं में स्नान करके साफ व स्वच्छ वस्त्र धारण करते हैं, फिर अपने हाथ में पवित्र कुश (एक पवित्र घास), जल, तिल और पुष्प के साथ पितरों का तर्पण करते हैं।
आटे और चावल के बनाये गये पिंड और तेल घी के साथ उनका दान किया जाता है। इसके बाद वहां उपस्थित गरीब और जरूरतमंद लोगों को भोजन कराने के साथ अपनी श्रद्धा के अनुसार उन्हें कुछ दान दिया जाता है।
पारिवारिक एकता और पुण्य स्मरण
इस दिन का श्राद्ध आमतौर पर पूरे कुटुम्ब के साथ किया जाने वाला श्राद्ध होता है, इसलिए इस तर्पण में परिवार के बहुत सारे लोग एकत्र होकर अपने पूर्वजों का स्मरण करते हैं और अपने अतीत को याद करते हैं। इस दिन परिवार के सारे लोग इकट्ठे बैठकर अपने पूर्वजों को याद करते हुए आपसी संबंधों को बेहतर बनाते हैं। पितृ तर्पण करने और जरूरतमंदों को भोजन कराने के बाद परिवार के सारे लोग साथ बैठकर भोजन करते हैं और फिर लंबे समय तक अपने पूर्वजों का तरह तरह से स्मरण करते हैं। इस दिन विशेष तौरपर भोजन, वस्त्र, अन्न और गुड़ का दान दिया जाता है।
जीव-जंतुओं को भोजन
हिंदू परंपरा में जड़ चेतन सभी को ईश्वरीय और आत्मीय दर्जा दिया गया है। इसलिए इस दिन गौ, कौवों और कुत्तों को अपने पूर्वजों का पसंदीदा भोजन कराया जाता है। माना जाता है कि ऐसा करने से पूर्वज आशीर्वाद देते हैं, जो बहुत फलदायी होता है।
फिर मंगल दिनों की शुरुआत
सर्व पितृ अमावस्या की संध्या को कुछ राज्यों में घर में पितरों के स्मरण का दीपक जलाया जाता है, इसके अलावा गांव के मंदिर, पपील के पेड़, पवित्र सरोवर और नदी के किनारे भी दीपक जलाने का चलन हैं। सर्व पितृ अमावस्या से पितृ पक्ष का समापन हो जाता है। सभी पितरों के सामूहिक श्राद्ध के बाद सूतक के दिन खत्म हो जाते हैं और इसके बाद शुरू होने वाली नवरात्रि से फिर सभी तरह के मंगल दिनों की शुरुआत हो जाती है। हिंदू धर्म की धार्मिक परंपराएं दरअसल देव पूजन तक सीमित नहीं होतीं। पितृ पूजन से भी इनका गहरा रिश्ता होता है और जब एक बार 15 दिनों तक पितृ पक्ष के श्राद्ध काल में पितरों का श्राद्ध और तर्पण सम्पन्न हो जाता है तो फिर नये जीवन के शुरुआत के लिए पूर्वजों के आशीर्वाद से नये कामकाज किये जाने शुरू हो जाते हैं।
तीर्थों में पिंडदान और व्रत
कई लोग सर्व पितृ अमावस्या को गया, प्रयागराज, वाराणसी और हरिद्वार जैसे तीर्थों में एकत्र होकर अपने पूर्वजों का पिंडदान करते हैं। जो लोग यहां नहीं जा पाते, वे अपने घर, गांव के तालाब आदि के किनारे पितरों का सार्वजनिक श्राद्ध करते हैं। इस कर्मकांड में जो लोग शामिल होते हैं, वे लोग इस पूरे कर्मकांड के दौरान व्रत रखते हैं और अपना व्रत सारे कर्मकांड सम्पन्न हो जाने के बाद तोड़ते हैं।
पितरों के प्रति कृतज्ञता
हालांकि, यह समूचा कर्मकांड विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों के जरिये सम्पन्न होता है, मगर इसका एक भावनात्मक पक्ष भी है। यह महज कर्मकांड नहीं होता बल्कि अपनी जड़ों और अपने पूर्वजों की स्मृति से खुद को जोड़ने का दिन भी होता है। सर्व पितृ अमावस्या के दिन हम अपने पितरों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन करके परिवार व्यवस्था का सम्मान करते हैं और अपनी वंश परंपरा के प्रति श्रद्धा व्यक्त करते हैं। कुल मिलाकर सर्व पितृ अमावस्या वास्तव में पूर्वजों को श्रद्धांजलि देने के साथ-साथ परिवार जैसी व्यवस्था के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने का दिन है। इ.रि.सें.