डोकलाम पर बनी न रहे तनातनी
डोकलाम नामक स्थान जहां पर भारत, चीन और भूटान की सीमाएं मिलती हैं वहां विवाद की नवीनतम घटना ने पुराने अनुभवों की याद ताजा कर दी। ऐसी स्थिति वर्ष 2013 में लद्दाख क्षेत्र के डेपसांग पर बन गई थी। तथापि शांति और सौहार्द बनाए रखने और इसकी निगरानी करने वाली व्यवस्था दोनों देशों के बीच अपनी जगह पर कायम है और यह इसी का परिणाम है कि विवाद आखिरकार शांतिपूर्वक सुलझाए जाते रहे हैं। घटनाक्रम हाथ से न निकलने पाए, इसको लेकर दोनों पक्ष कालांतर में प्रतिबद्ध रहे हैं। उम्मीद है कि डोकलाम की घटना दोनों मुल्कों के बीच रिश्तों में कशीदगी लाने का सबब नहीं बन पाएगी। हाल ही में कजाखिस्तान के अलमाटी में संपन्न शंघाई सहयोग संगठन के शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच मैत्रीपूर्ण बातचीत हुई थी। इससे ठीक पहले चीन के नेतृत्व में बनने वाली वन बेल्ट-वन रूट नामक परियोजना हेतु बुलाए गए सम्मेलन का भारत ने बहिष्कार किया था और रिश्तों में कुछ खटास पैदा हो गई थी। उम्मीद है कि इस बैठक से संबंधों में एक बार फिर से पैदा हुई गर्माहट नवीनतम घटना की वजह से फिर से ठंडी नहीं पड़ेगी और यदि ऐसा हुआ तो हैमबर्ग में होने जा रहे जी-20 देशों के शिखर सम्मेलन में इन दोनों नेताओं के बीच द्विपक्षीय वार्ता की संभावना धूमिल पड़ जाएगी।
साझी सीमा रेखा पर संबंधित पक्षों द्वारा अपनी आधारभूत संरचनाओं का निरंतर विकास करते रहने से वहां सीमा सुरक्षा बलों को उन जगहों पर भी लगातार गश्त लगाने में आसानी हो जाती है, जो इससे पहले पहुंचने के लिहाज से काफी मुश्किल गिने जाते थे। लेकिन सड़कें बन जाने से इस प्रकार की परिस्थितियां पहले से ज्यादा बनने लगी हैं जब गश्त पर निकले सैन्य दलों का एक-दूसरे से सामना हो जाता है। वास्तविक सीमा नियंत्रण रेखा की निशानदेही को लेकर इनमें वाद-विवाद और तनातनी का माहौल बन जाता है। इस तरह की घटनाएं न हों और शांति और सौहार्द बरकरार रहे, इस हेतु उपाय द्विपक्षीय व्यवस्था तंत्र में सुधार करते हुए समावेश करने होंगे।
भारत और चीन के बीच शांति और सौहार्द बनाए रखने वाला तंत्र इन नियमों पर टिका है कि दोनों मुल्कों को यह प्रतिबद्धता रखनी होगी कि इनमें कोई भी अपने तौर पर वास्तविक सीमा रेखा की निशानदेही को नहीं बदलेगा। दोनों ने इस प्रावधान को लेकर भी अपनी सहमति जता रखी है कि पैदा होने वाले किन्हीं विवादों को बातचीत के जरिए हल किया जाएगा, इसकी शुरुआत पहले स्थानीय स्तर और जरूरी होने पर इसे उच्चतम स्तर तक ले जाया जाएगा। लेकिन पिछले काफी वक्त से चीन यथास्थिति में बदलाव लाने की गरज से एकतरफा कार्रवाई करने लगा है। यही कुछ डोकलाम में भी हुआ जब भारत ने उस संकरे लिंक-क्षेत्र में चीन द्वारा दखलअंदाजी का विरोध किया, जिससे होकर भारत के उत्तर-पूर्वी राज्य बाकी देश से जुड़े हुए हैं। चीन का मानना है कि उसका यह कृत्य ‘इतिहास में सिक्किम और तिब्बत के संदर्भ में हुई ग्रेट ब्रिटेन-चीन संधि की व्यवस्थाओं के अनुरूप है।’ उसका कहना है कि सीमा रेखा में जिस सबसे दक्षिणी बिंदु को भूटान की सीमा पर गिपमोची चोटी के रूप में दर्शाया गया है, वह दरअसल और भी ज्यादा दक्षिण की ओर पड़ता है। इस हिसाब से डोकलाम पर चीन का हक बनता है। लेकिन इस दावे पर भूटान ने भी एतराज किया है। इससे पहले चीन स्वयं भी इस इलाके को विवादित क्षेत्र मानता आया है और यहां पर कच्चे गश्त-मार्ग बनाने के उसके प्रयासों का भूटान के सीमा-रक्षकों ने कालांतर में भी प्रतिरोध किया है। हालांकि चीन और भारत दोनों ने ही मानकों के अनुसार सिक्किम-तिब्बत सीमा रेखा का पुनर्निर्धारण करने पर सहमति जताई है सिवाय तथाकथित ‘द फिंगर’ नामक इस भूभाग के जो सीमारेखा का सबसे उत्तरी बिंदु भी है। इस बात पर भी दोनों एकमत थे कि जहां तक इस त्रिदेशीय सीमा क्षेत्र के विवाद का मामला है, उसे भूटान से विचार-विमर्श करने के बाद ही सुलझाया जाएगा। तब तक सभी पक्षों को यथास्थिति बनाए रखने वाली धारा की पालना करना जरूरी था। मौजूदा समस्या इसलिए उठ खड़ी हुई क्योंकि चीन ने इस इलाके में पहले से बने कच्चे रास्तों की जगह सैन्य-कोटि की पक्की सड़क बनाने का काम शुरू कर दिया। ऐसी हालत में सिलीगुड़ी-गलियारे के नाम से जाने जाते मार्ग को सामरिक दृष्टि से खतरा होने की संभावना पैदा हो जाएगी। इस सड़क को भारत और भूटान के परिवहन के लिए बहुत महत्वपूर्ण और जीवनरेखा माना जाता है।
चीन की ओर से मांग आई है कि इस मुद्दे को सुलझाने की खातिर पूर्व-शर्त के तौर पर भारत को पहले डोकलाम में तैनात किए गए अपने सुरक्षा सैनिकों हटाना होगा। तथ्य तो यह है कि यह समस्या कभी की हल हो जाती यदि दोनों पक्ष यथास्थिति बनाए रखने वाले नियम पर कायम रहते और वहां से अपने-अपने सैनिक हटा लेते।
भारतीय पक्ष स्थिति में तीव्रता लाने का इच्छुक नहीं है। यही कारण है कि चीन की ओर से रोज-ब-रोज भड़काने वाली बयानबाजी, वह चाहे उसके आधिकारिक सूत्रों से आई हो या वहां के मीडिया में दिखाई दे रही है, भारत की प्रतिक्रिया अपेक्षाकृत संयमित और सधी हुई है। नाथू-ला दर्रे से होकर की जाने वाली कैलाश-मानसरोवर यात्रा को रोकने और हाल में तिब्बत की यात्रा पर जाने वाले भारतीय पत्रकार को दी गई अनुमति को वापिस लेने वाले चीनी सरकार के फैसले कायदे से नहीं बनते थे।
भारत के लिए यह घटना संवेदनशील विषय है क्योंकि न केवल इसमें चीन बल्कि हमारे निकटतम पड़ोसी देश भूटान का हित भी जुड़ा है और भारत नहीं चाहेगा कि वह ऐसा कुछ करे जिससे भूटान को कोई शर्मिंदगी या चीन के साथ उसके संबंधों में कोई जटिलता पैदा हो। इसलिए जितना हो सके इस घटना को पर्दे के पीछे रहकर सुलझाया जाए। ऐसा पहली मर्तबा हुआ है कि किसी तीसरे देश की भूमि पर भारतीय सेना का टकराव चीन के सैनिकों से हुआ हो और भूटान जैसे खुद्दार और स्वतंत्र देश के लिए यह मामला इससे ज्यादा संवेदनशील नहीं हो सकता था। यह कयास लगाना भले ही आसान हो कि भारत ने चीन से अपने विवाद में अनइच्छुक भूटान को घसीट लिया है लेकिन भूटान सरकार द्वारा जारी की गई आधिकारिक प्रेस विज्ञप्ति से यह सिद्ध हो जाता है कि उसने स्वयं भी डोकलाम में चीन द्वारा सड़क बनाए जाने को लेकर अपना रोष प्रकट किया है। लेकिन हमें इस बात पर जोर देते रहना होगा कि यह संदेश जाए कि यह दोनों देशों को दरपेश एक साझे खतरे के प्रति संयुक्त प्रयास है।
श्याम सरन
चीन का मानना है कि भारत को यह स्वीकार करना पड़ेगा कि दोनों देशों के बीच शक्ति संतुलन में बहुत बड़ा अंतर है। चूंकि सैन्य रूप से भारत उसके सामने कहीं नहीं टिकता, अतएव उसे चीन से टक्कर लेने से बचना चाहिए। हालांकि विगत में चीन की एक तरह की मौन स्वीकृति रही है कि दक्षिण-एशिया क्षेत्र में भारत का काफी प्रभाव है। परंतु अब वह यह खिताब अपने नाम करना चाहता है। एशिया प्रशांत इलाके में उसका मानना है कि ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिका ने ‘पिवेट टू एशिया’ नामक अपनी कूटनीतिक योजना को त्याग दिया है। चीन को यह भी यकीन हो गया है कि दक्षिण-चीन सागरीय क्षेत्र और दक्षिण-पूर्व के इलाके में अब उसके सामने कोई चुनौती नहीं बची है। इस संदर्भ में हालांकि वह भारत को एक ऐसे देश की तरह नहीं लेता जो चीन की आकांक्षाओं में कोई रुकावट बन पाएगा, तथापि चीनियों की धारणा में राष्ट्रपति शी जिनपिंग की अति महत्वाकांक्षी योजना, वन बेल्ट-वन रूट योजना से भारत का खुद को अलहदा रखना एक असंगत कार्य है। डोकलाम से बने गतिरोध में चीन से निपटने वाले उपायों में उपरोक्त समस्त संदर्भों को ध्यान में रखना होगा। अतएव जहां हमें अपने निश्चय में दृढ़ता रखनी होगी वहीं इसका प्रदर्शन सावधानी और व्यावहारिकता अपनाते हुए करना होगा।
(लेखक पूर्व विदेश सचिव हैं।)