उम्मीदवार को खारिज़ करने की मांग काबिलेगौर : कुरैशी
नयी दिल्ली, 26 दिसंबर (भाषा)। मुख्य चुनाव आयुक्त एस वाई कुरैशी का मानना है कि जनता को लोकसभा और विधानसभा चुनावों में किसी उम्मीदवार को खारिज करने का अधिकार देने की टीम अन्ना की मांग गौर करने लायक है लेकिन उम्मीदवार को वापस बुलाने से राजनीतिक अस्थिरता आ सकती है। उन्होंने यह भी कहा कि ऐसा कुछ भी नहीं होना चाहिए जिससे लोकतांत्रिक संस्थाएं कमजोर हों और संसदीय सर्वोच्चता पर सवाल नहीं उठने चाहिए।
कुरैशी ने कहा कि आयोग की खारिज करने के अधिकार की मांग पर मिली-जुली भावना है।
कुरैशी ने एक साक्षात्कार में कहा, ‘यदि बार-बार चुनाव होते हैं तो हमें आपत्ति है। अन्ना हजारे पक्ष ने हमसे मुलाकात की। उन्होंने हमसे कहा कि अन्ना का विचार है कि धन बल एक बड़ा मुद्दा है और इससे चुनाव आयोग समेत सभी को परेशानी हो रही है।’
इसके अलावा उन्होंने कहा कि यदि आयोग इस संबंध में कानून नहीं होने की स्थिति में अपराधियों को रोकने में सक्षम नहीं है तो कम से कम जनता ऐसे उम्मीदवारों को खारिज कर सकती है जो करोड़ों रुपए खर्च करते हैं।
कुरैशी ने कहा कि इस पर गौर किया जा सकता है और इस विषय पर अध्ययन की जरूरत है। हालांकि उन्होंने कहा कि कई कानूनी मुद्दे हैं जिनपर विचार किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि आयोग ने इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) में एक बटन शामिल करने का सुझाव दिया है जो मतदाताओं को उम्मीदवारों में ‘इनमें से कोई नहीं’ के विकल्प को चुनने की आजादी दे जो पहले मतपत्र प्रणाली में व्यवस्था थी। जनप्रतिनिधियों को वापस बुलाने की मांग पर कुरैशी ने कहा, ‘एक तरह से हमारे पास पहले से ही यह अधिकार है। हर पांच साल बाद आप जनप्रतिनिधि को वापस बुलाने का फैसला कर सकते हैं। लोग समझदार हैं। जिस सरकार को वे पसंद नहीं करते, हटा देते हैं और जो जनप्रतिनिधि उनकी अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतरे, उसे खारिज कर देते हैं।’ उन्होंने कहा, ‘कार्यकाल समाप्त होने से पहले वापस बुलाने का चलन देश में अस्थिरता लाएगा।’
कुरैशी ने कहा, ‘आप प्रत्येक सांसद या विधायक पर अनिश्चितता की तलवार लटकाए नहीं रह सकते। वे काम नहीं कर सकेंगे। वे जनता को लुभाने में लगे रहेंगे और उनके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी उनके निर्वाचन के दिन से ही उन्हें शांतिपूर्ण तरीके से नहीं रहने देंगे।’ उन्होंने कहा कि चुनाव में हारने वाला कोई प्रत्याशी चुनावी याचिका दाखिल करने के बजाय विजेता को वापस बुलाने के लिए काम करेगा। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि एक निर्वाचन क्षेत्र में जहां चार लाख लोगों ने वोट देकर उम्मीदवार को जिताया है तो विजेता को हटाने के लिए कितने लोगों की जरूरत होगी-5,000, 10,000 या 50,000? उतने ही लोग होने चाहिए जितनी संख्या में विजेता को वोट मिले हैं।
कुरैशी ने कहा, ‘जनप्रतिनिधि अपना कार्यकाल पूरा करे, यह न केवल उसका अधिकार है बल्कि उन चार लाख लोगों का भी अधिकार है जिन्होंने उसे चुना है। दूसरी बात यह कि 10,000, 15000 या एक लाख लोग हैं लेकिन कौन तय करेगा कि दस्तखत जायज हैं या नहीं। यह असंभव है।’ उन्होंने कहा, ‘इसके अलावा यह कैसे सुनिश्चित होगा कि जिन्होंने दस्तखत किए हैं, स्वेच्छा से किए हैं तथा किसी दबाव में या अवैध तरीके से नहीं किए हंै।’
मुख्य चुनाव आयुक्त ने जनमत संग्रह से जनप्रतिनिधियों को वापस बुलाने की संभावना को भी खारिज कर दिया। अन्ना हजारे और उनके सहयोगियों के अभियान पर कुरैशी ने कहा कि जंतर मंतर (सड़क पर आंदोलन) की संसद से तुलना नहीं की जा सकती।
उन्होंने कहा, ‘अपनी राय रखना ठीक है। आंदोलन ठीक है। लेकिन मेरा मजबूती से मानना है कि किसी को भी लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर नहीं करना चाहिए। समय की जरूरत है कि उन्हें और मजबूत किया जाए। संसदीय लोकतंत्र की लोकशाही के नाम पर अनदेखी नहीं होनी चाहिए।’
कुरैशी ने कहा, ‘अन्यथा राजनेताओं और उनके भ्रष्टाचार के प्रति जनता का मोहभंग बढऩे ही वाला है। भ्रष्टाचार पर रोकथाम का सबसे अच्छा तरीका है कि राजनीतिक व्यवस्था को चुनाव सुधार के माध्यम से साफ- सुथरा किया जाए जैसा कि आयोग कई साल से प्रस्ताव देता आया है।’