कला-संस्कृति का अनूठा संगम सूरजकुंड क्राफ्ट मेला
बाल की खाल
गत 26 वर्षों से आयोजित किये जा रहे सूरजकुंड हस्तशिल्प मेले ने आज ऐसी लोकप्रियता हासिल की है कि वह आज राजधानी दिल्ली के वार्षिक कैलेंडर का महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुका है। यहां जुटने वाली देश-विदेश के अतिथियों की भीड़ इसका ज्वलंत प्रमाण है। अर्धशिक्षित व विनम्र कला-शिल्पियों की अनूठी कलाकृतियां हैरत में डालती हैं कि वे कैसे बांस व लकड़ी की कलाकृतियों को सार्थक परिणति देते हैं जिनके प्रदर्शन में इतावली विशिष्ट शैली का सूक्ष्म-अंतर स्पष्ट गोचर होता है। इसका श्रेय एक खूबसूरत युवा महिला सीरत नरेंद्र को जाता है। जहां एक ओर यह ग्रामीण भारत को बेहतर ढंग से समझती हैं, वहीं शहरी परिवेश वाले इटली को बखूबी महसूस करती हैं। उन्होंने वेशभूषा डिजाइन, आंतरिक सज्जा, फैशन तथा ग्राफिक्स डिजाइन में दक्षता हासिल की है। उन्होंने यह ज्ञान इटली की अग्रणीय अकादमियों में अध्ययन करके हासिल किया है। वहां उन्होंने आंतरिक सज्जा, ग्राफिक्स, विज्ञापन व फोटोग्राफी की बारीकियों को सीखा। उनकी प्रतिभा को महसूस करते हुए उन्हें प्रिमीयो मिलानो, प्रीमीयो देगास व सर्वश्रेष्ठ छात्रा का पुरस्कार इटली में दिया गया। वहीं भारत में आधारशिला, भारत निर्माण व सीएल नेपाली सम्मान से उन्हें नवाजा गया। उनकी इस प्रतिभा का लाभ सरकारी कार्यालयों व निजी उद्यमियों द्वारा बखूबी उठाया गया। इनमें वर्जिन अटलांटिक एयरलाइंस, श्रीलंका व मलेशिया एयरलाइंस तथा ‘अपना उत्सव’ में उनकी सूक्ष्म रचनात्मक प्रतिभा का बेहतर उपयोग हुआ है। उनका सबसे महत्वपूर्ण काम लम्बादी जनजाति की उन महिलाओं के पुनर्वास में उजागर हुआ है जो लातूर भूकंप से बुरी तरह प्रभावित हुई थीं। उन्होंने इन महिलाओं को वस्त्र व फर्नीचर बनाने का प्रशिक्षण दिया। उनके काम का प्रदर्शन ‘आशा के रंग’ नामक प्रदर्शनी में किया गया। उन्होंने दिल्ली स्थित इतावली दूतावास के सांस्कृतिक केंद्र को साज-सज्जा से निखारा है। उनका नवीनतम कार्य सूरजकुंड में कला-शिल्प का परिवेश तैयार करना है। इसके साथ ही उन्होंने शोवना नारायण के ‘कांदम्बरी’ शो के लिए परिधान भी डिजाइन किये। इसके अलावा बहुत कुछ है, जिसके लिए शेखी बघारी जा सकती है।
नॉटी एट एटी
उम्र के लिए आदरांजलि! यदि बेहतर नहीं हो सकता तो कविता हो सकती है।
पंद्रह वर्ष की उम्र में बहुत समय होता है। बहुत कुछ करने को होता है और यह आसान भी होता है। लेकिन अस्सी वर्ष की उम्र में करने को तो बहुत कुछ होता है लेकिन पर्याप्त समय नहीं होता। आप हमेशा व्यस्त रहते हैं।
अस्सी की उम्र में जरूरी नहीं है कि आप तड़के तीन बजे उठें। लेकिन जब आपको निर्धारित समय पर बुलाया जाता है तो आप पहुंचते हैं।
रात्रि में आप भोजन करते हैं लेकिन भोजन करने में काफी समय लगता है। लेकिन खाने के बाद उसके निष्क्रमण में सहजता रहती है। लेकिन सब कुछ समय पर होता है।
आप अपने पैरों की उंगलियों का आसानी से प्रयोग अपनी चप्पल ढूंढऩे के लिए करते हैं। लेकिन आपके पैर अचानक तरणपाद तलाश लेते हैं।
आप एकाध बार मस्ती से ब्रश करते हैं, दाढ़ी बनाते हैं और नहाते हैं। कई दफा लगता है कि सुबह बीत गई और आपने कुछ नहीं किया। आप खुश रहते हैं।
आप नाश्ते में अंडे, टोस्ट व गर्मागर्म चाय की अपेक्षा करते हैं। फिर आपको आश्चर्य होता है कि मैंने अभी तक इसका सेवन क्यों नहीं किया।
आप अपने हाथ की घड़ी पर नजर दौड़ाते हैं, समय तेजी से भाग रहा है। हे भगवान! आधा दिन चला गया। देखो अभी तक कुछ नहीं हुआ।
आप मेज पर थके-मांदे बैठे हो। विभ्रम-सी स्थिति होती है कि मैं सोया था। क्या मैंने खाना खाया था? और आंखों में धुंधली तसवीर नजर आती है।
आप दीवार पर नजर डालते हैं और फिर घड़ी पर। हे भगवान! पांचों टीवी प्रसारण रहित हैं। धिक्कार है! मैं क्रिकेट के सीधे प्रसारण से वंचित रह गया।
तब, एक बार फिर आठ बजे चुके हैं। आप सोने जा रहे हैं, लेकिन सोचते हैं क्या मैंने खाना खाया? फिर आप याद करते हैं। ओह! धन्यवाद भगवान! मैं रात्रि की टोपी पहनना नहीं भूला।
इसी प्रकार आप ढूंढ़ते हैं अपना बिस्तर बिछाने वाला। ओह! मेरी कमर टूट गई। आप युवावस्था को याद करते हैं। जो कार्य आपने किये, अपने किये वायदों को भी याद करते हैं।
जब आप नौजवान थे तब आप जल्दी बड़ा होना चाहते थे। अब आप बुजुर्ग हैं तब के अधूरे सपनों को पूरा करने का विचार आता है। सोचते हैं कि बुजुर्ग तो होना चाहिए परंतु अस्सी वर्षीय नहीं।
(सौजन्य से : स्टेनली जोजेफ, नागपुर)
मिशनरी इलाज
अपने स्पाँडलाइटिस के उपचार के लिए मैंने सर्वप्रथम डायधर्मी केनिन से संपर्क साधा। मैं समझ नहीं पा रहा था कि राहत के लिए किस स्थिति में लेटना चाहिए। मैंने संकोच केसाथ फिजियोथैरेपिस्ट से पूछताछ की जो मुझे सेवा की स्थिति में नजर आई। अच्छी प्रतिक्रिया देते हुए उन्होंने सकुचाते, पलक झपकाते और मुस्कराते हुए स्वागत किया। उनके सद्भाव के लिए मैं आभारी था। मेरे कष्ट का स्थायी उपचार न मिलने पर मुझे सर्वाइकल कॉलर पहनने को कहा गया। निर्माण स्थल पर मेरे सहकर्मी मेरे गले में पड़े कुत्ते जैसे पट्टे को इरादतन घूरते रहे। जैसे मैं कोई क्लब का पुरस्कार जीतने वाला कुत्ता हूं। कालांतर यह कॉलर मेरे शरीर का अभिन्न अंग बन गया। मुझे थामस हार्डी के शब्दों से तसल्ली हुई—’मुझे प्यार करो और मेरे कुत्ते को प्यार करो।’ अंतत: मैं धन्यवाद करना चाहूंगा मास्टर्स और जानसन के लिए जिन्होंने एक प्रसन्नतादायक स्थिति प्रदान की जो पीड़ा से राहत देने वाली स्थिति उपलब्ध कराती है।
(सौजन्य से : कर्नल त्रिलोक मेहरोत्रा, नोएडा)