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रिमझिम के तराने लेकर आई बरसात

श्रीराम ताम्रकर हिन्दी फिल्मों में बरसात का मौसम बारहमासी होता है। एक ही छाते में प्रेमी-प्रेमिका का सटकर चलना। प्यार के मीठे-मीठे तराने गाना। गुनगुने ताप को महसूस करना। सिर से पैर तक बदन भीगा हुआ है।  बंधन अपने आप खुलते चले जाते हैं। मानसून भले ही दो-तीन महीने बरसकर बिदा हो जाता हो, फिल्मों […]
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श्रीराम ताम्रकर
हिन्दी फिल्मों में बरसात का मौसम बारहमासी होता है। एक ही छाते में प्रेमी-प्रेमिका का सटकर चलना। प्यार के मीठे-मीठे तराने गाना। गुनगुने ताप को महसूस करना। सिर से पैर तक बदन भीगा हुआ है।  बंधन अपने आप खुलते चले जाते हैं। मानसून भले ही दो-तीन महीने बरसकर बिदा हो जाता हो, फिल्मों में बारिश नायक-नायिका को नजदीक लाने और सिनेमाघर के अंधेरे में बैठे दर्शकों  के लिए बारहमासी बना दी जाती है। हिन्दी फिल्मों के गीतकारों ने बरसात के मौसम का जी-भरकर दोहन किया है।
आशुतोष गोवारीकर तथा आमिर खान की फिल्म लगान में चंपानेर गांव के किसानों की मनोदशा और बारिश के इंतजार की बेताबी गीतकार जावेद अख्तर ने कुछ इस तरह व्यक्त की है ‘घनन घनन घिर घिर आए बदरा…’। जब पानी बरसने लगता है तो सूखाग्रस्त गांववासी उल्लासभरी किल्कारियों से आकाश गुंजा देते हैं। गीतकार जावेद अख्तर कहते हैं कि बारिश के गीत हमें प्रकृति से जोड़ते हैं। उफनती नदियां, झरते झरने मानव मन को सुकून से भर देते हैं। बारिश के दृश्यों का फिल्मांकन एस्थेटिक वेल्यू के साथ होना चाहिये।
सुधीर मिश्रा की फिल्म चमेली में लाल साड़ी पहने करीना कपूर कॉलगर्ल के रूप में अपने ग्राहकों का इंतजार करती है। मूसलाधार पानी बरसने लगता है। भीगते हुए वह गाती है ‘भागे रे मन कहीं…’। गीली सूती साड़ी में करीना का सौंदर्य लाजवाब लगता है।  करीना ने फिल्म थ्री इडियट्स में भी आमिर खान के साथ छातों की भीड़ के बीच गाया था- ‘जूबीडूबी जूबीडूबी पम्पारा’। इस गाने की वजह से तो फिल्म सुपरहिट नहीं हुई थी, मगर यह गाना फिल्म की पब्लिसिटी का प्लस पॉइंट जरूर बना था।

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मधुबाला से करीना तक
फिल्मों की बारिश से शायद ही कोई अभिनेत्री हो, जो सूखी बची हो। नरगिस, निम्मी, मधुबाला, मीना कुमारी से लेकर माधुरी दीक्षित एवं करीना तक को फिल्मकारों ने बरसात में खूब भिगोया है और हीरोइन की सेक्स अपील को बढ़ाकर बॉक्स ऑफिस पर कामयाब हुए।  माधुरी दीक्षित  पहले पटकथा पढ़कर यह जानना चाहती थी कि क्या बारिश के सीन से फिल्म की कहानी का संबंध है? ऐसा होने पर वह समझदार फिल्मकारों की फिल्मों में ही बारिश में नहाना पसंद करती थी। इस मामले में हीरोइन फरहा का किस्सा मजेदार है। फिल्म लव 86 में गोविन्दा के साथ उस पर बारिश का सीन फिल्माया जाना था। शॉट शुरू होते ही ऊपर से ठंडा पानी फरहा पर डाला गया। जब शॉट पूरा हुआ, तो उसने महसूस किया कि उसके कपड़ों से बदबू आ रही है। दो-चार दिन पुराना, टैंकर में जमा पानी बरसात के रूप में उन पर बरसाया जा रहा था। अक्सर फिल्मों में हीरोइन का  सौंदर्य दिखाने के लिए बरसात के सीन डाले जाते हैं।

ओ सजना, बरखा बहार आई
फिल्मकार बिमल रॉय ने अपनी फिल्मों में बरसात को लोकप्रिय लोकरंग और लोक संस्कृति के साथ प्रस्तुत किया है। फिल्म परख के गीत ‘ओ सजना, बरखा बहार आई, रस की फुहार लाई, अंखियों में प्यार लाई…’ को लता जी की आवाज और सलिल चौधरी की धुनों के साथ ऐसे पेश किया है कि श्रोता के कानों में मिश्री घुलने लगती है। बिमल रॉय ने अपनी दूसरी फिल्म दो बीघा जमीन में हिन्दी कवि सुमित्रानंदन पंत की कविता ‘भारतमाता ग्रामवासिनी’ को पूरी तरह से इस गीत में चरितार्थ किया है ‘हरियाला सावन ढोल बजाता आया…’। इस गीत में नृत्य करते ग्रामवासी/ किसान, साधु, बच्चे, स्त्रियां घर के आंगन में बरसती बूंदों को अंजुरी में भरकर अपने जीवन की सार्थकता साबित करते लगते हैं। इन्हीं की एक और फिल्म सुजाता में नायिका नूतन को यकायक एक नाविक से प्रेम हो जाता है। रोमांटिक भावनाओं को महसूस करती वह घर का दरवाजा खोल आकाश में उड़ते पंछियों तथा काली घटाओं के उमड़ते-घुमड़ते आकारों को निहारती है। घर का दरवाजा तपाकसे बंदकर गाती है ‘जब काली घटा छाए…’। यह दृश्य परदे पर आकर दर्शक के बावरे मन को लूट ले जाता है।

प्यार हुआ  इकरार हुआ…
फिल्मी गीतों को जितने खूबसूरत अंदाज में फिल्माने में महारत राजकपूर को हासिल थी, वह अद्वितीय है। बाद में विजय आनंद, विधु विनोद चोपड़ा तथा संजय लीला भंसाली में यह देखा गया है। फिल्म बरसात में राजकपूर ने अपनी इच्छाओं की बरसात की है। पानी उनके लिए हमेशा रोमांस का पर्याय रहा है। चाहे नायिका झरने में नहा रही हो अथवा नदी में। बरसात का यह गाना आज भी लोकप्रिय है ‘बरसात में हमसे मिले तुम सजन, तुमसे मिले हम…’। फिल्म श्री420 का यह गाना ‘प्यार हुआ इकरार हुआ है, प्यार से फिर क्यों डरता है दिल…’ तो हिन्दी सिनेमा का  माइलस्टोन गीत है। इस गीत के संयोजन में रोमांस है, भावनाएं हैं और वर्तमान में जीते हुए भविष्य को देख लेने के सपने भी खूबसूरती के साथ कैमरे की आंख से प्रस्तुत किये गये हैं। एक ओवरब्रिज के ढलान की फुटपाथ पर चाय की एक दुकान है। सिगड़ी पर केतली रखी है। केतली की नली से चाय की भाप बाहर आ रही है। चाय पीने के बाद एक ही छाते में नायक-नायिका गा रहे हैं। सड़क के दूसरी ओर  फुटपाथ पर रेनकोट पहने तीन बच्चे भीगते हुए अपनी अलमस्त चाल से चले जा रहे हैं। ऐसे में गीत की लाइन आती है ‘हम न रहेंगे, तुम न रहोगे, फिर भी रहेंगी निशानियां…’। अपनी चाल से चलती दुनिया का पूरा फलसफा इन शब्दों और दृश्यों में मौजूद है।
वी. शांताराम ने अपनी फिल्म दो आंखें बारह हाथ में बारिश का चित्रण कविता की तरह किया है। एक पहाड़ी के ढलान पर नायक ड्रम बजाता है। आकाश में काले-काले बादल छाकर पानी बरसने लगता है। गीत शुरू होता है ‘उमड़-घुमड़ के आई रे घटा, कारे-कारे बदरा की छाई-छाई रे घटा…’ नायिका नन्हे-मुन्ने बच्चों के साथ बारिश की बूंदों में भीगने लगती है। गीतकार भरत व्यास ने बरखा को दुल्हनियां का दर्जा दिया है। संगीतकार वसंत देसाई ने गीत को मीठी धुनों से संवारा है।

एक लड़की भीगी-भागी सी
कॉमेडी की ऑल टाइम ग्रेट फिल्म चलती का नाम गाड़ी का यह गीत ‘एक लड़की भीगी भागी सी, सोती रातों में जागी सी…’ जब परदेे पर आता है तो नायक किशोर कुमार की शरारतें जहां एक ओर दर्शकों को हंसने पर मजबूर करती हैं वहीं नायिका मधुबाला अपनी भीगी साड़ी के पानी को जब निचोड़ती है तो दर्शकों तकअसर पहुंचता सा लगता है। निर्देशक सत्येन बोस ने बगैर कुछ दिखाए वह सब कुछ कह दिया।

ठंडे पानी में हॉट अपील
बरसात के अधिकांश गाने नायिकाओं पर ही फिल्माए जाते हैं। कैमरे का पूरा फोकस नायिका के इर्द-गिर्द कभी पेनिंग, तो कभी टिल्टिंग करता रहता है। क्लोजअप में खास पार्ट फिल्माए जाते हैं। फिल्म मोहरा में ‘टिपटिप बरसा पानी…’ में रवीना टंडन का सौंदर्य पानी में आग लगाता नजर आता है। फिल्म गुरु की ग्रामीण अल्हड़ युवती ऐश्वर्या ‘बरसो रे मेघा बरसो…’ में सारे रहस्य भीगते हुए खोल देती है। मिस्टर इंडिया में श्रीदेवी को कोरियोग्राफर सरोज खान ने सफेद साड़ी नहीं पहनाई थी क्योंकि उसमें वल्गरेटी होने का डर था। इसलिए नीली साड़ी में श्रीदेवी गाती है- ‘काटे नहीं कटते ये दिन ये रात…’। शक्ति सामंत की फिल्म आराधना का गीत ‘रूप तेरा मस्ताना, प्यार मेरा दीवाना…’ तो राजेश खन्ना तथा शर्मिला टैगोर की भावना को उकसाता है। इसी तरह फिल्म हमतुम में रानी मुखर्जी और सैफ अली के बारिश गीत ‘सांसों को सांसों से…’ के जरिए भावनाएं जगाई गई हैं। दरअसल मार्केटिंग के दबावों के आगे झुककर फिल्मकार सेक्स अपील के जरिए फिल्मों में बारिश के गाने डालकर टिकट खिड़की पर अपनी फिल्म को सुपरहिट बनाना चाहते हैं। इसलिए फिल्मों में बारिश और बारिश में गाने एक सक्सेस फार्मूला बनकर रह गया है।
आजकल की नई पीढ़ी की नायिकाएं, जिन्हें प्रदर्शन से कोई परहेज नहीं है, वे तो रेनडांस में भीगने और निर्देशक के जरा से इशारे पर सब कुछ करने को तैयार रहती हैं। नायिका को पानी में भिगोना और उसकी साड़ी के जरिए सौंदर्य दिखाने की एक लम्बी ऐतिहासिक परम्परा हिन्दी सिनेमा में रही है। साड़ी
में भीगने में जो सेंसुएलिटी एंड सेक्सुएलिटी है, वह  बिकनी में नहीं है। पूरा मनोरंजन और जिज्ञासा तो आवरण के भीतर होती है।

ये फिल्में भीगी भागी-सी…

सौम्या
मानसून का मौसम हमारी फिल्मों को हमेशा भिगोता रहा है।  झमाझम पड़ती बूंदें पर्दे पर कुछ ऐसा जादू बिखेरती हैं कि दर्शक बारिश में धुले दृश्यों के मोहपाश में बंधते चले जाते हैं। शायद सावन का खुशनुमा महीना हमारी फिल्मी दुनिया के बाशिंदों को बेहद प्रिय है तभी तो कई फिल्मों की पूरी कहानी ही बरसात के  मौसम के इर्द-गिर्द घूमती है। ‘बरसात की  रात’,’बरसात’,’सावन’,’सावन आया झूम के’, मानसून वेडिंग… सूची काफी लंबी है।  बारिश से जुड़े दृश्य पर्दे पर दिखाने के  लिए निर्माता-निर्देशक बरसात के मौसम का इंतजार नहीं करते , उनके लिये तो ‘सावन आए या ना आए जिया जब झूमे सावन है …।’
प्रेमी अपनी प्रेमिका की यादों से जुडऩे के लिए भी बरसात के मौसम में उससे हुई मुलाकात को ही बहाना बनाता है,वह गुनगुना उठता है जिंदगी भर नहीं भूलेगी, वो बरसात की रात …। हमारे गीतकारों ने तो आंखों से बहते आंसू की तुलना भी बरसात से की है: रोक ले आंख के बहते आंसू…,बह निकला बरसात हंसेगी…,या फिर,नैना बरसे रिमझिम रिमझिम। बारिश की बूंदों से जुड़ी लगभग हर भावना को फिल्मों में समय-समय पर पिरोया गया है। तक्षक में अपने एकाकीपन को दूर भगाने के लिए तब्बू बूंदों से ही बातें करने के लिए मजबूर हो जाती है और गाने लगती है: मैं करने लगी हूं बूंदों से बातें। बारिश की बूंदें पड़ते ही परख में  साधना अपनी भावनाओं को रोक नहीं पाती है और बरबस ही गुनगुनाने लगती है: ओ…सजना बरखा बहार आयी,रस की फुहार लायी,अंखियों में प्यार लायी …। झमझमाती बारिश में हेमामालिनी और मनोज कुमार भावुक होकर विपरीत परिस्थितियों में भी एक-दूसरे का साथ निभाने का वादा कर बैठते हैं  और गुनगुना उठते हैं: जिंदगी की न टूटे लड़ी  …।

मेघ दे पानी दे …
बारिश के ज्यादातर गीत रोमांस, मस्ती एवं उमंग से भरे नृत्य प्रधान गीत हैं परंतु इनके अलावा भी बारिश के गीतों में अलग-अलग मूड के कई गीत शामिल हैं। कुछ गीत विरह वेदना का स्वर लिये हुए हैं तो किसी में मेघों के माध्यम से पिया को मोहब्बत का पैगाम भेजा गया है, कभी गीत के माध्यम से अल्लाह से बारिश की गुहार की गई है तो कभी बारिश होने पर खुशी का इजहार किया गया है। हमारी फिल्मों में किसान और बारिश की बूंदों का भी तादात्म्य बखूबी दिखाया गया है। गर्मी से तपती धरती पर बारिश की बूंदों के पडऩे पर लगान में किसान खुश होकर गुनगुनाने लगते हैं-घनन घनन घन गरजत आये …। इस गीत के जरिये वे आने वाले दिनों में अच्छी फसल होने की उम्मीद जाहिर करते हैं। यह गीत बरसात की रात  के गरजत बरसत सावन आये रे  व  दो आंखें बारह हाथ  के अमर गीत उमड़ घुमड़ घिर आई रे घटा की याद दिलाता है। गाइड में सूखी धरती और पानी की एक-एक बूंद के लिए तरसते लोग ईश्वर से प्रार्थना कर बैठते हैं ,अल्लाह मेघ दे पानी दे …।  दूसरी तरफ  शोर का  गीत  पानी रे पानी तेरा रंग कैसा  में  बारिश के पानी से उपजे आनंद के साथ-साथ बारिश से होने वाली परेशानियों की भी अभिव्यक्ति है।

ये साजिश है बूंदों की…
चमकती बिजली,गडग़ड़ाते बादल और झमाझम बारिश हमारी फिल्मों में संकेत सूचक की भूमिका निभाते हैं,ये संकेत या तो प्यार के होते हैं या फिर किसी संदिग्ध स्थिति के। पिछले कुछ दशकों से बरसात के मौसम की पृष्ठभूमि में रोमांस की तुलना में हत्या और एक्शन के दृश्यों का अधिक फिल्मांकन हो रहा है।  ऐसे दृश्यों को रोचक-आकर्षक बनाने के लिए बारिश को बहाना बनाया जाता है। बारिश में स्लो मोशन में हीरो जब विलेन को मारता है तो दृश्य कुछ खास ही हो जाता है। सत्या और शिवा जैसी फिल्मों में हत्या के दृश्यों को फिल्माने के लिए बारिश के मौसम को बहाना बनाया गया। आज हमारी फिल्मों में बारिश का प्रयोग रोमांस से हटकर रहस्यात्मक माहौल पैदा करने के लिए किया जाता है। सत्या में जहां बारिश के दृश्य में एक ओर उर्मिला गीला-गीला पानी गाते हुए सावन के महीने की खूबसूरती पर अपनी राय पेश करती है वहीं,सत्या के ही दूसरे दृश्य में हत्या के सीन को ड्रामाटिक बनाने के लिये भी बारिश के मौसम को पृष्ठभूमि में रखा गया। जिस प्रकार मौसम बदलते रहते हैं,उसी प्रकार बारिश को फिल्मों में दिखाने का नजरिया भी बदलता रहा है।

बारिश के जूबी डूबी तराने

2001 से

बरसो रे मेघा…

गुरु

2007

बरस जा ऐ बादल बरस जा

फरेब

2005

ऑन द रूफ इन द रैन

मस्ती

2004

भागे रे मन कहीं

चमेली

2003

घनन घनन घिर घिर आए बदरा

लगान

2001

1990 से

बूंदों से बातें

तक्षक

1999

सावन बरसे

दहक

1998

गीलागीला पानी

सत्या

1998

घोड़े जैसी चाल ओ सावन राजा

दिल तो पागल है

1997

टिपटिप बरसा पानी

मोहरा

1994

रिमझिम रिमझिम

1942 ए लव स्टोरी

1993

मेघा रे मेघा रे

लम्हे

1991

1980 से

लगी आज सावन की फिर वो झड़ी है

चांदनी

1989

बादल यूं गरजता है

बेताब

1983

आज रपट जाएं तो हमें

नमक हलाल

1982

तुम्हें गीतों में ढालूंगा

सावन को आने दो

1979

1970 से

आया सावन झूम के

मिलन

1967

मेरे नैना सावनभादो

मेहबूबा

1976

अब के सजन सावन में

चु

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