महाराजा रणजीत सिंह के शासन में किसी को नहीं मिली फांसी
पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र सिंह की महाराजा रणजीत सिंह की जीवनी पर लिखी पुस्तक ‘दि लास सनसेट-दि राइज एंड फाल आफ लाहौर दरबार’ का विमोचन वीरेंद्र प्रमोद लुधियाना, 7 अप्रैल। शिक्षित न होने के बावजूद महाराज रणजीत सिंह एक महान प्रशासक, लोकप्रिय जन नायक थे, जिन्होंने अपने 39 वर्ष के लम्बे शासनकाल के दौरान एक […]
पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र सिंह की महाराजा रणजीत सिंह की जीवनी पर लिखी
पुस्तक ‘दि लास सनसेट-दि राइज एंड फाल आफ लाहौर दरबार’ का विमोचन
वीरेंद्र प्रमोद
लुधियाना, 7 अप्रैल। शिक्षित न होने के बावजूद महाराज रणजीत सिंह एक महान प्रशासक, लोकप्रिय जन नायक थे, जिन्होंने अपने 39
लुधियाना में अपनी पुस्तक का विमोचन के अवसर पर पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र सिंह व अन्य। -दैनिक ट्रिब्यून चित्र
वर्ष के लम्बे शासनकाल के दौरान एक भी व्यक्ति को फांसी की सजा नहीं दी। ऐसा पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र सिंह ने यहां महाराजा रणजीत सिंह की जीवनी पर लिखी अपनी पुस्तक ‘दि लास सनसैट-दि राइज एंड फाल आफ लाहौर दरबार’ के विमोचन के अवसर पर आयोजित समारोह को संबोधित कर रहे थे।
इस अवसर पर उनके साथ मंच पर पंजाबी विश्व विद्यालय के पूर्व उप कुलपति डा. स्वर्ण सिंह बोपाराय और पत्रकार कंवर संधू भी थे। कैप्टन अमरेंद्र सिंह ने कहा कि महाराजा रणजीत सिंह ने 17 वर्ष की आयु, में गद्दी संभाली और 21 वर्ष की आयु, तक उन्होंने अपनी सभी मुख्य उपलब्धियां प्राप्त कर ली थीं। उन्होंने कहा कि उनको सबसे ज्यादा नुकसान गलत नेतृत्व के चयन ने पहुंचाया। यदि उनकी फौज के जरनैल लाल सिंह और तेजा सिंह गद्दारी न करते तो आज हालात बिल्कुल भिन्न होते।
उन्होंने महाराजा रणजीत सिंह के व्यक्तित्व की प्रशंसा करते हुए कहा कि 35 हजार वर्ग मील क्षेत्र में राज्य होने के बावजूद उन्होंने कभी भी अपने आपको महाराजा कहलवाकर संबोधित नहीं करवाया था। वह हमेशा अपने आप को ‘सिख साहिबÓ कहलवा कर खुश होते थे।
पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि महाराजा रणजीत सिंह ने अपनीसेना को माड्रन किया हुआ था। वह एक सेक्यूलर प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। यदि कोई दुश्मन के खेमे में भी उनको बढिय़ा इंसान मिलता था तो उसको प्रभावित करके वह अपने प्रशासन या सेना में प्रमुख पद पर तैनात कर देते थे।
कैप्टन अमरेंद्र सिंह ने कहा कि महाराजा रणजीत सिंह ने कभी भी किसी को तंग नहीं किया था। यदि उनके शासनकाल के दौरान उनकी प्रजा को तंग करता था तो उसे वह संगलों से बांध कर जेल में भेज देते थे।
उन्होंने अपनी पुस्तक में रहस्योद्घाटन किया है कि महाराजा रणजीत सिंह अपने राज्य की सीमा का विस्तार सतलुज के इस ओर भी करना चाहते थे लेकिन उसमें वह सफल नहीं हो पाये। कैप्टन अरमेंद्र सिंह के अनुसार उनकी नजर पटियाला, नाभा, जींद और मालेरकोटला रियासतों पर थी। क्योंकि अंग्रेजों ने सिंध की ओर विस्तार करने पर पाबंदी लगा रखी थी।
समारोह के आरंभ में पंजाबी विश्व विद्यालय के पूर्व उप कुलपति डा. स्वर्ण सिंह बोपाराय ने पंजाब सरकार द्वारा कैप्टन अमरेंद्र सिंह के विरुद्ध चलाये गये चरित्र हनन के अभियान को ‘स्टेट मैनेजडÓ बताते हुए अति दुखदाई बताया।
उन्होंने कहा कि उनके परिवार की देश भक्ति को झुठला दिया गया। पटियाला राज घराने की स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद निभाई गई भूमिका की पूरी तरह से अवेहलना कर दी गई है।
सरदार बोपाराय ने केंद्रीय सरकार से मांग की कि पटियाला रियासत के अंतिम महाराजा यादवेंद्र सिंह और बिकानेर रियासत के अंतिम महाराजा करणी सिंह को मरणोपरांत भारत रत्न के अवार्ड से सम्मानित करें।
इस अवसर पर पूर्व मंत्री लाल सिंह, सुरेदं्र सिंगला, मलकीत सिंह दाखा, कांग्रेसी विधायक गुरदीप सिंह भैणी, तेज प्रकाश सिंह, जस्सी खंगूड़ा, सतविंद्र कौर ग्रेवाल, पूर्व मेयर नाहर सिंह गिल, सुरेंद्र डाबर (पूर्व विधायक), हरनाम दास जौहर, राणा सोढी विधायक भी उपस्थित थे।