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लोकसभा में लोकपाल बिल पारित

सरकार को झटका संवैधानिक दर्जा देने वाला संशोधन गिरा नयी दिल्ली, 27 दिसंबर (भाषा/ट्रिन्यू)। तैंतालीस साल के इंतजार के बाद लोकसभा ने आज अंतत: भ्रष्टाचार से निपटने के लिए लोकपाल विधेयक पारित कर दिया लेकिन सरकार को साथ ही एक बडा झटका लगा जब लोकपाल और लोकायुक्त को संवैधानिक दर्जा दिए जाने वाला संविधान संशोधन […]
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सरकार को झटका

संवैधानिक दर्जा देने वाला संशोधन गिरा

नयी दिल्ली, 27 दिसंबर (भाषा/ट्रिन्यू)। तैंतालीस साल के इंतजार के बाद लोकसभा ने आज अंतत: भ्रष्टाचार से निपटने के लिए लोकपाल विधेयक पारित कर दिया लेकिन सरकार को साथ ही एक बडा झटका लगा जब लोकपाल और लोकायुक्त को संवैधानिक दर्जा दिए जाने वाला संविधान संशोधन विधेयक गिर गया क्योंकि विधेयक पारित कराने के लिए आवश्यक दो तिहाई बहुमत सरकार नहीं जुटा पाई। ।
संविधान (116वां संशोधन) (नए भाग 14 ख का अंत: स्थापन) विधेयक 2011 के तीनों अनुच्छेद आवश्यक दो तिहाई बहुमत के अभाव में पारित नहीं हो पाए। वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने विधेयक नहीं पारित हो पाने पर कहा कि यह लोकतंत्र के लिए दु:खदाई दिन है। उन्होंने कहा कि लोकपाल को संवैधानिक दर्जा नहीं देने के लिए जनता विपक्ष को कभी माफ नहीं करेगी।
उल्लेखनीय है कि राजग, वाम दलों और बीजद सहित अन्य कुछ दलों के एकजुट हो जाने से सरकार दो तिहाई बहुमत जुटाने में कामयाब नहीं हो पाई। लोकपाल को संवैधानिक दर्जा देने का सुझाव कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने दिया था। सदन ने हालांकि बहुचर्चित लोकपाल एवं लोकायुक्त विधेयक पर मुहर लगा दी। दस घंटे की मैराथन चर्चा के दौरान कुछ प्रावधानों पर भाजपा सहित कई दलों के कडे विरोध और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा दलगत राजनीति से ऊपर उठकर इसे पारित करने की अपील के बीच यह विधेयक निचले सदन ने पारित कर दिया।
सरकार ने विधेयक पर दस संशोधन पेश किए, जिन्हें ध्वनिमत से मंजूर कर लिया गया। भाजपा सहित विभिन्न विपक्षी दलों के सदस्यों की ओर से पेश संशोधनों को सदन ने नामंजूर कर दिया। सपा, बसपा, अन्नाद्रमुक, वाम दलों, राजद और बीजद ने सदन से वाकआउट किया। लेकिन बाद में वाम दल, बीजद और अन्नाद्रमुक के सदस्य वापस सदन में आ गए। सदन ने लोक हित प्रकटन और प्रकट करने वाले व्यक्तियों का संरक्षण विधेयक, 2010 भी ध्वनिमत से पारित कर दिया।  दिलचस्प बात है कि आज से ही गांधीवादी अन्ना हजारे ने मजबूत लोकपाल की मांग को लेकर मुंबई में अनशन शुरू किया है। चर्चा के दौरान कई सदस्यों ने उनका उल्लेख किया तो कई अन्य ने उनके अडिय़ल रवैये को        लेकर सवाल भी उठाए।  विधेयक पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए नेता सदन एवं वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने कहा कि सरकार विधेयक में आधिकारिक संशोधन कर रही है और अब राज्य सरकारों की मर्जी के बिना लोकायुक्त बनाने के बारे में अधिसूचना नहीं जारी की जाएगी। सेना को भी अब लोकपाल के दायरे में नहीं रखा जाएगा। सदन के कामकाज में बाधा और आए दिन होने वाले हंगामे पर उन्होंने सांसदों से कहा, ‘क्या आप सोचते हैं कि जब लगातार बाधा उत्पन्न हो रही हो तो संसदीय संस्था को समाज के अन्य वर्गों से सम्मान मिलेगा।’
मुखर्जी ने कहा कि हो सकता है कि यह लोकपाल विधेयक सर्वश्रेष्ठ न हो लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि हम सर्वश्रेष्ठ के चक्कर में अच्छे को भी छोड़ दें।  जनता इंतजार कर रही है। हमें उसे संदेश देना चाहिए कि हम भ्रष्टाचार मिटाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।’
इससे पूर्व लोकपाल पर ऐतिहासिक बहस में भाग लेते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने राजनीतिक दलों का आह्वान किया कि वे दलगत राजनीति से ऊपर उठ कर इस विधेयक को पारित करें, क्योंकि भ्रष्टाचार पर आक्रोशित देश हमारी ओर देख रहा है। पारदर्शिता में अपनी सरकार के विश्वास का दावा करते हुए उन्होंने कहा कि उनकी नीतियां जन केंद्रित हैं और सरकार ने विकास का लाभ हर व्यक्ति तक पहुंचाया है।
भ्रष्टाचार के विरुद्ध संघषर् के प्रति अपनी सरकार की प्रतिबद्धता देाहराते हुए प्रधानमंत्री ने सीबीआई को लोकपाल के दायरे में लाने से यह कह कर साफ इनकार कर दिया  कि ऐसी संस्था का निर्माण नहीं किया जा सकता , जो अन्य संस्थाओं को ध्वस्त कर दे।
उसके बाद विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने सरकार द्वारा पेश लोकपाल विधेयक के अनेक प्रावधानों को खारिज करते हुए कहा कि यह विधेयक ही असंवैधानिक है। देश में भ्रष्टाचार के खात्मे के लिए कठोर कानून बनाने के अलावा यह विधेयक सब कुछ है। सरकारी विधेयक की बिंदुवार धज्जियां उड़ाते हुए उन्होंने कहा कि लोकपाल विधेयक की तर्ज पर ही राज्यों में लोकायुक्त नियुक्त करने की अनिवार्यता के जरिये यह विधेयक देश के संघीय ढांचे पर ही प्रहार करता है, जबकि लोकपाल में आरक्षण—खासकर धर्म आधारित आरक्षण का प्रावधान संविधान को ही चुनौती देता है, जो अंतत: देश के एक और विभाजन की परिस्थितियां पैदा कर सकता है।
जनता दल यूनाइटेड के शरद यादव ने सरकारी लेाकपाल विधेयक को खोदा पहाड़, निकली चुहिया करार देते हुए कहा कि इससे भ्रष्टाचार के खात्मे की गलतफहमी नहीं होनी चाहिए। इससे अदालतो में मुकदमो का बोझ और बढ़ जायेगा। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने ही सीबीआई का सबसे ज्यादा दुरुपयोग किया है।  भाजपा के यशवंत सिन्हा ने कहा कि ईमानदार बताये जानेवाले प्रधानमंत्री सबसे भ्रष्ट सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं।

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