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तोशाम का 850 फुट ऊंचा पहाड़ अपने में समेटे है इतिहास

छात्र की पहाड़ की चोटी से गिरकर मौत इतिहास में पहला मामला नरेन्द्र ख्यालिया तोशाम, 9 जनवरी। तोशाम में स्थित बाबा मुंगीपा की धर्मस्थली का करीबन 850 फीट ऊंचा पहाड़ अपने आप में कई इतिहास समेटे हुए है। किंतु 1982 में हुई हवाई जहाज दुर्घटना को छोड़कर देखा जाए तो तोशाम के करीबन 750 वर्षों […]
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छात्र की पहाड़ की चोटी से गिरकर मौत इतिहास में पहला मामला

नरेन्द्र ख्यालिया

तोशाम का करीब 850 फुट ऊंचा पहाड़ जो बहुत-सी यादों और पहेलियों को समेटे हुए है। फोटो-निस

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तोशाम, 9 जनवरी। तोशाम में स्थित बाबा मुंगीपा की धर्मस्थली का करीबन 850 फीट ऊंचा पहाड़ अपने आप में कई इतिहास समेटे हुए है। किंतु 1982 में हुई हवाई जहाज दुर्घटना को छोड़कर देखा जाए तो तोशाम के करीबन 750 वर्षों से भी अधिक समय के इतिहास में यह पहला मामला सामने आया है जब तोशाम के पहाड़ से गिरकर किसी की मौत हुई है।
26 वर्ष पहले अक्तूबर, 1982 में तोशाम पहाड़ी के शिखर से हवाई जहाज टकराया था, जिसके खौफ का मंजर आज भी तोशाम व आसपास के लोगों के जहन में मौजूद है।  बताया जाता है कि हवाई जहाज में आग लग गई थी। जिसका तोशाम पर गिरना निश्चित था, लेकिन पायलट ने अपनी जान की बाजी लगाकर गांव को बचा लिया और जहाज को पहाड़ी के ऊपरी छोर के किनारे पर टकरा दिया।
गौरतलब होगा कि बृहस्पतिवार की देर सायं गांव बागनवाला निवासी पांचवीं कक्षा के एक छात्र की पहाड़ की चोटी से गिरकर मौत हो गई थी। बताया गया है कि उक्त छात्र अपने दो अन्य साथियों के साथ पहाड़ की चोटी पर घूमने के लिए गया हुआ था और पैर फिसलकर गिरने से उसकी मौत हो गई।
तोशाम स्थित बाबा मुंगीपा के नाम से विख्यात इस 850 फीट से भी ऊंचे पहाड़ पर हर वर्ष देश के कोने-कोने से सैलानी या श्रद्धालु घूमने व बाबा मुंगीपा के दर्शन करने के लिए आते हैं, किंतु बुजुर्गों की मानें तो इस प्रकार का हादसा पहले कभी नहीं हुआ था। जबकि गर्मी के मौसम में तो रात को भी लोग पहाड़ की चोटी तक जा पहुंचते हैं। मध्यकाल में प्रतापी राजा पृथ्वीराज चौहान का किला इस पहाड़ी पर था। सन् 1982 में हवाई जहाज के टकराने से ध्वस्त हो चुके किले के काफी अंश खत्म हो गए थे। कुछ अंश आज भी मौजूद हैं। इस पहाड़ी के मध्य में मौजूद ब्राह्मी लिपि के दो अद्भुत शिलालेखों का रहस्य बरकरार है। कहा जाता है कि सर्वप्रथम 1875 ई. में भारत के प्रथम सर्वेयर जरनल एलेक्जेंडर कनिंघम ने इन शिलालेखों का मूल्यांकन किया था। लोक धारणा है कि ये लेख बौद्धकालीन हैं।
मालूम हुआ है कि इन शिलालेखों के दो भाग हैं। पहला बड़े अक्षरों वाला तथा दूसरा लघु वर्णों वाला। किंवदंती है कि शिलालेख के बड़े वर्णों वाले भाग की रचना गौतम तोग रावनी पुत्र आचार्य अचल भट्ट ने की थी तथा लघु वर्णों वाली सामग्री की द्वितीय पंक्ति में राजा घटोत्कच का नाम आता है जो गुप्तकाल का प्रतीक है। शिलालेख पर एक गोल चक्र अशोक चक्र से मिलता जुलता है। वैसा ही गोलचक्र राजा घटोत्कच के सिक्कों पर भी मिलता है। इतिहासकार इस चक्र को भगवान विष्णु का प्रतीक भी बताते हैं।
बुजुर्गों का कहना है कि 1977-78 में कुछ डाकू ओं ने इन शिलालेखों के रहस्य को जानने के लिए इस पर गोलियां दागी थीं, जिनके निशान आज भी मौजूद हैं। बताया जाता है कि शिलालेखों पर बना चक्र यहां रखे राजाओं के अथाह धन के भंडार का मार्ग निर्दिष्ट करता है। जनश्रुति है कि जो व्यक्ति इन लेखों की लिपि को पढ़ लेगा, वह सारा खजाना पा सकता है। कई विद्वान यहां आ चुके हैं परंतु वर्णों की बनावट अस्पष्ट होने के कारण उन्हें निराश होकर ही लौटना पड़ा।
इतिहास पर अक्सर स्वतंत्र लेखन करने वाले कलीराम वर्मा का कहना है कि आज भी अगर इन शिलालेखों को ढूंढऩा चाहें तो एकदम से नजर नहीं आएंगे। यहां एक परियों का कुंड है, जिसके ऊपर ये शिलालेख अंकित हैं। इस स्थान को ‘नौ करोड़ बाईं ओर’ के नाम से भी जाना जाता है।   ‘हरियाणा इतिहास’ नामक पुस्तक के लेखक डा. अमर सिंह ने इन शिलालेखों को गुप्तकाल से संबंधित बताया है।
तोशाम के बारे में इतिहासकार विरेन्द्र संडवा ने बताया कि यूं तो 1185-86 में उत्तरी भारत के सबसे शक्तिशाली शासक पृथ्वीराज चौहान का तोशाम के पहाड़ पर बनाई गई बारह दरी पर जनता दरबार लगाया जाता था और जब से तोशाम का जिक्र किया जाता है, किंतु तोशाम का अस्तित्व वास्तव में आबादी के हिसाब से करीबन 750 वर्ष पुराना ही है और लगभग 400 वर्षों से यहां पर बाबा मुंगीपा मंदिर का पूजा स्थल बना हुआ है।

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